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'महाभारत' को पहले क्या कहते थे?

महाभारत को पहले क्या कहते थे? | Mahabharata
कृष्ण के काल और उनके पूर्व के काल का इतिहास है महाभारत। महाभारत में भारत के प्राचीन इतिहास की एक झलक मिलती है, लेकिन कितने लोग हैं जिन्होंने महाभारत पढ़ी और कितने लोग हैं, ‍जो इसके कहने और लिखने के इतिहास को जानते हैं?

एक गलत धारणा फैलाई गई कि महाभारत को घर में रखने से गृहकलह होता है। यह गलत धारणा मध्यकाल में फैलाई गई। गीता तो महाभारत का एक हिस्सा है। यदि गीता को पढ़ना है तो महाभारत में से पढ़ना चाहिए। आओ जानते हैं महाभारत का इतिहास और उसका प्राचीन नाम...

 

किसने लिखी महाभारत...अगले पन्ने पर...


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वेद व्यासजी ने महाभारत को लिखा था। वेद व्यास कौन थे? वेद व्यास सत्यवती के पुत्र थे और उनके पिता ऋषि पराशर थे। सत्यवती जब कुंवारी थी, तब वेद व्यास ने उनके गर्भ से जन्म लिया था। बाद में सत्यवती ने हस्तिनापुर महाराजा शांतनु से विवाह किया था। शांतनु के पुत्र भीष्म थे, जो गंगा के गर्भ से जन्मे थे।

सत्यवती के शांतनु से दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद युद्ध में मारा गया जबकि विचित्रवीर्य का विवाह भीष्म ने काशीराज की पुत्री अम्बिका और अम्बालिका से कर दिया। लेकिन विचित्रवीर्य को कोई संतान नहीं हो रही थी तब चिंतित सत्यवती ने अपने पराशर मुनि से उत्पन्न पुत्र वेद व्यास को बुलाया और उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी कि अम्बिका और अम्बालिका को कोई पुत्र मिले। अम्बिका से धृतराष्ट्र और अ‍म्बालिका से पांडु का जन्म हुआ जबकि एक दासी से विदुर का। इस तरह देखा जाए तो पराशर मुनि का वंश चला।

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महाभारत में 1 लाख श्लोक हैं। इन 1 लाख श्लोकों को 100 पर्वों में बांटा गया था। इस ग्रंथ का रचना काल 3100 ईसा पूर्व के लगभग माना जाता है। वेद व्यास के कहने पर शिष्ट वैशम्पायनजी ने इस ग्रंथ को जन्मजेय के यज्ञ समारोह में सुनाया था, तब इस ग्रंथ को 'भारत' कहते थे।

'भारत' से पहले 'महाभारत' ग्रंथ को क्या कहते थे...


वेद व्यास ने जब इस ग्रंथ को लिखा था, तब इसका नाम 'जय महाकाव्य' रखा था। वेद व्यासजी के कहने से उनके शिष्य वैशम्पायनजी द्वारा जन्मेजय यज्ञ समारोह में इस जय महाकाव्य को ऋषि-मुनियों को सुनाया गया, तब इसे 'भारत' कहा जाने लगा।

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इस 'जय महाकाव्य' अथवा भारत को सुतजी द्वारा लगभग 2000 ईसा पूर्व पुन: सुव्यस्थित किया गया तथा 18 पर्वों में बांटा गया। तत्पश्चात लगभग 1200 ईसा पूर्व इस ग्रंथ को ब्राह्मी या संस्कृत में हस्तलिखित पांडुलिपि के रूप में लिपिबद्ध किया गया।

पुणे स्थित भंडारकर प्राच्य शोध संस्थान ने पूरे दक्षिण एशिया में उपलब्ध महाभारत की लगभग 10,000 पांडुलिपियों को खोज कर शोध और अनुसंधान कर सभी में पाए जाने वाले 75,000 श्लोकों को खोजा और उनके साथ टिप्पणी एवं समीक्षात्मक संस्करण प्रकाशित किए। इस संपूर्ण सामग्री को अलग-अलग खंडों में विभाजित कर 13,000 पृष्ठों में समेटा गया है।