दुर्योधन ने क्यों बनवाया था लाक्षागृह... अगले पन्ने पर...
जब लाक्षागृह में आग लगा दी गई...
विदुर की नीति : दुर्योधन के षड्यंत्र के बारे में जब विदुर को पता चला तो वे तुरंत ही वारणावत जाते हुए पांडवों से मार्ग में मिले और उन्होंने दुर्योधन के षड्यंत्र के बारे में बताया। फिर उन्होंने कहा कि 'तुम लोग भवन के अंदर से वन तक पहुंचने के लिए एक सुरंग अवश्य बनवा लेना जिससे कि आग लगने पर तुम लोग अपनी रक्षा कर सको। मैं सुरंग बनाने वाला कारीगर चुपके से तुम लोगों के पास भेज रहा हूं।'
जिस दिन पुरोचन ने आग प्रज्वलित करने की योजना बनाई थी, उसी दिन पांडवों ने गांव के ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके कमरे में आग लगाई। धीरे-धीरे आग चारों ओर लग गई। लाक्षागृह में पुरोचन तथा अपने बेटों के साथ भीलनी जलकर मर गई।
लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब हस्तिनापुर पहुंचा तो पांडवों को मरा समझकर वहां की प्रजा अत्यंत दुःखी हुई। दुर्योधन और धृतराष्ट्र सहित सभी कौरवों ने भी शोक मनाने का दिखावा किया और अंत में उन्होंने पुरोचन, भीलनी और उसके बेटों को पांडवों का शव समझकर अंत्येष्टि करवा दी।
लाक्षागृह की सुरंग से निकलकर पांडवजन हिंडनी नदी किनारे पहुंच गए थे, जहां पर विदुर द्वारा भेजी गई एक नौका में सवार होकर वे नदी के उस पार पहुंच गए।
आज भी आप देख सकते हैं यह जला हुआ लाक्षागृह...
बरनावा हिंडनी (हिण्डन) और कृष्णा नदी के संगम पर बागपत जिले की सरधना तहसील में मेरठ (हस्तिनापुर) से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी स्थित है। यह प्राचीन गांव 'वारणावत' या 'वारणावर्त' है, जो उन 5 ग्रामों में से था जिनकी मांग पांडवों ने दुर्योधन से महाभारत युद्ध के पूर्व की थी। ये 5 गांव वर्तमान नाम अनुसार निम्न थे- पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत और वरुपत (बरनावा)।
बरनावा गांव में महाभारतकाल का लाक्षागृह टीला है। यहीं पर एक सुरंग भी है। यहां की सुरंग हिंडनी नदी के किनारे पर खुलती है। टीले के पिलर तो कुछ असामाजिक तत्वों ने तोड़ दिए और उसे वे मजार बताते थे। यहीं पर पांडव किला भी है जिसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां देखी जा सकती हैं।
गांव के दक्षिण में लगभग 100 फुट ऊंचा और 30 एकड़ भूमि पर फैला हुआ यह टीला लाक्षागृह का अवशेष है। इस टीले के नीचे 2 सुरंगें स्थित हैं। वर्तमान में टीले के पास की भूमि पर एक गौशाला, श्रीगांधीधाम समिति, वैदिक अनुसंधान समिति तथा महानंद संस्कृत विद्यालय स्थापित है।
देहरादून के लाखामंडल में भी एक लाक्षागृह है। देहरादून से 125 किमी दूर यमुना किनारे मौजूद लाखामंडल चकराता से 60 किमी दूर है। 2 फुट की खुदाई करने से ही यहां हजारों साल पुरानी कीमती मूर्तियां निकली हैं। इसी कारण इस स्थान को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की निगरानी में रखा गया है।
यहां एक सुरंग भी है जिसके चलते इसके लाक्षागृह होने की अटकलें लगाई गईं। लाक्षागृह गुफा के अंदर स्थित शेषनाग के फन के नीचे प्राकृतिक शिवलिंग के ऊपर टपकता पानी यहां की खासियत है। हालांकि महाभारत के अनुसार पांडवों का लाक्षागृह वारणावत में ही था। उस काल में और भी लाक्षागृह बनाए गए होंगे।
बरनावा जाने के लिए मेरठ से शामली रोड होते हुए बरनावा जाया जा सकता है। जाने के लिए अपने वाहन या उत्तरप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की बस में सफर कर सकते हैं।