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Sawan 2020 : श्रावण मास में पूजन से पहले इन संकल्पों को करें पूरा, तो ही मिलेगा मनचाहा फल

Sawan 2020 | श्रावण मास में पूजन से पहले इन संकल्पों को करें पूरा, तो ही मिलेगा मनचाहा फल
Sawan Mass 2020
 

- सुरेंद्र बिल्लौरे
 
इस बार श्रावण मास का आरंभ 6 जुलाई 2020, सोमवार से हो रहा है। इस पूरे माह में मंत्र जाप और पूजा में विधानों का बहुत महत्व है। जब मंत्र जाप या पूजा करते हैं तो उससे पहले विधान होता है भूमि शुद्धिकरण का। आवश्यकता होती है स्नान की। आचमन, आसन, तिलक, संकल्प, शिखा बंधन, प्राणायाम, न्यास आदि ये सब क्यों किए जाते हैं? आगे जानिए...
 
1. स्नान की आवश्यकता : प्रात:काल स्नान करने से मनुष्य शुद्ध होकर जप, पूजा-पाठ इत्यादि सभी कार्यों को करने योग्य हो जाता है। दक्ष स्मृति में कहा गया है... 
 
अत्यन्तमलिन: कायो, नवच्छिद्रसमन्यित:। 
स्रवत्येष दिवारात्रौ, प्रात: स्नानं विशोधनम।। 
 
- अर्थात 9 छिद्रों वाले अत्यंत मलिन शरीर से दिन-रात गंदगी निकलती रहती है इसलिए नित्य प्रात:काल स्नान करने से दिनभर की अशुद्धि निकल जाती है। आप जिस जल से स्नान करें, उसमें इन 7 नदियों का आवाहन कीजिए और भावना कीजिए कि इन सातों पवित्र नदियों के जल से आप स्नान कर रहे हैं : 
 
मंत्र- 
गङ्गा च यमुना चैव, गोदावरि सरस्वती।। 
नर्मदा सिंधु कावेरी, जलेस्मिन सन्निधि कुरु।। 
 
विशेष : इस मंत्र से इन सातों नदियों के स्नान का फल तो मिलता ही है, राष्ट्रीय भावना भी पुष्ट होती है। 
 
2. भूमि शुद्धिकरण : जिस स्थान पर बैठकर जप करना है, वह स्थान यदि पक्का है तो पहले से ही धो लें और यदि कच्चा है तो गाय के गोबर से लीप लें। एक बार का लीप कच्चा स्थान 4-5 दिन काम  देगा। पक्का स्थान नित्य पोछें या धोएं। 
 
लाभ- इससे बैठने का स्थान कीटाणुरहित होकर शुद्ध हो जाता है। 
 
3. आसन : कुश, कंबल, मृग चर्म, रेशम व व्याघ्र चर्म का आसन जप के लिए शुद्ध बताया गया है। इससे मन की एकाग्रता आती है। पुत्रवान गृहस्थों के लिए मृग चर्म का उपयोग निषिद्ध है। 
 
'मृगचर्म प्रयत्नेन, वर्जयेत पत्रवान गृही।'
 
4. शिखा बंधन : चोटी में गांठ लगाना। सिर में चोटी के नीचे सहस्रार चक्र होता है। चोटी में गांठ लगाने से सहस्रार चक्र नियंत्रित होता है।
 
5. आचमन : मंत्र सहित आचमन से शरीर के अंदर की शुद्धि होती है। 
 
6. तिलक या त्रिपुंड : मस्तक में तिलक या त्रिपुंड मंत्र सहित लगाना चाहिए। इससे मस्तिष्क का शुद्धिकरण होता है।
 
तिलक मंत्र :
आदित्य वसवोरुदा मरुद गणा।। 
तिलकं ते प्रयच्छन्तु, धर्मकार्थ-सिद्धये।। 
 
त्रिपुंड एवं भस्म मंत्र :
मा नस्तोके तनये मा नायुषि 
मा नो गोपु मा नोअश्वेषु रिरीप:। 
मा नो वीरान रूद्र भामिनो
वधीर्हविष्मन्तः सदमित त्वा हवामहे।।
 
7. प्राणायाम : इस क्रिया का लाभ सर्वविदित है। यह प्राणवायु का व्यायाम है। मंत्र जप करने पर प्राणवायु का प्रवाह मंत्र की ओर हो जाता है जिससे मंत्र सफलता सुनिश्चित होती है। 
 
8. संकल्प : एक निश्चित प्रतिज्ञा होती है। प्रतिज्ञा करके मन नियंत्रित होता है कि उसे इतना जप करना ही है। 
 
9. न्यास : न्यास का अर्थ है रखना या स्थापित करना। इस क्रिया में मंत्रों को शरीर के उन-उन अंगों पर स्थापित किया जाता है। इससे शरीर मंत्रमय हो जाता है। 
 
विशेष : बिना गुरु मुख का मंत्र जप फलीभूत नहीं होता। अत: आप जो मंत्र अपनी किसी कामना पूर्ति के लिए जपना चाहते हैं वह मंत्र ही उससे लें जिसे गुरु बनाना है। यदि आपको कोई मनचाहा गुरु नहीं मिल रहा तो भगवान शिव को गुरु मानकर उनकी ओर से गुरु मंत्र ग्रहण कर लें।