हिन्दू धर्म अनुसार शनिवार भगवान शनिदेव का वार माना जाता है। शनिदेव शनि ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि ग्रह के कारण ही कुंडली में साढ़े साती और ढैय्या का गोचर होता है। आओ जानते हैं भगवान शनिदेव का अनजाने 25 राज।
नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
1. शमी के वृक्ष को साक्षात शनिदेव और शनि ग्रह का कारक माना जाता है। इसकी पूजा करने से शनिदेव की कृपा मिलती रहती है।
2. सूर्य पुत्र शनिदेव के यमराज, वैवस्वत मनु और कुंती पुत्र कर्ण भाई हैं। यमुना उनकी बहन है। इस सभी के पिता सूर्य ही हैं।
3. बचपन में पिता से रूष्ठ होकर शनिदेव घर छोड़कर कहीं चले गए थे। हनुमानजी ने उन्हें अपनी पूंछ से पकड़कर पुन: उनके घर पहुंचा दिया था।
4. एक बार शनिदेव को रावण ने बंधक बनाकर कारागार में डाल दिया था। लंका दहन के दौरान हनुमानजी ने शनिदेव को मुक्त कराया था। सभी से शनिदेव ने वचन दिया था कि मैं हनुमान भक्त को कभी भी परेशान नहीं करूंगा।
5. हनुमानजी को छोड़कर शनिदेव ने सभी को अपनी दृष्टि से आघात पहुंचाया है। उनकी दृष्टि के कारण ही गणेशजी के मस्तक कटकर चंद्रलोक में चला गया था। तब उनके धड़ पर हाथी का मस्तक लगाया गया।
6. जनश्रुति कथा के अनुसार मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था तब स्वर्ग से सभी देवताओं के सात शनिदेव की कृष्ण के बाल रूप को देखने मथुरा आए थे। नंदबाबा को जब यह पता चला तो उन्होंने भयवश शनिदेव को दर्शन कराने से मना कर दिया। नन्द बाबा को लगा कि शनिदेव की दृष्टि पड़ते ही कहीं कृष्ण के साथ कुछ अमंगल न हो जाए। तब मानसिक रूप से शनिदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से दर्शन देने की विनती की तो कृष्ण ने शनिदेव को कहा कि वे नंदगांव के पास के वन में जाकर तपस्या करें, वहीं मैं उन्हें दर्शन दूंगा। बाद में शनिदेव की तपस्या से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और कोयल के रूप में उन्होंने शनिदेव को दर्शन दिया।
7. एक कथा के अनुसार भगवान शनिदेव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ माना जाता है। लेकिन स्कंदपुराण के काशीखंड अनुसार शनि भगवान के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। उनकी माता को संवर्णा भी कहते हैं। शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था। हालांकि कुछेक ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद मास की शनि अमावस्या को माना गया है।
8. सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ और फिर संज्ञा ने ही सूर्यदेव के ताप से बचने के लिए संज्ञान ने अपने तप से अपना प्रतिरूप संवर्णा को पैदा किया और संज्ञा ने संवर्णा से कहा कि अब से मेरे बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी तुम्हारी रहेगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिए। संज्ञा उसे सूर्यदेव के महल में छोड़कर चली गई। सूर्यदेव ने उसे ही संज्ञा समझा और सूर्यदेव और संवर्णा के संयोग से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।। संज्ञा का प्रतिरूप होंने के कारण संवर्णा का एक नाम छाया भी हुआ।
9. कहते हैं कि जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव का कठोर तपस्या किया था। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान यानि शनिदेव पर भी पड़ा। फिर जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनका रंग काला निकला। यह रंग देखकर सूर्यदेव को लगा कि यह तो मेरा पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।
10. मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव उनकी शक्ति से काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। अपनी यह दशा देखकर घबराए हुए सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव को अपने किए का पश्चाताप हुआ, उन्होंने क्षमा मांगी तब कहीं उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन इस घटना के चलते पिता और पुत्र का संबंध हमेशा के लिए खराब हो गया।
11. शनिदेव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। कहीं-कहीं इन्हें कौवे या भैंसे पर सवार भी बताया गया है। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं। इन्हें यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि नामों से जाना जाता है।
12. ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया था। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
