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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Modified: बुधवार, 8 जुलाई 2020 (12:52 IST)

क्या होगा श्रावण मास में व्रत रखने से, नहीं रखेंगे तो क्या होगा?

Sawan somvar vrat niyam | क्या होगा श्रावण मास में व्रत रखने से, नहीं रखेंगे तो क्या होगा?
श्रावण मास में कई लोग व्रत नहीं रखते हैं और कई लोग सिर्फ सोमवार का ही व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाले अधिकतर लोग साबूदाने की खिचड़ी, राजगिरे के आटे की रोटी या मोरधन आदि की खिचड़ी दोनों समय पेटभर कर खा लेते हैं। दरअसल यह व्रत नहीं एक प्रकार से भोजन को बदलना होता है। भोजन बदलें लेकिन उत्तम हो तो ही बेहतर होता है। खैर, सभी के मन में यह सवाल होगा कि क्या होगा यदि व्रत नहीं रखेंगे तो और रख भी लिया तो कौनसा फायदा हो जाएगा? आओ जानते हैं इस संबंध में कुछ खास बातें।
 
क्यों रखते हैं व्रत : श्रावण माह से वर्षा ऋतु का प्रारंभ होता है। इस माह में पतझड़ से मुरझाई हुई प्रकृति पुनर्जन्म लेती है। लाखों-करोड़ों वनस्पतियों, कीट-पतंगों आदि का जन्म होता है। अन्न और जल में भी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है जिनमें से कई तो रोग पैदा करने वाले होते हैं। ऐसे में उबला और छना हुआ जल ग्रहण करना चाहिए, साथ ही व्रत रखकर कुछ अच्छा ग्रहण करना चाहिए। प्रकृति में जीवेषणा बढ़ती है। मनुष्य के शरीर में भी परिवर्तन होता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। ऐसे में यदि किसी पौधे को पोषक तत्व मिलेंगे, तो वह अच्छे से पनप पाएगा और यदि उसके ऊपर किसी जीवाणु का कब्जा हो गया, तो जीवाणु उसे खा जाएंगे। इसी तरह मनुष्य यदि इस मौसम में खुद के शरीर का ध्यान रखते हुए उसे जरूरी रस, पौष्टिक तत्व आदि दे तो उसका शरीर नया जीवन और यौवन प्राप्त करता है।
 
व्रत रखने के फायदे : व्रत रखने के तीन कारण है पहला दैहिक, दूसरा मानसिक और तीसरा आत्मिक रूप से शुद्ध होकर पुर्नजीवन प्राप्त करना और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होगा। दैहिक में आपकी देह शुद्ध होती है। शरीर के भीतर के टॉक्सिन या जमी गंदगी बाहर निकल जाती है। इससे जहां शरीर निरोगी होता है वही मन संकल्पवान बनकर सुदृढ़ बनता है। देह और मन के मजबूत बनने से आत्मा अर्थात आप स्वयं खुद को महसूस करते हैं। आत्मिक ज्ञान का अर्थ ही यह है कि आप खुद को शरीर और मन से उपर उठकर देख पाते हैं।... कहते हैं कि जो श्रावण मास में कठिन व्रत रख लेता है या चातुर्मास का पालन कर लेता है उसे जीवन में कभी भी कोई गंभीर रोग नहीं होता है और वह दीर्घायु रहता है।
 
संकल्पवान बनना : व्रत रखने का मूल उद्येश्य यह भी होता है कि संकल्प को विकसित करना। संकल्पवान मन में ही सकारात्मकता, दृढ़ता और एकनिष्ठता होती है। संकल्पवान व्यक्ति ही जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता हैं। जिस व्यक्ति में मन, वचन और कर्म की दृढ़ता या संकल्पता नहीं है वह मृत समान माना गया है। संकल्पहीन व्यक्ति की बातों, वादों, क्रोध, भावना और उसके प्रेम का कोई भरोसा नहीं। ऐसे व्यक्ति कभी भी किसी भी समय बदल सकते हैं।
 
व्रत नहीं रखेंगे तो क्या होगा : अब यदि श्रावण माह में आप व्रत नहीं रखेंगे तो निश्‍चित ही एक दिन आपकी पाचन क्रिया सुस्त पड़ जाएगी। आंतों में सड़ाव लग सकता है। पेट फूल जाएगा, तोंद निकल आएगी। आप यदि कसरत भी करते हैं और पेट को न भी निकलने देते हैं तो आने वाले समय में आपको किसी भी प्रकार का गंभीर रोग हो सकता है। क्योंकि इस ऋतु में वैसे ही पाचन शक्ति कमजोर पड़ जाती है तो वही भोजन करना चाहिए जो जल्दी से सड़ता नहीं हो। अच्छा ही की फलाहार ही करेंगे तो जिस तरह प्रकृति पुन: नया जीवन पा लेती हैं उसी तरह आप भी अपने शरीर में पुन: नव जीवन प्राप्त कर सकते हैं। 
 
व्रत का अर्थ पूर्णत: भूखा रहकर शरीर को सूखाना नहीं बल्कि शरीर को कुछ समय के लिए आराम देना और उसमें से जहरिलें तत्वों को बाहर करना होता है। पशु, पक्षी और अन्य सभी प्राणी समय समय पर व्रत रखकर अपने शरीर को स्वास्थ कर लेते हैं। शरीर के स्वस्थ होने से मन और मस्तिष्क भी स्वस्थ हो जाते हैं। अत: रोग और शोक मिटाने वाले चतुर्मास में कुछ विशेष दिनों में व्रत रखना चाहिए। डॉक्टर परहेज रखने का कहे उससे पहले ही आप व्रत रखना शुरू कर दें।
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