भगवान शिव का वीरभद्र अवतार, जानिए 7 रहस्य
शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। कहीं कहीं उनके 24 तो कहीं उन्नीस अवतारों के बारे में उल्लेख मिलता है। वैसे शिव के अंशावतार भी बहुत हुए हैं। हालांकि शिव के कुछ अवतार तंत्रमार्गी है तो कुछ दक्षिणमार्गी। आओ इस बार जानते है शिव के अवतार वीरभद्र के बारे में।
1. वीरभद्र उत्पत्ति कथा : शिवजी के ससुर दक्ष प्रजापति ने एक विशालय यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी ऋषि, मुनी, देवी और देवताओं को बुलाया था। इस यज्ञ में दक्ष ने शिव और सती को नहीं बुलाया था। माता सती अपने पति महादेव की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता दक्ष प्रजापति के द्वारा आयोजित इस यज्ञ में गई थीं। वहां शिव के अपमान के चलते उन्होंने यज्ञ में कूदकर खुद को जला लिया। यह समाचार जब शिव को मिला तो क्रोधवश भगवान शिव ने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे पर्वत के उपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर शिव के सामने रख दिया था। बाद में भगवान शिव ने राजा दक्ष के सिर पर बकरे का सिर लगा कर उन्हें जिंदा कर दिया था। चूंकि वीरभद्र शिव से ही उत्पन्न हुए थे तो उन्हें शिव का अंशावतार ही माना गया।
2. शिव के गण : बाद में शिव ने वीरभद्र को अपने गणों में शामिल कर लिया था। उनके गणों में भैरव को सबसे प्रमुख माना जाता है। उसके बाद नंदी का नंबर आता और फिर वीरभ्रद्र।
3. वीरभद्र और नृसिंह : भगवान नृसिंह का जब क्रोध शांत नहीं हुआ तो सभी देवताओं के शिव से निवेदन किया। ऐसे में शिव ने वीरभद्र को भेजा। वीरभद्र ने शिव की आज्ञा से जाकर सबसे पहले नृसिंह की स्तुति की फिर उनसे क्रोध शांत करने का विनय किया परंतु इसे नृसिंह भगवान का क्रोध और भड़कर गया। उनके क्रोध से भयभीत वीरभद्र आकाश में जाकर छुप गए। तब स्वयंभ भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे गए तथा उनकी स्तुति करने लगे, लेकिन नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि फिर भी शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। तब नृसिंह भगवान ने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।
4. प्रथम रुद्रावतार : वीरभद्र को शिव का प्रथम रुद्रावतार माना जाता है।
5. भद्रकाली और वीरभद्र : कहते हैं कि जब वीरभद्र ने दक्ष का यज्ञ ध्वंस कर दिया तब प्रजापती दक्ष ने विष्णु को युद्ध करने के लिए बुलाया। विष्णु ने युद्ध करने का वचन दिया। वीरभद्र भगवान विष्णु से युद्ध करते वक्त तनिक भी विचलित नहीं हुए। किन्तु अंत में भगवान विष्णु ने उन्हें एक पाश में बांध लिया। तब भगवान शिव ने अपनी जटाओं से भद्रकाली को अवतरित कर वीरभद्र की सहायता के लिए भेजा और उन्हें बचाया गया। भगवान विष्णु अपने वचन की पूर्ति होने पर युद्ध मैदान से चले गए। इसके बाद वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष का सिर धड़ से अलग कर उनके सिर को उसी यज्ञाग्नि में जला दिया जिसमें माता सती ने आत्मदाह करने का प्रण लिया था।
6. वीरभद्र मंदिर : भगवान शिव के गण वीरभद्र की दक्षिण भारत में शिवजी की तरह ही पूजा अर्चना होती है। वीरभद्र मंदिर, लेपाक्क्षी गांव में स्थित है। यह मंदिर, दक्षिण भारत में काफी विख्यात है और यहां सारे देश से दर्शनार्थी दर्शन करने आते है। इस मंदिर में भगवान वीरभद्र की पूजा की जाती है। वीरभद्र मंदिर को 16 वीं शताब्दी में विजयनगर के राजा के द्वारा बनवाया गया था।
7. जाटों के पितृ पुरुष वीरभद्र : ठाकुर देशराज: जाट इतिहास, महाराजा सूरजमल स्मारक शिक्षा संस्थान, दिल्ली, 1934, पेज 87-88 पर लिखते हैं कि जाट समाज के कुल भी उत्पत्ति वीरभद्र के कारण ही हुई है। वे जाट समाज के पूर्वज हैं। हालांकि इसकी हम पुष्टि नहीं करते हैं।
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