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Written By WD Feature Desk
Last Modified: बुधवार, 9 जुलाई 2025 (13:55 IST)

ये है सावन में भोलेनाथ को प्रसन्न करने का सबसे आसान और अचूक उपाय, हर मनोकामना होगी पूरी

Sawan 2025
sawan ke upay: सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और आराधना के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। इस पूरे माह शिव भक्त विभिन्न तरीकों से महादेव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं – कोई जलाभिषेक करता है, कोई रुद्राभिषेक, तो कोई कठिन व्रत रखता है। लेकिन, इन सबमें एक ऐसा उपाय भी है जो अत्यंत सरल, सुलभ और बेहद प्रभावशाली है – वह है शिव चालीसा का पाठ। यदि आप पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ सावन में शिव चालीसा का पाठ करते हैं, तो यह भोलेनाथ को प्रसन्न करने का सबसे आसान और अचूक उपाय साबित हो सकता है।

क्या है शिव चालीसा का महत्व (Shiva chalisa benefits)
शिव चालीसा भगवान शिव को समर्पित एक भक्तिमय स्तोत्र है, जिसमें 40 छंद (चौपाइयां) होते हैं। यह चालीसा भगवान शिव के गुणों, लीलाओं और उनके विभिन्न रूपों का वर्णन करती है। इसका पाठ करने से न केवल मन को शांति मिलती है, बल्कि यह भक्तों को भगवान शिव के करीब लाता है। शिव चालीसा का पाठ करने से भय, रोग, कष्ट और दरिद्रता दूर होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह एक ऐसा कवच है जो भक्तों को हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है।

शिव चालीसा पाठ करने का सही तरीका और लाभ
शिव चालीसा का पाठ करने के लिए किसी विशेष विधि-विधान की आवश्यकता नहीं होती, बस सच्ची श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए। पाठ करने से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन को शांत और पवित्र रखें। एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें, जहाँ आप एकाग्रता से बैठ सकें। आप अपने घर के पूजा स्थान में या किसी शिव मंदिर में भी पाठ कर सकते हैं। सावन में किसी भी समय शिव चालीसा का पाठ किया जा सकता है, लेकिन सुबह और शाम के समय इसे करना अधिक शुभ माना जाता है। सावन सोमवार के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है। पाठ करते समय अपना पूरा ध्यान भगवान शिव पर केंद्रित करें। चालीसा के हर शब्द और उसके अर्थ को समझने का प्रयास करें। यदि संभव हो तो सावन के पूरे महीने प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ करें।
 
शिव चालीसा
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।
जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।
ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
 
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