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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : रविवार, 3 मई 2020 (14:17 IST)

श्रीकृष्ण का यह मंदिर मात्र 2 मिनट के लिए बंद होता है, वजह जानकर हैरान रह जाएंगे

श्रीकृष्ण का यह मंदिर मात्र 2 मिनट के लिए बंद होता है, वजह जानकर हैरान रह जाएंगे - thiruvarppu sree krishna temple
केरल के कोट्टायम जिले में तिरुवेरपु या थिरुवरप्पु में भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसिद्ध और चमत्कारिक मंदिर है जिसे तिरुवरप्पु श्रीकृष्ण मंदिर कहते हैं। इस मंदिर के संबंध में कई तरह की किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। एक यह है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने कंस को मारा था तो उनको बहुत भूख लगने लगी थी। कहते हैं कि यहां की श्रीकृष्ण की मूर्ति को भूख बर्दाश्त नहीं होती है।
 
 
1,500 साल पुराने इस मंदिर की दूसरी खासियत यह है कि यह मंदिर 24 घंटे में से मात्र 2 मिनट के लिए ही बंद होता है और वह समय है- सुबह 11.58 बजे से 12.00 बजे तक। मंदिर 2 मिनट से ज्यादा बंद नहीं रख सकते। इसके लिए पुजारी को एक कुल्हाड़ी दी जाती है, क्योंकि मंदिर खोलते वक्त यदि देर हो तो वह कुल्हाड़ी से ताला तोड़ दे। दरवाजा खोलने के लिए चाबी दी जाती है, लेकिन यदि चाबी कहीं फंस जाए तो तुरंत कुल्हाड़ी का उपयोग करें।

 
इसके पीछे मान्यता है कि यहां भगवान कृष्ण हमेशा भूखे रहते हैं और वे जरा भी देर के लिए भूख बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। इसीलिए यदि चाबी के साथ दरवाजा खोलने में कोई देरी होती है, तो पुजारी को कुल्हाड़ी से दरवाजा खोलने की अनुमति दी जाती है। यहां कम से कम 10 बार नैवेद्यम चढ़ाया जाता है।
 
 
अभिषेकम समाप्त होने के बाद स्वामी (श्रीकृष्ण) का सिर पहले सूख जाता है। तब नैवेद्यम चढ़ाया जाता है और फिर केवल उसका शरीर सूख जाता है। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के सोने का समय 11.58 बजे से दोपहर 12.00 बजे तक ही है। केवल 2 मिनट! 
 
भक्तों के लिए यह मंदिर सुबह के लगभग 2 बजे खुलता है।
 
यह मंदिर ग्रहण के समय भी बंद नहीं होता है। शंकराचार्य के समय एक बार इस मंदिर को ग्रहण के समय बंद कर दिया गया था। बाद में जब दरवाजा खोला गया तो उन्होंने पाया कि स्वामी की कमर की पट्टी नीचे खिसक गई है। उस समय आए आदिशंकराचार्य ने बताया कि ऐसा इसलिए हुआ़, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण बहुत भूखे थे, तब से यह मंदिर ग्रहण काल ​​के दौरान भी बंद नहीं किया जाता है।
 
कहते हैं कि जो भी यहां का थोड़ा भी प्रसाद ग्रहण कर लेते हैं, उसे ऐसा लगता है कि पेट भर गया। यहां से प्रसादम का सेवन किए बिना किसी भी भक्त को जाने की अनुमति नहीं है। हर दिन 11.57 बजे (मंदिर को बंद करने से पहले) पुजारी जोर से पुकारता है कि क्या कोई भी यहां है जिसने प्रसाद नहीं लिया हो?
 
ऐसा भी कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति एक बार यहां का प्रसाद ग्रहण कर लेता है, वह फिर जीवन में कभी भी भूखे नहीं रहता है। मतलब यह कि उसके जीवन में भोजन प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं होती है। यहां अप्रैल के महीने में 10 दिनों तक वार्षिक उत्सव मनाया जाता है। त्योहार का मुख्य आकर्षण यह है कि यहां युवा कुंआरी लड़कियां समारोहों के दौरान दीप जलाती हैं।
 
 
इस मंदिर के बारे में एक कथा यह भी प्रचलित है कि महाभारत काल में जब पांडव जंगल में रहते थे तो श्रीकृष्ण ने उन्हें 4 हाथ वाली अपनी प्रतिमा दी थी। जब पांडव जंगल से जाने लगे तो चेरथलाई लोगों ने यह मूर्ति उनसे ले ली। कुछ काल तक वे इसकी पूजा करते रहे लेकिन बाद में उन्होंने कुछ कारणों से इसे समुद्र में फेंक दिया।
 
लंबे समय के बाद यह मूर्ति केरल के एक महान ऋषि को मिली, जब वे नाव से यात्रा कर रहे थे। कहते हैं कि जब उनकी नाव डूब रही थी, तब इस मूर्ति को लेकर कोई दिव्य पुरुष प्रकट हुआ और उसने यह मूर्ति उन्हें दी थी। इस मूर्ति को लाकर उन ऋषि ने उसे यहां स्थापित कर दिया। इस संबंध में और भी कहानियां प्रचलित हैं।