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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : गुरुवार, 9 जनवरी 2020 (15:58 IST)

ईरान का भारतीय धर्म से नाता, जानिए 7 रहस्य

ईरान का भारतीय धर्म से नाता, जानिए 7 रहस्य | ancient history of iran
ईरान वर्तमान में एक इस्लामिक देश है। ईरान की सीमा हर काल में घटती-बढ़ती रही है। आज का ईरान प्राचीन काल के ईरान से बहुत भिन्न है। प्राचीन काल के ईरान को सबसे पहले सिकंदर ने ध्वस्त किया और फिर बाद में तुर्क एवं अरब के लोगों ने नेस्तनाबूद कर दिया। आओ जानते हैं ईरानी इतिहास के 10 रहस्य।
 
 
1.आर्यों से नाता : ऋग्वेद और ‍जेंद अवेस्ता के अलावा हिन्दुओं के प्राचीन इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि अफगानिस्तान और ईरान के बीच का क्षे‍त्र जो तुर्कमेनिस्तान तक को जाता है, पहले देवताओं और असुरों के लिए युद्ध का क्षे‍त्र हुआ करता था। असुरों का पारस्य से लेकर अरब-मिस्र तक शासन था और देवताओं से उनकी प्रतिद्वंद्विता चलती रहती थी। कैस्पियन सागर के आसपास के क्षेत्र के लिए लड़ाई चलती रहती थी।

 
अत्यंत प्राचीन युग के ईरानियों और वैदिक आर्यों की प्रार्थना, उपासना और कर्मकांड में कोई भेद नजर नहीं आता। वे अग्नि, सूर्य, वायु आदि प्रकृति तत्वों की उपासना और अग्निहोत्र कर्म करते थे। मिथ्र (मित्रासूर्य), वयु (वायु), होम (सोम), अरमइति (अमति), अद्दमन् (अर्यमन), नइर्य-संह (नराशंस) आदि उनके भी देवता थे। वे भी बड़े-बड़े यश्न (यज्ञ) करते, सोम पान करते और अथ्रवन् (अथर्वन्) नामक याजक (ब्राह्मण) काठ से काठ रगड़कर अग्नि उत्पन्न करते थे। उनकी भाषा भी उसी एक मूल आर्य-भाषा से उत्पन्न थी जिससे वैदिक और लौकिक संस्कृत निकली है। अवेस्ता में भारतीय प्रदेशों और नदियों के नाम भी हैं, जैसे हफ्तहिन्दु (सप्तसिन्धु), हरव्वेती (सरस्वती), हरयू (सरयू), पंजाब इत्यादि।

 
'जेंद अवेस्ता' में भी वेद के समान गाथा (गाथ) और मंत्र (मन्थ्र) हैं। इसके कई विभाग हैं जिसमें गाथ सबसे प्राचीन और जरथुस्त्र के मुंह से निकला हुआ माना जाता है। एक भाग का नाम 'यश्न' है, जो वैदिक 'यज्ञ' शब्द का रूपांतर मात्र है।

 
वेदों से पता चलता है कि कुछ देवताओं को असुरों की संज्ञा भी दी जाती थी। वरुण के लिए इस संज्ञा का प्रयोग कई बार हुआ है। पुराणों के अनुसार भगवान वरुण ने कई दफे देव-असुरों के बीच समझौता करवाया है। सायणाचार्य ने भाष्य में 'असुर' शब्द का अर्थ किया है 'असुर: सर्वेषां प्राणद:'। इंद्र के लिए भी इस संज्ञा का प्रयोग दो-एक जगह मिलता है।- (पुस्तक वृहत्तर भारत से)

