कहते हैं कि श्रेष्ठ विचारों से संपन्न व्यक्ति की जुबान पर मां सरस्वती विराजमान रहती है। बोलने से ही सत्य और असत्य होता है। अच्छे वचन बोलने से अच्छा होता है और बुरे वचन बोलने से बुरा, ऐसा हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं। लेकिन हमारे आज के राजनीतिज्ञ जो बयानबाजी कर रहे हैं उससे लगता है कि हम पर मूर्ख और हत्यारे लोग राज कर रहे हैं। जिस देश में ऐसे लोगों का राज होगा, उस देश का भगवान ही मालिक है।
बोलने से ही हम जाने जाते हैं और बोलने से ही हम विख्यात या कुख्यात भी हो सकते हैं। उतना ही बोलना चाहिए जितने से जीवन चल सकता है। व्यर्थ बोलते रहने का कोई मतलब नहीं। भाषण या उपदेश देने से श्रेष्ठ है कि हम बोधपूर्ण जीवन जीकर उचित कार्य करें।
मनुष्य को वाक क्षमता मिली है तो वह उसका दुरुपयोग भी करता है, जैसे कि कड़वे वचन कहना, श्राप देना, झूठ बोलना या ऐसी बातें कहना जिससे कि भ्रमपूर्ण स्थिति का निर्माण होकर देश, समाज, परिवार, संस्थान और धर्म की प्रतिष्ठा गिरती हो।
आज के युग में संयमपूर्ण कहे गए वचनों का अभाव हो चला है। जब देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे लोग ही खराब और बुरे वचन बोलने में लगे हैं तो आम जनता भी कुछ हद तक उनका अनुसरण करती है।
वैदिक युग के ऋषियों ने हमारे बोल वचन को (वाणी) को 4 भागों में बांटा है। आइए जानते हैं सबसे पहले सबसे उत्तम प्रकार और फिर क्रमश: निम्नतर...अगले पन्ने पर...