गुरुवार, 28 मार्च 2024
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इन सुंदर स्त्रियों की वजह से हुआ महाभारत!

इन सुंदर स्त्रियों की वजह से हुआ महाभारत! | Mahabharata woman History
यह आम धारणा है कि जर, जोरू और जमीन के लिए ही युद्ध होते रहे हैं। हालांकि कुछ विद्वान मानते हैं कि महाभारत युद्ध के कारण कुछ और भी थे।

महाभारत में भूमि बंटवारा युद्ध का सबसे बड़ा कारण था। लेकिन दूसरे लोग मानते हैं कि बंटवारा शांतिपूर्वक हो सकता था लेकिन कुछ महिलाओं की जिद के कारण कौरवों और पांडवों के बीच कटुता बढ़ गई जिसके परिणामस्वरूप युद्ध हुआ।
 
बहुत से लोग महाभारत युद्ध का दोषी महिलाओं को मानते हैं। धृतराष्ट्र और पांडु की माताएं अम्बिका और अम्बालिका काशी नरेन्द्र की पुत्रियां थी। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी और पांडु की पत्नी कुंती का जीवन बहुत ही संघर्षों से भरा रहा है, लेकिन इन सबसे पहले अम्बिका और अम्बालिका के पति विचित्रवीर्य की माता सत्यवती का ही राजपाट और महल में दखल अधिक था। वही सारे फैसले लेती थी और भीष्म को उनकी बातें सुनना होती थी। उसके जाने के बाद सत्ता का केंद्र बदल गया।
 
हालांकि कुछ लोग गंगा, सुभद्रा, लक्ष्मणा को भी युद्ध के कारणों में गिनते हैं। लेकिन असल में कौन- सी महिलाएं युद्ध का सबसे बड़ा कारण थी? आओ जानते हैं उन प्रमुख स्त्रियों को जिनके कारण महाभारत युद्ध हुआ।
 
प्रमुख स्त्रियों को जानने से पूर्व स्त्रियों के लिए हुए कुछ खास झगड़े...

सुभद्रा : सुभद्रा तो कृष्ण की बहन थी जिसने कृष्ण के मित्र अर्जुन से विवाह किया था, जबकि बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो। बलराम के हठ के चलते ही तो कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन के हाथों हरण करवा दिया था। बाद में द्वारका में सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ। विवाह के बाद वे एक वर्ष तक द्वारका में रहे और शेष समय पुष्कर क्षेत्र में व्यतीत किया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इंदप्रस्थ लौट आए।

लक्ष्मणा : श्रीकृष्ण की 8 पत्नियों में एक जाम्बवती थीं। जाम्बवती-कृष्ण के पुत्र का नाम साम्ब था। साम्ब का दिल दुर्योधन-भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। दुर्योधन के पुत्र का नाम लक्ष्मण था और पुत्री का नाम लक्ष्मणा। दुर्योधन अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के पुत्र ने नहीं करना चाहता था। भानुमती सुदक्षिण की बहन और दुर्योधन की पत्नी थी।

इसलिए एक दिन साम्ब ने लक्ष्मणा से प्रेम विवाह कर लिया और लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगा। जब यह बात कौरवों को पता चली तो कौरव अपनी पूरी सेना लेकर साम्ब से युद्घ करने आ पहुंचे।

कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। इसके बाद जब श्रीकृष्ण और बलराम को पता चला, तब बलराम हस्तिनापुर पहुंच गए। बलराम ने कौरवों से निवेदनपूर्वक कहा कि साम्ब को मुक्त कर उसे लक्ष्मणा के साथ विदा कर दें, लेकिन कौरवों ने बलराम की बात नहीं मानी। तब बलराम ने अपना रौद्र रूप प्रकट कर दिया। वे अपने हल से ही हस्तिनापुर की संपूर्ण धरती को खींचकर गंगा में डुबोने चल पड़े। यह देखकर कौरव भयभीत हो गए। संपूर्ण हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया। सभी ने बलराम से माफी मांगी और तब साम्ब को लक्ष्मणा के साथ विदा कर दिया। द्वारिका में साम्ब और लक्ष्मणा का वैदिक रीति से विवाह संपन्न हुआ।


अगले पन्ने पर पहली स्त्री...