 
बाद में भारतवर्ष में 'असुर' शब्द राक्षस और दैत्य के अर्थ में ही मिलता है। इससे यह जान पड़ता है कि देवोपासक और असुरोपासक ये दो पक्ष आर्यों के बीच हो गए थे। दैत्यों को ही असुर कहा जाता था और देवों को सुर। ईरानी आर्यों की शाखा अनुसार असुर विचारधारा शुद्ध, स्पष्ट और अच्छी मानी गई, क्योंकि दिति के पुत्र दैत्य एकेश्वरवादी थे और सुरापान नहीं करते थे इसीलिए वे सभी असुर कहलाए। आज का असीरिया असुरों के नाम से ही माना जाता है। दनु के पुत्र दानव हिमालय के उत्तर-पश्चिम में रहते थे जबकि अदिति के पुत्र देवता हिमालय के ठीक उत्तर में मेरू पर्वत के पास रहते थे।

 
2.पारस्य देश : ईरान की प्राचीन पहचान पहले पारस्य देश के रूप में थी। उससे पहले यह आर्याना कहलाता था। प्राचीनकाल में पारस देश आर्यों की एक शाखा का निवास स्‍थान था। वैदिक युग में तो पारस से लेकर गंगा, सरयू के किनारे तक की सारी भूमि आर्य भूमि थी, जो अनेक प्रदेशों में विभक्त थी। जिस प्रकार भारतवर्ष में पंजाब के आसपास के क्षे‍त्र को आर्यावर्त कहा जाता था, उसी प्रकार प्राचीन पारस में भी आधुनिक अफगानिस्तान से लगा हुआ पूर्वी प्रदेश 'अरियान' वा 'एर्यान' (यूनानी एरियाना) कहलाता था जिससे बाद में 'ईरान' शब्द बना।

 
प्राचीन पारस जिन कई प्रदेशों में बंटा था, उसमें पारस की खाड़ी के पूर्वी तट पर पड़ने वाला पार्स या पारस्य प्रदेश भी था जिसके नाम पर आगे चलकर सारे देश का नाम पारस पड़ा जिसका अप्रभंश ही फारस है। इसकी प्राचीन राजधानी पारस्यपुर (यूनानी-पेर्सिपोलिस) थी, जहां पर आगे चलकर 'इस्तख' बसाया गया। वैदिक काल में 'पारस' नाम प्रसिद्ध नहीं हुआ था। यह नाम तखामनीय वंश के सम्राटों के समय से, जो पारस्य प्रदेश के थे, सारे देश के लिए उपयोग किया जाने लगा। यही कारण है जिससे वेद और रामायण में इस शब्द का पता नहीं लगता पर महाभारत, रघुवंश, कथासरित्सागर आदि में पारस्य और पारसीकों का उल्लेख बराबर मिलता है।

 
प्राचीन पारस कई प्रदेशों में विभक्त था। कैस्पियन समुद्र के दक्षिण-पश्चिम का प्रदेश मिडिया कहलाता था, जो एतरेय ब्राह्मण आदि प्राचीन ग्रंथ का उत्तर मद्र हो सकता है। पारस के सबसे प्राचीन राज्य की स्थापना का पता इसी प्रदेश से चलता है। पहले यह प्रदेश अनार्य असुर जाति के अधिकार में था जिनका देश (वर्तमान असीरिया) यहां से पश्चिम में था। यह जाति आर्यों से सर्वथा भिन्न सेम की संतान थी जिसके अंतर्गत यहूदी और अरब वाले हैं।

 
3.ईरान का प्राचीन धर्म : वैदिक धर्म के बाद ईरान का प्राचीन धर्म पारसी माना गया। जरथुस्त्र (पारसी धर्म के संस्थापक) ने यहां लोगों को उपदेश दिया। इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे। यह लगभग वही काल था, जबकि राजा सुदास का आर्यावर्त में शासन था और दूसरी ओर हजरत इब्राहीम अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे। जरथुस्त्र मिडिया नामक प्रदेश में अपना सक्रिय थे।
 
 
ईसा पूर्व 6ठी शताब्दी में एक महान पारसीक (प्राचीन ईरानवासी) साम्राज्य की स्थापना 'पेर्सिपोलिस में हुई थी जिसने 3 महाद्वीपों और 20 राष्ट्रों पर लंबे समय तक शासन किया। इस साम्राज्य का राजधर्म जरतोश्त या जरथुस्त्र के द्वारा 1700-1800 ईसापूर्व स्थापित, 'जोरोस्त्रियन' था और इसके करोड़ों अनुयायी रोम से लेकर सिन्धु नदी तक फैले थे।

