मंगलवार, 12 नवंबर 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

आजाद भारत के महान दार्शनिक और संत

आजाद भारत के महान दार्शनिक और संत | Hindu saints
1850 से 1960 के बीच भारत में सैंकड़ों महान आत्माओं का जन्म हुआ। राजनीति, धर्म, विज्ञान और सामाजिक क्षेत्र के अलावा अन्य सभी क्षेत्र में भारत ने इस काल खंड में जो ज्ञान पैदा किया उसकी गूंज अभी भी दुनिया में गूंज रही है। आज की युवा पीढ़ी को भारत की इन महान आत्माओं के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहिए और इनके दर्शन को समझना चाहिए।
 
देश और विदेश में भारत के इन संतों ने भारतीय दर्शन, योग और धर्म की महानता को स्थापित कर भारत के बारे में विदेशियों का नजरिया बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं संतों की बदौलत हमें भारत पर गर्व है। इन्हीं में से कुछ ने अपने स्वतंत्र विचार और दर्शन को भी स्थापित कर एक नए समाज की रचना की। आओ जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रमुख विचारकों और संतों का संक्षिप्त परिचय...
 
स्वामी विवेकानंद ने भारत की आजादी को विवेकानंद नामक अपनी देह में नहीं देखा। नरेन्द्रनाथ दत्त अर्थात विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ। 4 जुलाई 1902 को कोलकाता में ही उन्होंने देह त्याग दी। उसी तरह आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में एवं मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 में हुई। लेकिन इन दोनों के विचारों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनकारियों को प्रेरित किया।
 
एनी बेसेंट
1 अक्टूबर 1847 को एनी का जन्म लंदन में हुआ। 1889 को मादाम ब्लावाटस्की से मिलने के बाद जुलाई 1921 में पेरिस में आयोजित प्रथम थियोसॉफिकल वर्ल्ड कांग्रेस की अध्यक्ष बनाई गईं। 16 नवम्बर 1893 में भारत को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। 24 दिसंबर 1931 को अड्यार में अपना अंतिम भाषण दिया। 20 सितंबर 1933 को शाम 4 बजे 86 वर्ष की अवस्था में अड्यार चेन्नई में देह त्याग दी। एनी का मानना था कि धर्म सिर्फ वेदांत में ही उल्लेखित है। वेदांत ही सच्चा ज्ञान है।
 
महर्षि अरविंद
5 से 21 वर्ष की आयु तक अरविंद की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई। 21 वर्ष की उम्र के बाद वे स्वदेश लौटे तो आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारी विचारधारा के कारण जेल भेज दिए गए। वहां उन्हें कष्णानुभूति हुई जिसने उनके जीवन को बदल डाला और वे 'अतिमान' होने की बात करने लगे। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी। 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में उनका जन्म हुआ और 5 दिसंबर 1950 को पांडिचेरी में देह त्याग दी।
 
परमहंस योगानंद
*परमहंस योगानंद ऊर्फ मुकुंद घोष का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) में हुआ।
*7 मार्च 1952 को योगानंद का लॉस एंजिल्स में निधन हो गया। 
*आपकी ख्‍यात पुस्तक है 'ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी,' यह कृति हिंदी में 'योगी कथामृत' के नाम से उपलब्ध है।
 
नीम करौली बाबा
*उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में नीम करौली बाबा का जन्म 1900 के आसपास हुआ।
*11 सितंबर 1973 को आपने वृंदावन में देह त्याग दी। आपका समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है।
*नीम करौली बाबा के भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जुलिया रॉबर्ट्स का नाम भी लिया जाता है।
 
स्वामी प्रभुपादजी
* स्वामी प्रभुपादजी का जन्म 1 सितम्बर 1896 को कोलकाता में हुआ।
*14 नवम्बर 1977 को वृंदावन में 81 वर्ष की उम्र में उन्होंने देह छोड़ दी।
*स्वामी प्रभुपादजी ने ही इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस अर्थात इस्कॉन की स्थापना की थी।
 