सत्यवती : महाभारत की शुरुआत राजा शांतनु से होती है। शांतनु को गंगा से एक वीर और देवतुल्य संतान मिली थी, लेकिन शांतनु ने उस संतान की इच्छा या अनिच्छा का ध्यान रखे बगैर अपनी इच्छाओं को ज्यादा महत्व दिया।

कहते हैं कि शांतनु भोग-विलासी राजा था, क्योंकि उनको राज्य से ज्यादा अपने कुल की वृद्धि की चिंता ज्यादा रहती थी। गंगा के चले जाने के बाद उनका जीवन जब अकेलेपन में बीतने लगा, तब एक दिन नदी के तट पर वे घूम रहे थे, तो उन्होंने एक निषाद कन्या को देखा। उसे देखकर वे मोहित हो गए। उन्होंने उसके साथ विवाह करने की ठानी। वे उस कन्या के पिता के पास गए। कन्या का नाम था सत्यवती।

इस पर धीवर (कन्या के पिता) ने कहा, 'राजन्! मुझे अपनी कन्या का विवाह आपके साथ करने में कोई आपत्ति नहीं है, किंतु मैं चाहता हूं कि मेरी कन्या के गर्भ से उत्पन्न पुत्र को ही आप अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाएं, तो ही यह विवाह संभव हो पाएगा।' यह बात सुनकर शांतनु महल लौट आए और उदास तथा चुप--चुप रहने लगे।

महाराज की इस दशा को देखकर उनके पुत्र देवव्रत (भीष्म) को चिंता हुई। जब उन्हें मंत्रियों द्वारा पिता की इस प्रकार की दशा होने का कारण पता चला तो वे निषाद के घर जा पहुंचे और उन्होंने निषाद से कहा, 'हे निषाद! आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शांतनु के साथ कर दें। मैं आपको वचन देता हूं कि आपकी पुत्री के गर्भ से जो बालक जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। कालांतर में मेरी कोई संतान आपकी पुत्री के संतान का अधिकार छीन न पाए इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आजन्म अविवाहित रहूंगा।'

उनकी इस प्रतिज्ञा को सुनकर निषाद ने हाथ जोड़कर कहा, 'हे देवव्रत! आपकी यह प्रतिज्ञा अभूतपूर्व है।' इतना कहकर निषाद ने तत्काल अपनी पुत्री सत्यवती को देवव्रत तथा उनके मंत्रियों के साथ हस्तिनापुर भेज दिया।

परिणाम : मित्रों आप ही सोचिए, यदि शांतनु सत्यवती को न चाहते तो कुरु वंश का भाग्य कुछ और ही होता। इस राजा ने एक स्त्री के लिए अपने पुत्र के जीवन को नष्ट कर दिया। इससे पता चलता है कि शांतनु एक सामान्य राजा था। उसने अपने राज्य तथा पुत्र को प्राथमिकता न देकर अपनी भोगवृत्ति को प्राथमिकता दी। तो यह कहना उचित होगा कि सत्यवती ही एक प्रमुख कारण थी जिसके चलते हस्तिनापुर की गद्दी से कुरुवंश नष्ट हो गया। यदि भीष्म सौगंध नहीं खाते तो वेदव्यास के 3 पुत्र पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर हस्तिनापुर के शासक नहीं होते या यह कहें कि उनका जन्म ही नहीं होता। तब इतिहास ही कुछ और होता।

अगले पन्ने पर दूसरी स्त्री...
कुंती : भीष्म की प्रतिज्ञा के बाद कुरुवंश का इतिहास बदल गया। महाभारत के अनुसार पांडु अम्बालिका और ऋषि वेदव्यास के पुत्र थे। वे पांडवों के धर्मपिता और धृतराष्ट्र के छोटे भाई थे। धृतराष्ट्र के अंधे होने के कारण पांडु को हस्तिनापुर का शासक बनाया गया।

एक बार राजा पांडु अपनी दोनों रानियों कुंती और माद्री के साथ आखेट कर रहे थे कि तभी उन्होंने मृग होने के भ्रम में बाण चला दिया, जो एक ऋषि को जाकर लगा। उस समय वह ऋषि अपनी पत्नी के साथ सहवास कर रहे थे और उसी अवस्था में उन्हें बाण लग गया इसलिए उन्होंने पांडु को श्राप दे दिया कि जिस अवस्था में उनकी मृत्यु हो रही है उसी प्रकार जब भी पांडु अपनी पत्नियों के साथ सहवासरत होंगे तो उनकी भी मृत्यु हो जाएगी। उस समय पांडु की कोई संतान नहीं थी। अब उनके लिए यह संकट की बात हो गई थी। जब उन्होंने यह बात कुंती को बताई तो कुंती ने उन्हें ऋषि दुर्वासा द्वारा उनको मिले वरदान की बात कही। इस वरदान से कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर उन्हें बुलाकर उनके साथ 'नियोग' कर सकती थी। विवाह पूर्व उन्होंने सूर्यदेव का आवाहन किया था जिसके चलते 'कर्ण' का जन्म हुआ था लेकिन कुंती ने लोक-लज्जा के कारण उसे नदी में बहा दिया था। खैर।

