गंगा को सहेजने हेतु न्यायपूर्ण व्यवहार जरूरी
सदाचार से ही मिटेगा गंगा में भ्रष्टाचार
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राजेन्द्र सिंह गंगा का संकट बढ़ता ही जा रहा है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करते हुए कहा था कि गंगा मेरी मां है। सरल, सहज, सदाचारी प्रधानमंत्री ने गंगा को 4 नवम्बर, 2008 में राष्ट्रीय नदी घोषित करके अपनी पार्टी की 2009 के लोकसभा चुनाव में विजय प्राप्त कर ली थी लेकिन अपनी अन्य व्यस्तताओं में वे फिर गंगा को भूल गए या भ्रष्टाचारियों ने भुलवा दिया। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण, राष्ट्रीय नदी गंगा की अविरलता-निर्मलता एवं पदोचित सम्मान दिलाकर राष्ट्र को दिखलाता तो भारतीय समाज प्रधानमंत्री को आज भी वैसा ही मानता जैसा गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के समय मानता था। दरअसल, गंगा की अविरलता-निर्मलता हेतु गंगा पर बन रहे बांध बनाना बंद करना था। 135 किलोमीटर गंगा का ऊपरी भाग संवेदनशील घोषित किया गया है। इसे अंतिम रूप से अधिसूचित करना था। सच तो यह है कि वोट-नोट और माफिया तीनों शक्तियां लोगों में डर पैदा कर रही हैं। इसीलिए भ्रष्टाचार पनप रहा है। सदाचार मर रहा है। गंगा मैया को इन्होंने ही मैला ढोने वाली मालगाड़ी बनाया है। यदि राष्ट्रीय नदी भ्रष्टाचार के दलदल में न फंसती तो गंगा कार्ययोजना 2020 निर्मित और पारित होने तक गंगा पर इतना खर्च नहीं किया जाता। इन जटिल हालात में ही प्रधानमंत्री जी विश्वास दिलाते कि गंगा जैसे उनकी मां है, वैसे ही सबकी मां है। उन्होंने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करते हुए जो कहा था उसी भाव को क्रियान्वित कराते। इसी रास्ते गंगा भ्रष्टाचार मुक्त बनती। यह कार्य प्रधानमंत्री के लिए सहज करने योग्य है। इसलिए वे तत्काल प्रभाव से इसे शुरू कराएं। उनकी तनिक भी देरी पर्यावरण से प्रेम करने वालों के लिए निराशा का सबब बन सकती है।पर विडंबना यह है कि प्रधानमंत्री भी मैला ढोने वाली आज की गंगा की तरह भ्रष्टाचार की गाड़ी के चालक कहे जा रहे हैं। क्योंकि गंगा में भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता जा रहा है। हमारे साफ छवि वाले प्रधानमंत्री को जल्द ही अपनी छवि बचाने हेतु गंगा को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने में जुटना चाहिए। गंगा का भ्रष्टाचार हमे दुनिया में बदनामी दिलाने वाला काम है। गंगा में सदाचार पुनर्जीवित करने के लिए सबसे पहले गंगा को सहेजने हेतु उसके लेन-देन का न्यायपूर्ण व्यवहार जरूरी है। गंगा से जैसा-जितना लें, उतना ही गंगा की प्रकृतिनुकूल वैसा ही उसे वापस दें। लेन-देन के इसी संतुलन से भारतीय समाज आगे बढ़ता रहा है। गंगा पर अतिक्रमण, प्रदूषण, शोषण करने वालों को रोका जाए। गंगा में लुटेरों की लूट से ग्रामीणों का जल-जंगल-जमीन, मछली सभी कुछ इनके हाथों से निकल रहा है। यही तो आज का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। इसे रोकने वाले सदाचारी आज भी गंगा को प्यार करने वाले हैं। इसे स्वीकार करके हम आगे बढ़ें तो ही भ्रष्टाचार मिटेगा। सदाचार का सम्मान पाकर भारत राष्ट्र आगे बढ़ेगा। गंगा को तथा गंगा भक्तों को उनका हक प्राप्त होगा। इसीलिए पहल करके प्रधानमंत्री गंगा के जल-जंगल-जंगली जीवों को बचाते। गंगा किनारे के समाज को संगठित करके गंगा की अविरलता-निर्मलता हेतु कुछ भी शुरू करके समाज को इस कार्य में जोड़ देते। बेहतर भारत बनाते। गंगा के दोनों किनारे पेड़ लगवाते, जोहड़ बनाते। भारतीय आस्था जगाते। पर्यावरणीय रक्षा करते। पर्यावरण प्रेमी बनते। पर्यावरण प्रेमी सदाचारी होते हैं। पर्यावरण बिगाड़ने वाला भ्रष्टाचारी होता है। इनकी पहचान करके समाज को भी पहचान कराते लेकिन प्रधानमंत्री ने गंगा प्राधिकरण अध्यक्ष के नाते गंगा को समय नहीं दिया। इसीलिए प्रधानमंत्री की घोषणाओं के अनुरूप काम आगे नहीं बढ़ा। अब गंगा के बेटों ने गंगा को राष्ट्रीय प्रतीक मानकर राष्ट्र नदी घोषित कर ही दिया है। पदोचित सम्मान देने की व्यवस्था बनाने के लिए गंगा की नीति और नियम-कानून व कायदे बनाने की जरूरत है। यह सब कार्य गंगा पुत्रों को अब जल्दी करने चाहिए। अब तो संत-महात्मा भी गंगा के लिए त्याग-तपस्या पर उतर आए हैं। इनमें स्वामी ज्ञान स्वरूप सानन्द जी, अविमुक्तेश्वरा नन्द जी के साथ एक बड़ी सूची ऐसे ही लोगों की जुड़ती जा रही है। अब भी वक्त है। भारत की संसद चल रही है।(
लेखक तरुण भारत संघ के अध्यक्ष हैं।)