13. कहते हैं कि शनिदेव की दृष्टी एक बार शिव पर पड़ी तो उनको बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा और एक बार तो उन्हें हाथी बनकर भी रहना पड़ा था। रावण पर पड़ी तो उनको भी असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा।
14. एक बार रामजप में बाधा डालने के बारण शनिदेव को हनुमानजी ने अपनी पूंछ में लपेट लिया था और अपना रामकार्य करने लग गए थे। इस दौरान शनिदेव को कई चोटे आई। बाद में जब हनुमानजी को याद आया तो उन्होंने शनिदेव को मुक्त किया। तब शनिदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने कहा कि आज के बाद में रामकार्य और आपके भक्तों के कार्य में कोई बाधा नहीं डालूंगा।
15. शनिदेव के कई सिद्ध पीठ हैं। 1. शनि शिंगणापुर : महाराष्ट्र के शिंगणापुर में स्थित है शनिदेव का चमत्कारिक स्थान। कहते हैं कि यहीं पर शनिदेवजी का जन्म हुआ था। 2. शनिश्चरा मन्दिर : मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास स्थित है शनिश्चरा मन्दिर। इसके बारे में किंवदंती है कि यहां हनुमानजी के द्वारा लंका से फेंका हुआ अलौकिक शनिदेव का पिण्ड है। 3. सिद्ध शनिदेव : उत्तरप्रदेश के कोशी से छह किलोमीटर दूर कौकिला वन में स्थित है सिद्ध शनिदेव का मन्दिर। यहां शनिदेवजी कठोर तप करके श्रीकृष्ण के दर्शन प्राप्त किए थे।
16. गुजरात के भावनगर के सारंगपुर में विराजने वाले कष्टभंजन महाराजाधिराज हनुमान दादा की यहां स्थित मूर्ति के चरणों में शनि महाराज विराजमान हैं। कहा जाता है कि एक समय था, जब शनिदेव का पूरे राज्य पर आतंक था। आखिरकार भक्तों ने अपनी फरियाद बजरंग बली से की। भक्तों की बातें सुनकर हनुमानजी शनिदेव को मारने के लिए उनके पीछे पड़ गए। अब शनिदेव के पास जान बचाने का आखिरी विकल्प बाकी था, सो उन्होंने स्त्री रूप धारण कर लिया क्योंकि उन्हें पता था कि हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी हैं और वे किसी स्त्री पर हाथ नहीं उठाएंगे। लेकिन कहते हैं कि भगवान राम के आदेश से उन्होंने स्त्री-स्वरूप शनिदेव को अपने पैरों तले कुचल दिया और गांव को शनिदेव के अत्याचार से मुक्ति कराया।
17. आकाश में शनि ग्रह वायव्य दिशा में दिखाई देते हैं। वायव्य दिशा के स्वामी भगवान पवनदेव हैं। खगोल विज्ञान के अनुसार शनि का व्यास 120500 किमी, 10 किमी प्रति सेकंड की औसत गति से यह सूर्य से औसतन डेढ़ अरब किमी. की दूरी पर रहकर यह ग्रह 29 वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है। गुरु शक्ति पृथ्वी से 95 गुना अधिक और आकार में बृहस्पती के बाद इसी का नंबर आता है। माना जाता है कि अपनी धूरी पर घूमने में यह ग्रह नौ घंटे लगाता है।
19. पुराण कहते हैं कि शनि को परमशक्ति परमपिता परमात्मा ने तीनों लोक का न्यायाधीश नियुक्त किया है। शनिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को भी उनके किए की सजा देते हैं और ब्रह्मांड में स्थित तमाम अन्यों को भी शनि के कोप का शिकार होना पड़ता है।
20. पुराण कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय करता है तो वह शनि की वक्र दृष्टि से बच नहीं सकता। शराब पीने वाले, माँस खाने वाले, ब्याज लेने वाले, परस्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले और ताकत के बल पर किसी के साथ अन्याय करने वाले का शनिदेव 100 जन्मों तक पीछा करते हैं।
21. ज्योतिषियों अनुसार शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। यह धरती और शरीर में जहाँ भी तेल और लौह तत्व है उस पर राज करते हैं। शरीर में दाँत, बाल और हड्डियों की मजबूत या कमजोरी का कारण यही हैं।
22. यदि आपकी कुंडली में शनिदोष है तो आपको झूठ बोलना, दूसरे की स्त्री, ब्याज का धंधा और शराब से दूर रहना चाहिए।
23. धरती के सभी लौह अयस्क, तेल और काला पत्थर पर शनि का प्रभाव रहता है।
24. शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है। कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक घर या दुकान में आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह से नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी।
25. पंचमहायोग में से एक है शश योग शनि ग्रह के कारण ही बनता है। यदि आप हनुमानजी की पूजा करते हैं, छाया दान करते हैं, स्त्री, गरीब, अंधे, मेहतर और अपने से बड़े लोगों का सम्मान करते हैं तो आपको शनिदेव कभी भी परेशान नहीं करेंगे।