पांडु मान गए तब कुंती ने एक-एक कर कई देवताओं का आवाहन किया। इस प्रकार माद्री ने भी देवताओं का आवाहन किया। तब कुंती को तीन और माद्री को दो पुत्र प्राप्त हुए जिनमें युधिष्ठिर सबसे ज्येष्ठ थे। कुंती के अन्य पुत्र थे भीम और अर्जुन तथा माद्री के पुत्र थे नकुल व सहदेव। कुंती ने धर्मराज, वायु एवं इंद्र देवता का आवाहन किया था तो माद्री ने अश्विन कुमारों का।

एक दिन वर्षाऋतु का समय था और पांडु और माद्री वन में विहार कर रहे थे। उस समय पांडु अपने काम-वेग पर नियंत्रण न रख सके और माद्री के साथ सहवास करने को उतावले हो गए और तब ऋषि का श्राप महाराज पांडु की मृत्यु के रूप में फलित हुआ। माद्री पांडु की मृत्यु बर्दाश्त नहीं कर सकी और उनके साथ सती हो गई। यह देखकर पुत्रों के पालन-पोषण का भार अब कुंती पर आ गया था। उसने अपने मायके जाने के बजाय हस्तिनापुर का रुख किया।

हस्तिनापुर में रहने वाले ऋषि-मुनि सभी पांडवों को राजा पांडु का पुत्र मानते थे तो वे सभी मिलकर पांडवों को राजमहल छोड़कर आ गए। कुंती के कहने पर सभी ने पांडवों को पांडु का पुत्र मान लिया और उनका स्वागत किया।

राजमहल में कुंती का सामना गांधारी से भी हुआ। कुंती वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। तो गांधारी गंधार नरेश की पुत्री और राजा धृतराष्ट्र की पत्नी थी।

अगले पन्ने पर तीसरी स्त्री...
गांधारी : धृतराष्ट्र को आंखों से नहीं, मन से भी अंधों की भांति व्यवहार करते थे इसलिए गांधारी और शकुनि को अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता संभालनी पड़ी। गांधारी को यह चिंता सताने लगी थी कि कहीं कुंती के पुत्र सिंहासनारूढ़ न हो जाए। ऐसे में शकुनि ने दुर्योधन के भीतर बाल्यकाल से ही पांडवों के प्रति घृणा का भाव भर दिया था।

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द्रौपदी : पांडवों की पत्नी द्रौपदी को इस युद्ध का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। महाभारत के अनुसार जब दुर्योधन इंद्रप्रस्थ को देखने गया तो एक जगह उसने रंगोली बनी देखी और उसने समझा कि यह कितना सुंदर फर्श है लेकिन असल में वह जल से भरा ताल था। दुर्योधन उसमें गिर पड़ा। भ्रमवश उसके गिरने पर द्रौपदी जोर से हंसने लगी और उसके मुंह से निकल गया- 'अंधे का पुत्र भी अंधा।'

बस यही बात दुर्योधन के दिल में तीर की तरह धंस गई। हालांकि बाद में द्रौपदी को अपनी गलती का अहसास भी हुआ था, लेकिन व्यंग्य में कहे गए शब्द का जो असर होना चाहिए थे वह हो चुका था। दुर्योधन ने अपने इस अपमान का बदला लेने की ठान ली थी।

शकुनि ने इस अपमान का बदला लेने की एक तरकीब बतलाई। उसने दुर्योधन से कहा कि पांडवों को द्यूतकीड़ा खेलने के लिए आमंत्रित किया जाए। उन्होंने कहा कि राज्य बंटवारे का निर्णय अब इस खेल के माध्यम से ही होगा।

द्यूतक्रीड़ा (जुआ) न खेली गई होती तो युद्ध तो शायद युद्ध भी नहीं होता। पांडवों ने दुर्योधन के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया। उन्होंने अपने भाग्य का निर्णय द्यूत के खेल पर छोड़ दिया। लेकिन पांडव तो इस खेल में माहिर नहीं थे फिर कैसे वे यह खेल खेलने के लिए तैयार हो गए। उनका मानना था कि यह खेल भाग्य पर निर्भर है न कि चाल, छल या कपट पर। भगवान कृष्ण ने इस खेल का विरोध किया था, लेकिन पांडव नहीं माने। श्रीकृष्ण ने कहा कि फिर इस बुरे खेल में मैं साथ नहीं दूंगा। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा भी है कि सबसे बुरे खेल में द्यूतक्रीड़ा है।

पांडव खेल में एक के बाद एक राज्य हारते गए। फिर उन्होंने उनके पास की वस्तुएं भी दांव पर लगा दीं। अंत में उन्होंने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया। बस, यहीं से युद्ध की नींव रख दी गई। द्रौपदी का चीरहरण होते हुए सबसे देखा। लेकिन भगवान कृष्ण ने अंत में पहुंचकर द्रौपदी की लाज बचाई। यह महाभारत का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट था।