उत्तर : पूजा और आरती शब्द से पहले संध्यावंदन और संध्योपासना शब्द प्रचलन में था। संधिकाल में ही संध्यावंदन करने का विधान है। वैसे संधि 8 वक्त की होती है जिसे 8 प्रहर कहते हैं। 8 प्रहर के नाम : दिन के 4 प्रहर- पूर्वाह्न, मध्याह्न, अपराह्न और सायंकाल। रात के 4 प्रहर- प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा। उषाकाल और सायंकाल में संध्यावंदन की जाती है।
संध्यावंदन के समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। वेदज्ञ और ईश्वरपरायण लोग इस समय प्रार्थना करते हैं। ज्ञानीजन इस समय ध्यान करते हैं। भक्तजन कीर्तन करते हैं। पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष इस समय पूजा या आरती करते हैं। तब सिद्ध हुआ कि संध्योपासना या हिन्दू प्रार्थना के 4 प्रकार हो गए हैं- 1. प्रार्थना-स्तुति, 2. ध्यान-साधना, 3. कीर्तन-भजन और 4. पूजा-आरती। व्यक्ति की जिसमें जैसी श्रद्धा है, वह वैसा ही करता है।
घर में पूजा का प्रचलन : कुछ विद्वान मानते हैं कि घर में पूजा का प्रचलन मध्यकाल में शुरू हुआ, जबकि हिन्दुओं को मंदिरों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कई मंदिरों को तोड़ दिया गया था। हालांकि घर में पूजा करने से किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं। घर में पूजा नित्य-प्रतिदिन की जाती है और मंदिर में पूजा या आरती में शामिल होने के विशेष दिन नियुक्त हैं, उसमें भी प्रति गुरुवार को मंदिर की पूजा में शामिल होना चाहिए।
घर में पूजा करते वक्त कोई पुजारी नहीं होता जबकि मंदिर में पुजारी होता है। मंदिर में पूजा के सभी विधान और नियमों का पालन किया जाता है, जबकि घर में व्यक्ति अपनी भक्ति को प्रकट करने के लिए और अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए पूजा करता है। लाल किताब के अनुसार घर में मंदिर बनाना आपके लिए अहितकारी भी हो सकता है। घर में यदि पूजा का स्थान है तो सिर्फ किसी एक ही देवी या देवता की पूजा करें जिसे आप अपना ईष्ट मानते हैं।
गृहे लिंगद्वयं नाच्यं गणेशत्रितयं तथा।
शंखद्वयं तथा सूर्यो नार्च्यो शक्तित्रयं तथा।।
द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्राम शिलाद्वयम्।
तेषां तु पुजनेनैव उद्वेगं प्राप्नुयाद् गृही।।
अर्थ- घर में 2 शिवलिंग, 3 गणेश, 2 शंख, 2 सूर्य, 3 दुर्गा मूर्ति, 2 गोमती चक्र और 2 शालिग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है।