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Written By WD

शिवजी की भोली माया

आसानी से प्रसन्न हो जाते है भोले शंकर

Shiva and Parvati | शिवजी की भोली माया
महाशिवरात्रि की रात भगवान शिव और पार्वती के मंगल की रात है। इसी दिन यानी फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को कभी शिव-पार्वती का विवाह हुआ था।

भक्तगण इस दिन उन्हें बेलपत्र, धतूरे के फूल, बेर, गन्ने की गंडेरिया, भांग की गोली वगैरह का प्रसाद चढ़ाकर शिव को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं।

एक किस्सा ऐसा भी है कि फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को देव-असुर जब समुद्र मंथन कर रहे थे, तब निकले हुए विष को शिवजी ने पी लिया था और बेहोश हो गए थे। उनके ठीक हो जाने के लिए सारे देवताओं ने उपवास रख रातभर जागरण किया था। उसी की याद में शिवरात्रि को इस तरह का व्रत रखने का चलन शुरू हो गया।

शंकरजी का कहना है कि उस तिथि पर स्नान, पुष्प, पूजा से अधिक उपवास से खुश होते हैं। शंकरजी का क्या कहना। वे तो भोले शंकर हैं। कोई अनजाने में भी थोड़ा कुछ कर दे तो प्रसन्न हो जाते हैं।


एक पौराणिक कहानी के अनुसार

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कहीं किसी पहाड़ी की तलहटी में फैले जंगल के छोर पर एक शिकारी रहता था। नाम था सुंदर सेनक। नाम की ही तरह सुंदर पशु-पक्षियों का शिकार कर वह अपना पेट भरता था। एक बार संयोग से इसी रात वह जंगल में शिकार करने गया। दयालु पार्वतीजी की ही माया कहिए, एक भी जानवर उसकी चंगुल में नहीं आया। वे सबको बचा ले गईं।

शिकारी और उसका कुत्ता अंधेरी रात में कहीं दूर भटक गए। पैर में कांटे लगे, भूख-प्यास से हाल बेहाल हुए सो अलग।

बड़े संयोग की ही बात थी कि वे भटकते हुए एक तालाब किनारे जा पहुंचे जिसके किनारे पर एक बेलपत्र का पेड़ था और पेड़ के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। थके हुए शिकारी ने गर्मी से राहत के लिए पानी में उतर कर पैरों को ठंडक दी और हाथ-मुंह धोया तो पानी के कुछ छींटे शिवलिंग पर भी जा उड़े।

भूख मिटाने के लिए बेल फलों को गिराने के लिए उसने कुछ तीर पेड़ पर चलाए तो कुछ पत्ते टूटकर नीचे शिवलिंग पर आ गिरे। बिखरे हुए तीरों को अंधेरे में टटोलते हुए वह शिवलिंग के सामने झुका भी। शिवरात्रि पर जागरण के साथ ही अनजाने में ही उसने शिवलिंग को जल से नहलाया, बेल पत्र चढ़ाए और दंडवत भी किया। भोले शंकर थे कि इस पर भी प्रसन्न हो गए।

सालों बाद शिकारी की उम्र का पट्टा खत्म हुआ तो उसे लेने यमदूत आए और अनजाने में किए पुण्य के कारण शिवगण भी उसे कैलाश पर्वत ले जाने पहुंचे। दोनों में युद्ध हुआ और आखिर शिवगण उसे अपने साथ ले जाकर ही माने। जिंदगी भर किए पाप के बावजूद चंद मिनटों के पुण्य ने शिकारी और उसके कुत्ते को मोक्ष का अधिकारी बना दिया