खुद को साईं बाबा का अवतार कहते हैं ये 3 लोग
शिरडी के साईं बाबा मुस्लिमों के सामने कहते थे राम भला करेगा और हिन्दुओं के सामने कहते थे अल्लाह मालिक है। वे मस्जिद में रहते थे और भजन गाते थे। भिक्षुओं की तरह भिक्षाटन करते और धूनी रमाते थे। ऐसी मान्यता है कि 1918 में सांई बाबा ने समाधि लेने के पूर्व कहा था कि वे जल्द ही फिर से जन्म लेंगे अर्थात अवतार लेंगे, लेकिन उनके यह कहने के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं। इसी तरह की बातों को चलते कुछ लोग खुद को सांई का अवतार कहते हैं और आने वाले समय में भी ऐसा ही होगा।
वर्तमान में साईं के माध्यम से रुपया कमाने वाले बहुत मिल जाएंगे। उनमें से कुछ लोगों ने खुद को सांई बाबा बताया और अपना एक साम्राज्य खड़ा कर लिया। हालांकि उन्होंने इसके माध्यम से बहुत अच्छे सामाजिक कार्यों को करके एक अच्छा और सराहनीय कार्य किया है। ऐसे में उन्हें अच्छा या बुरा कहना उचित नहीं होगा। 3 लोगों के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1. सत्य सांई बाबा : सत्य सांई बाबा का जन्म 23 नवम्बर 1926 को आंध्रप्रदेश के पुट्टपर्ती गांव में हुआ। जन्म नाम सत्यनारायण राजू। सत्यनारायण राजू ने ही सर्वप्रथम 1940 को स्वयं को सांई बाबा घोषित किया था। बड़े-बड़े झबरीले बाल और शांत स्वभाव के राजू के भक्तों की संख्या लाखों में है। देशी-विदेशी सभी तरह के भक्त पुट्टपर्ती के 'प्रशांति निलयम' में इकट्ठा होकर बाबा का दर्शन लाभ लेते थे। इनके चरणों में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री शीश नवाते थे। हालांकि 24 अप्रैल 2011 में उनका देहांत हो गया है।
2. साईं दास बाबा : 13 अक्टूम्बर 1945 को श्रीकांत मिश्रा का जन्म हुआ। ये बैतूल के रहने वाले हैं। इनके भी बाल सत्य सांई बाबा जैसे झबरीले हैं। ये भी मोटे-तगड़े लेकिन शांत और सरल स्वभाव के हैं। लोग इन्हें भी सांई का अवतार मानते हैं लेकिन इन्होंने कभी खुद को साईं का अवतार नहीं माना। वे खुद को साईं का दास मानते थे। हाला ही में इन्होंने समाधी ले ली है।
3. अनिरुद्ध बापू : कहते हैं कि साईं बाबा ने समाधि लेने के पूर्व अपनी कुछ वस्तुएं अपने प्रिय शिष्य को दी थी और कहा था कि मैं जब फिर से जन्म लूंगा तो यह वस्तुएं लेने आऊंगा। तब से ही ये वस्तुएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुरक्षित रखी गईं, फिर एक दिन एक व्यक्ति ने आकर कहा मेरी वस्तुएं मुझे दो और उक्त वस्तुओं के उसने नाम भी बताए। वह व्यक्ति ही सांई हैं ऐसा अनिरुद्ध के भक्त कहते हैं।
अनिरुद्ध जोशी का जन्म 18 नवंबर 1956 में महाराष्ट्र के मुंबई में त्रिपुरारी पूर्णिमा के दिन हुआ। डॉ. अनिरुद्ध जोशी ने भी स्वयं को साईं घोषित कर रखा है। उनके भक्त उन्हें अनिरुद्ध बापू या साईं कहते हैं। ये उक्त सांई जैसा चोगा नहीं पहनते बल्कि सूट-बूट में रहते हैं। इनके भक्त शनिवार के दिन इनकी आराधना करते हैं। उन्होंने अपने नाम का मंत्र भी निकाला है।