 
4.ईरान के सम्राट : ईरान के ससान वंशी सम्राटों और पदाधिकारियों के नाम के आगे आर्य लगता था, जैसे 'ईरान स्पाहपत' (ईरान के सिपाही या सेनापति), 'ईरान अम्बारकपत' (ईरान के भंडारी) इत्यादि। प्राचीन पारसी अपने नामों के साथ 'आर्य' शब्द बड़े गौरव के साथ लगाते थे। प्राचीन सम्राट दार्यवहु (दारा) ने अपने को अरियपुत्र लिखा है। सरदारों के नामों में 'आर्य' शब्द मिलता है, जैसे अरियराम्र, अरियोवर्जनिस इत्यादि।

 
अरबों के (मुस्लिम खलीफा) के हाथ में ईरान का राज्य आने के पहले पारसियों के इतिहास के अनुसार इतने राजवंशों ने क्रम से ईरान पर राज्य किया:- 1. महाबद वंश, 2. पेशदादी वंश, 3. कवयानी वंश, 4. प्रथम मोदी वंश, 5. असुर (असीरियन) वंश, 6. द्वितीय मोदी वंश, 7. हखामनि वंश (अजीमगढ़ साम्राज्य) 8. पार्थियन या अस्कानी वंश और 9. ससान या सॅसेनियन वंश। महाबद और गोओर्मद के वंश का वर्णन पौराणिक है। वे देवों से लड़ा करते थे। कवयानी वंश में जाल, रुस्तम आदि वीर हुए, जो तुरानियों से लड़कर फिरदौसी के शाहनामे में अपना यश अमर कर गए हैं। इसी वंश में 1300 ईपू के लगभग गुश्तास्प हुआ जिसके समय में जरथुस्त्र का उदय हुआ।
 
 
महाबद और गोओर्मद के वंश का वर्णन पौराणिक है। वे देवों से लड़ा करते थे। गोओर्मद के पौत्र हुसंग ने खेती, सिंचाई, शस्त्ररचना आदि चलाई और पेशदाद (नियामक) की उपाधि पाई। इसी से वंश का नाम पड़ा। इसके पुत्र तेहेमुर ने कई नगर बसाए। सभ्यता फैलाई और देवबन्द (देवघ्न) की उपाधि पाई। इसी वंश में जमशेद हुआ जिसके सुराज और न्याय की बहुत प्रसिद्धि है। संवत्सर को इसने ठीक किया और वसंत विषुवत पर नववर्ष का उत्सव चलाया जो जमशेदी नौरोज के नाम से पारसियों में प्रचलित है।

 
पर्सेपोलिस विस्तास्प के पुत्र द्वारा प्रथम ने बसाया, किन्तु पहले उसे जमशेद का बसाया मानते थे। इसका पुत्र फरेंदू बड़ा वीर था जिसने काव: नामी योद्धा की सहायता से राज्यपहारी जोहक को भगाया। कवयानी वंश में जाल, रुस्तम आदि वीर हुए जो तुरानियों से लड़कर फिरदौसी के शाहनामे में अपना यश अमर कर गए हैं। इसी वंश में 1300 ई.पू.. के लगभग गुश्तास्प हुआ जिसके समय में जरथुस्त्र का उदय हुआ।

 
5.सिकंदर ने किया बर्बाद : सेंट एंड्र्यूज विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड के प्रोफेसर अली अंसारी के अनुसार प्राचीन ईरानी अकेमेनिड साम्राज्य की राजधानी पर्सेपोलिस के खंडहरों को देखने जाने वाले हर सैलानी को तीन बातें बताई जाती हैं कि इसे डेरियस महान ने बनाया था। इसे उसके बेटे जेरक्सस ने और बढ़ाया, लेकिन इसे 'उस इंसान' ने तबाह कर दिया जिसका नाम था- सिकंदर।