जे. कृष्णमूर्ति
*जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 को मदनापाली आंध्रप्रदेश के मध्यम वर्ग परिवार में हुआ था।
*जॉर्ज बर्नाड शॉ, एल्डस हक्सले, खलील जिब्रान, इंदिरा गांधी आदि अनेक महान हस्तियां उसके विचारों से प्रभावित थीं।
*उन्होंने 1986 में अमेरिका में 91 वर्ष की उम्र में देह छोड़ दी।
 
स्वामी शिवानंद 
स्वामी शिवानंद का जन्म 8 सितंबर 1887 को हुआ और उनका निधन 14 जुलाई 1963 को हुआ। स्वामी शिवानंद दार्शनिक होने के साथ ही योगाचार्य भी थे। उन्होंने योग, गीता और वेदांत पर 200 से अधिक किताबें लिखीं। स्वामी सत्यानंद ने 1964 में बिहार स्कूल ऑफ योग की स्थापना की। शिवानंद पहले मलेशिया में एक डॉक्टर थे बाद में उन्होंने भारत, यूरोप और अमेरिका में योग केंद्र खोले। 
 
स्वामी कुवलयानंद 
(30 अगस्त, 1883-18 अप्रैल, 1966)। स्वामी कुवलयानंद एक शिक्षाविद थे जिन्हें मुख्य रूप से योग के वैज्ञानिक आधारों के मार्गदर्शक शोध के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1920 में वैज्ञानिक अनुसंधान शुरू किया और 1924 में खासतौर पर योग के अध्ययन को समर्पित अपना पहला वैज्ञानिक जर्नल, योग मीमांसा प्रकाशित किया। स्वामी एक शोधकर्ता भी थे उन्होंने ज्यादातर शोध कैवल्यधाम हेल्थ एंड योगा रिसर्च सेंटर में किए, जिसकी स्थापना उन्होंने 1924 में की थी।
 
मेहर बाबा
सूफी, वेदांत और रहस्यवादी दर्शन से प्रभावित मेहर बाबा एक रहस्यवादी सिद्ध पुरुष थे। कई वर्षों तक वे मौन साधना में रहे। 25 फरवरी 1894 में मेहर बाबा का जन्म पूना में हुआ। 31 जनवरी 1969 को मेहराबाद में उन्होंने देह छोड़ दी। उनका मूल नाम मेरवान एस. ईरानी था।
 
राघवेंद्र स्वामी 
(1890-1996)। बंगलौर से लगभग 250 किलोमीटर दूर कर्नाटक के एक छोटे से गांव, चित्रदुर्ग जिले के मलादीहल्ली के राघवेंद्र स्वामी जो 'मलादीहल्ली स्वामीजी' के नाम से मशहूर थे, ने मलादीहल्ली में अनथ सेवाश्रम ट्रस्ट की स्थापना की। उन्होंने मलादीहल्ली में अपना आधार रखते हुए दुनिया भर के 45 लाख से अधिक लोगों को योग सिखाया। उन्होंने योग की शिक्षा पलनी स्वामी से प्राप्त की थी। राघवेंद्र स्वामी सद्गुरु जग्गी वासुदेव के योग शिक्षक थे।
 
ओशो रजनीश
*ओशो रजनीश ऊर्फ चंद्रमोहन जैन का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा में हुआ।
*21 मार्च को उन्हें संबोधी घटित हुई। 19 जनवरी 1990 को पूना में उन्होंने देह छोड़ दी। 
*कहते हैं कि अमेरिका की रोनाल्ड रीगन सरकार ने उन्हें जहर देकर मार दिया था।
 
आनंदमूर्ति
आधुनिक लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, सामाजिक विचारक और आध्यात्मिक नेता प्रभात रंजन सरकार ऊर्फ आंनदमूर्ति का 'आनंद मार्ग'  दुनिया के 130 देशों में फैला हुआ है। उनकी किताबें दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है। परमाणु विज्ञान पर उनके चिंतन के कारण उन्हें माइक्रोवाइटा मनीषी भी कहा जाता है। आनंदमूर्ति का जन्म 1921 और मृत्यु 1990 में हुई थी। मुंगेर जिले के जमालपुर में एशिया का सबसे पुराना रेल कारखाना है।  वे रेलवे के एक कर्मचारी थे। यह जमालपुरा आनंद मार्गियों के लिए मक्का के समान है। यहीं पर सन् 1955 में आनंद मार्ग की स्थापना हुई थी।
 
