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सारे मंज़र देख लिए
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विलास पंडित 'मुसाफ़िर'यारों के घर देख लिएसारे मंज़र देख लिए,जो भी थे बुनियाद में शामिल वो भी पत्थर देख लिए, मय तो पानी जैसी पी ग़म भी पीकर देख लिए, आँसू की सौगात ही पाई खुलके हँसकर देख लिए, किसके पास है कितना दिल भटके दर-दर देख लिए, काँटों का तोहफा देते हैं फूल से पैकर देख लिए, एक 'मुसाफ़िर' ही तनहा था बाक़ी शायर देख लिए।