मंगलवार, 4 मार्च 2025
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Written By WD

भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतरण

भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतरण - भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतरण
Shivji| शिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण त्रयोदषी को होता है। कुछ लोग चतुर्दशी के दिन भी इस व्रत को करते हैं। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्माण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं, इसलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया है।
 
तीनों भुवनों की अपार सुन्दरी तथा शीलवती गौरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकारी ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री सम्पत्ति प्रदान करते हैं।
 
काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्व, शूद्र, नर-नारी, बालक-वृद्ध हर कोई कर सकता है।
 
व्रत-पूजन कैसे करें
1. इस दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर अनशन व्रत रखना चाहिए।
 
2. पत्र-पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ-साथ गौरी-शंकर और नंदी की मूर्ति रखनी चाहिए।
 
3. यदि इस मूर्ति का नियोजन न हो सके तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लेना चाहिए।
 
4. कलश को जल से भरकर रोली, मौली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेलपत्र, कमौआ आदि का प्रसाद शिवजी को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। पूजन विधि विस्तृत में पृथक से दी गई है, उसे पूजन से पूर्व एक बार अवश्य पढ़ लें।
 
5. रात को जागरण करके शिव की स्तुति का पाठ करना चाहिए। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ मंगलकारी है। शिव आराधना स्तोत्रों का वाचन भी लाभकारी होता है।
 
6. इस जागरण में शिवजी की चार आरती का विधान जरूरी है।
 
7. शिवरात्रि की कथा कहें या सुनें।
 
8. दूसरे दिन प्रातः जौ, तिल-खीर तथा बेलपत्रों का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करना चाहिए। इस विधि तथा स्वच्छ भाव से जो भी यह व्रत रखता है, भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे अपार सुख-सम्पदा प्रदान करते हैं।
 
9. भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेध को खा लेता है, वह नरक के दुःखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति का रहना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम हों तो नैवेध खाने का कोई दोष नहीं होता।