महर्षि महेश योगी 
भावातीत ध्यान के प्रणेता महर्षि महेश योगी मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के साथ ही वे कई बड़ी हस्तियों के आध्यात्मिक गुरु थे। महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में हुआ। नीदरलैंड्स स्थित उनके घर में 91 वर्ष की आयु में 6 फरवरी 2008 को उनका निधन हो गया।
 
श्रीराम शर्मा आचार्य
शांति कुंज के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य ने हिंदुओं में जात-पात को मिटाने के लिए गायत्री आंदोलन की शुरुआत की। जहां गायत्री के उपासक विश्वामित्र ने कठोर तप किया था उसी जगह उन्होंने अखंड दीपक जलाकर हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। गायत्री मंत्र के महत्व को पूरी दुनिया में प्रचारित किया। आपने वेद और उपनिषदों का सरलतम हिंदी में श्रेष्ठ अनुवाद किया। 20 सितम्बर, 1911 आगरा जिले के आंवलखेड़ा गांव में जन्म हुआ और अस्सी वर्ष की उम्र में उन्होंने शांतिकुंज में ही देह छोड़ दी। 
 
सत्य सांई बाबा
सत्य सांई बाबा को शिर्डी के सांई बाबा का अवतार माना जाता है। विश्वभर में इनके आश्रम 'प्रशांति निलयम' की प्रसिद्धि है। उन्होंने आंध्रप्रदेश में कई सामाजिक कार्य किए हैं, जैसे गरीब और पिछड़े इलाकों में हास्पिटल, स्कूल और कॉलेज के अलावा जल मुहैया कराना आदि। सत्य सांई बाबा का जन्म 23 नवंबर 1926 को आंध्रप्रदेश के पुट्टपर्ती के पास स्‍थित एक गांव में हुआ था। 24 अप्रैल 2011
को उनका निधन हो गया।
 
दादा लेखराज
दादा लेखराज मूलत: हीरों के व्‍यापारी थे। आपका जन्म पाकिस्तान के हैदराबाद में हुआ था। दादा लेखराज ने सन 1936 में एक ऐसे आंदोलन का सूत्रपात्र किया जिसे आज 'प्रज्ञापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विद्यालय' के नाम से जाना जाता है। सन् 1937 में आध्‍यात्मिक ज्ञान और राजयोग की शिक्षा के माध्यम से इस संस्था ने एक आंदोलन का रूप धारण किया।
 
जब दादा लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया तो जो उनके सिद्धांतों पर चलते थे उनमें पुरुषों को ब्रह्मा कुमार और स्त्रीयों को ब्रह्मा कुमारी कहा जाने लगा। यह आंदोलन भी एकेश्वरवाद में विश्वास रखता है। विश्वभर में इस आंदोलन के कई मुख्‍य केंद्र हैं तथा उनकी अनेकों शाखाएं हैं। इस संस्था का मुख्‍यालय भारत के गुजरात में माऊंट आबू में स्थित है। इस आंदोलन को बाद में दादी प्रकाशमणी ने आगे बढ़ाया। यह आंदोलन बीच में विवादों के घेरे में भी रहा। इन पर हिन्दू धर्म की गलत व्याख्‍या का आरोप लगाया जाता रहा है, जिससे समाज में भ्रम का विस्तार हुआ है।
 