सन् 576 ईसा पूर्व नए साम्राज्य की स्थापना करने वाला था 'साइरस महान' (फारसी : कुरोश), जो 'हक्कामानिस' वंश का था। इसी वंश के सम्राट 'दारयवउश' प्रथम, जिसे 'दारा' या 'डेरियस' भी कहा जाता है, के शासनकाल (522-486 ईसापूर्व) को पारसीक साम्राज्य का चरमोत्कर्ष काल कहा जाता है। ईसा पूर्व 330 में सिकंदर के आक्रमण के सामने यह साम्राज्य टिक न सका। सन् 224 ईस्वी में जोरोस्त्रियन धर्मावलंबी 'अरदाशीर' (अर्तकशिरा) प्रथम के द्वारा एक और वंश 'सॅसेनियन' की स्थापना हुई और इस वंश का शासन लगभग 7वीं सदी तक बना रहा। 7वीं के प्रारंभ में ईरान में इस्लाम प्रवेश कर गया।

 
6.इस्लाम का ईरान : 7वीं शताब्दी में तुर्कों और अरबों ने ईरान पर बर्बर आक्रमण किया और कत्लेआम की इंतहा कर दी। 'सॅसेनियन' साम्राज्य के पतन के बाद इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा सताए जाने से बचने के लिए पारसी लोग अपना देश छोड़कर भागने लगे। इस्लामिक क्रांति के इस दौर में कुछ ईरानियों ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आए। भारत आ गए लोगों ने ही ही आज तक ईरान के प्राचीन धर्म और संस्कृति को संवरक्षित और सुरक्षित बनाए रखा है। हालांकि उधर, 1979 में ईरान में अयातुल्ला खोमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति हुई तो इन ईरानियों ने अपने बचे हुई प्राचीन स्मारक, मंदिर और मूर्तियों को भी तोड़ दिया था।

 
7.सऊदी अरब से शत्रुता : जिन अरबों ने ईरान को तबाह किया और वहां के लोगों को इस्लाम के अधिन किया वे अरब आज भी ईरानी लोगों से शत्रुता रखते हैं। लेकिन ईरानियों के सुफीवाद ने दुनिया में इस्लाम की एक नई रोशनी से शांति को जन्म दिया और इस्लाम के शांति के संदेश को विश्व में फैलाया लेकिन उस ईरान पर आज भी अरबों का संकट बरकरार है।
 
ईरान अकेला मुल्क है जहां शिया राष्ट्रीय धर्म है। इसके अलावा इराक और बहरीन में शिया बहुमत में हैं, लेकिन उन्हें सत्ता से बेदखल कर रखा है। धार्मिक मतभेद के कारण सऊदी अरब ने ईरान के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। सऊदी अरब के सबसे बड़े धर्म गुरु मुफ्ती अब्दुल अजीज अल-शेख के अनुसार ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं। अब्दुल-अजीज सऊदी किंग द्वारा स्थापित इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन के चीफ हैं। उन्होंने कहा कि ईरानी लोग 'जोरोस्त्रियन' यानी पारसी धर्म के अनुयायी रहे हैं।
 
 
उन्होंने कहा था, 'हम लोगों को समझना चाहिए कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं क्योंकि वे मेजाय (पारसी) के बच्चे हैं। इनकी मुस्लिमों और खासकर सुन्नियों से पुरानी दुश्मनी रही है। सऊदी अरब वाले अब भी खुद को वास्तविक मुसलमान मानते हैं। अरब जगत का मानना है कि ईरानियों ने हमेशा से अरबों या मुसलमानों से शत्रुता रखी थी।

हालांकि उपरोक्त बातों पर शोध किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यह लेख विभिन्न स्रोतों से संकलित तथ्‍यों पर आधारित है। यह अपूर्ण है और इसे अंतिम नहीं माना जाना चाहिए।