भूमि पर बैठकर भोजन क्यों करते हैं?
हिन्दू धर्मानुसार भोजन को जिस भी तरीके और भावना के साथ ग्रहण किया जाता है वह वैसा ही फल देता है। हालांकि इसके और भी कई कारण है। प्राचीनकाल या वैदिक काल में हर तरह के लकड़ी के निर्माण किए गए थे तो क्या डाइनिंग टेबल नहीं बनाई जा सकती थी? नहीं बनाई क्योंकि वैदिक ऋषि और मुनियों के अनुसार आसन बिछाकर उस पर पालथी मारकर बैठकर भोजन करना ही श्रेष्ठ था।
भोजन करने के तरीके ही नहीं दिशा भी निर्धारित थी। हाथ-पैर, मुंह धोकर आसन पर पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके भोजन करने से यश एवं आयु बढ़ती है। खड़े-खड़े, जूते पहनकर सिर ढंककर भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन को अच्छी तरह चबाकर करना चाहिए। वरना दांतों का काम आंतों को करना पड़ता है जिससे भोजन का पाचन सही नहीं हो पाता। भोजन करते समय मौन रहना चाहिए।
वैज्ञानिक तर्क :– आलथी पालथी लगाकर बैठने को योग में सुखासन कहते हैं। इस तरह बैठकर भोजन करने से पाचन क्रिया अच्छी रहती हैं और मोटापा, अपच, कब्ज, एसिडिटी आदि पेट की बीमारियां नहीं होती हैं। इस तरह भोजन करने से भोजन करने में आनंद मिलता है जिसके काणर भोजन के गुण धर्म नहीं बदलते हैं और वह अच्छा लाभ देता है। उपर लिख आएं हैं कि भोजन को अच्छी भावना और आनंदपूर्वक करना सबसे महत्वपूर्ण है।
इस तरीके से भोजन करने से खून के संचालन में भी सुधार होता है जिसके चलते हृदय सहित सभी अंगों को खून का वितरण सही होता है। कुर्सी पर बैठकर खाना खाने से ब्लड सर्कुलेशन पर विपरित असर पड़ता है। भूमि पर बैठकर भोजन करने से भोजन पर आप पूर्णत: ध्यान लगा पाते हैं, जिसके कारण भोजन के गुणतत्व बढ़ जाते हैं।
हिन्दू धर्म में भोजन करते वक्त भोजन की सात्विकता के अलावा अच्छी भावना और अच्छे वातावरण और आसन का बहुत महत्व माना गया है। यदि भोजन के सभी नियमों का पालन किया जाए तो व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता। हिन्दू धर्म अनुसार भोजन शुद्ध होना चाहिए, उससे भी शुद्ध जल होना चाहिए और सबसे शुद्ध वायु होना चाहिए। यदि यह तीनों शुद्ध है तो व्यक्ति कम से कम 100 वर्ष तो जिंदा रहेगा।