श्रीशिव दयालसिंह
राधा स्वामी सत्संग का नाम सभी ने सुना होगा। दुनियाभर में इस आंदोलन से लगभग दो करोड़ लोग जुड़े होंगे। इस एकेश्वरवादी मूर्ति भंजक संगठन की स्थापना श्रीशिव दयाल सिंह द्वारा की गई थी। आगरा में दयालबाग नामक इस संगठन का मुख्य मंदिर है जहां दयाल सिंह की समाधि है। राधा स्वामी मत की अवधारणा का जन्म 1861 में हुआ था। इसे वेदों पर आधारित संत मत माना जाता है। इस संगठन में बहुदेववाद, मूर्ति पूजा, मांसाहार और मद्यपान- उक्त चार बातें सख्ती से निषेध मानी गई है। इस संगठन का भारतभर में व्यापक प्रचार-प्रसार है।
 
श्रीकृष्णामाचार्य 
(18 नवंबर 1888-28 फ रवरी 1989): आधुनिक समय में हठ योग के महान व्याख्याता रहे श्रीकृष्णामाचार्य का देहांत 1989 में 101 वर्ष की आयु में हुआ। उन्होंने अपने आखिरी दिनों तक हठ योग की विनियोग प्रणाली का अभ्यास किया और उसकी शिक्षा दी। उन्होंने बाकी लोगों के साथ प्रसिद्ध जिद्दू कृष्णमूर्ति को भी योग सिखाया है। श्रीकृष्णामाचार्य के एक और मशहूर विद्यार्थी हुए बी.के.एस.अयंगर (14 दिसंबर 1918-20 अगस्त 2014) जो खुद भी एक गुरु थे। उनके पुत्र टी.के.वी.देसीकाचर अपने संत पिता की शिक्षाओं को जारी रखे हुए हैं।
 
मां अमृतामयी :
माता अमृतामयी को उनके भक्त प्यार से 'अम्मा' कहते हैं। 27 सितंबर 1953 में केरल के एक छोटे से गांव आल्लपाड में एक गरीब मछुआरे परिवार में जन्मी माता अमृतानंदमी एक गरीब परिवार से हैं। उनका मूल नाम सुधामणि है। उनकी माता के बीमार होने के बाद घर का कार्य वही सम्भालती थीं। अम्मा जब छह माह की थीं तभी उन्होंने बोलना और चलना सीख लिया था। अम्मा ने भारत सहित कई पूर्वी देशों में गरीबों के लिए लाखों मकान बनाकर दिए और उनकी हर संभव सहायता की। मलेशिया, श्रीलंका, बर्मा और अफ्रीका आदि अनेक मुल्कों के गरीब लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए अम्मा ने अथक प्रयास किया। अम्मा ने कभी भी सेवा की आड़ में धर्मांतरण या धन जुटाने का कार्य नहीं किया। भूकंप से पीड़ित, बाढ़ से पीड़ित या दंगों से पीड़ित सभी लोगों के पास अम्मा सहज ही पहुंच जाती हैं।
 
देवहरा बाबा
देवहरा बाबा का जन्म कब हुआ, यह कोई नहीं जानता। कहते हैं कि 250 वर्ष की उम्र में उन्होंने हाल ही में देह छोड़ दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील ने दावा किया था कि उसके परिवार की 7 पीढियों ने देवहरा बाबा को देखा है। बाबा के कई वीडियो भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं जिनमें बाबा अपनी मचान पर चढ़ते हुए, भक्तों को आशीर्वाद देते हुए और प्रवचन देते हुए दिखाई देते हैं। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकड़ियों की बनी एक मचान उनका स्थायी बैठक स्थान था। विभिन्न स्रोतों से पता चलता है कि बाबा देवरहा 19 मई 1990 में चल बसे।
 
रमन महर्षि 
(जन्म- 30 दिसम्बर, 1879, तिरुचुली गांव, तमिलनाडु; मृत्यु- 14 अप्रैल, 1950, रमण आश्रम, तमिलनाडु) : महर्षि रमन का नाम भी आध्यात्मिक जगत में विख्‍यात है। उनके माता पिता ने उनका नाम वेंकटरामन अय्यर रखा था। 1902 में 'शिव प्रकासम पिल्लै' नामक व्यक्ति रमण के पास 14 प्रश्न स्लेट पर लिखकर लाए। 14 प्रश्नों के उत्तर रमण की पहली शिक्षाएं है।
 
आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ
आचार्य तुलसी के शिष्य आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ (14 जून 1920-9 मई 2010) ने तुलसी के अणुव्रत आंदोलन के आगे बढ़ाया और आचार्य महाप्रज्ञ ने 1970 के दशक में अच्छी तरह से नियमबद्ध प्रेक्षा ध्यान तैयार किया। दोनों की कई किताबें हैं जिनमें उनके दर्शन, धर्म और समाज संबंधि विचार प्रकट होते हैं।
 
श्रीअवधेशानन्द गिरीजी महाराज
हिन्दू संत धारा के संत श्रीअवधेशानन्द गिरीजी महाराज जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर हैं। भारत में उनका नाम बड़े ही श्रद्धाभाव से लिया जाता है। उन्होंने भोग मार्ग छोड़कर तप का मार्ग दिखाया और वे समाज को सुधारने का अधक प्रयास कर रहे हैं। हरियाणा के अंबाला जिले में उनका सेवा केंद्र है।
 
तरुण सागर
प्रवचन कहने की अपनी भिन्न शैली और क्रांतिकारी विचारधाराओं के कारण तरुण सागरजी को क्रांतिकारी संत माना जाता हैं। उनका जन्म 26 जनवरी 1967 में मध्यप्रदेश के दमोह जिले के गांव गुहांची में हुआ। उनका जन्म नाम श्रीपवन कुमार जैन। पिता प्रतापचंदजी जैन और माता शांति बाई जैन। इन्होंने आठ मार्च 1981 को ग्रह त्याग दिया और 18 जनवरी 1982 मध्यप्रदेश के अलकतारा में आपने आचार्य श्रीपुष्पदंत सागरजी से दिगंबरी दिक्षा ग्रहण की।
 
श्रीश्री रविशंकर
श्रीश्री रविशंकर का मिशन है दुनिया से हिंसा को खत्म करना। इसीलिए वे कहते हैं कि हंसो, हंसाओं और सबको प्यार करो। दुनियाभर में 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' के माध्यम से प्रख्यात हुए श्रीश्री रविशंकर का जन्म 1956 में एक तमिल अय्यर परिवार में हुआ। 1981 में श्रीश्री फाउंडेशन के तहत उन्होंने 'ऑर्ट ऑफ लिविंग' नामक शिक्षा की शुरुआत की। आज फाउंडेशन लगभग 140 देश में सक्रिय है। इस फाऊंडेशन ने दुनियाभर के लाखों लोगों को जीवन जीने की कला सीखाई है। ध्यान की सुदर्शन क्रिया और आत्म विकास के इस शैक्षणिक कार्यक्रम से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने कुंठा, हिंसा और अपनी बुरी आदतें छोड़ दी है। राजनीतिक, औद्योगिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए 1997 में श्रीश्री फाऊंडेशन एंड इंटरनेशनल एसोसिएशन संगठन की स्थापना हुई।
 
बाबा रामदेव
बाबा रामदेव के माध्यम से योग और आयुर्वेद को जो प्रचार मिला है इससे पहले कभी इतना प्रचार नहीं मिला। रामदेव के कारण योग को पूरी दुनिया में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। बाबा ने दुनियाभर की यात्रा कर वहां योग शिविर लगाएं है। देश के कई स्थानों पर योग शिविर का उन्होंने सफलतम आयोजन कर लाखों लोगों को स्वास्थ्य लाभ दिया है।
 
बाबा रामदेव ऊर्फ रामकृष्ण यादव का जन्म 1965 को हरियाणा में हुआ। नौ अप्रैल 1995 को रामनवमी के दिन संन्यास लेने के बाद वे आचार्य रामदेव से स्वामी रामदेव बन गए। प्रारंभ में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। बाद में योग और आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए पतंजलि योग पीठ की स्थापना की। छह अगस्त 2006 को इसका उद्‍घाटन किया गया। योग और आयुर्वेद का यह दुनिया का सबसे बढ़ा केंद्र माना जाता है।
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