मैं तब भी वहाँ होता हूँ जानां!
विजय कुमार सप्पत्ती मैं अक्सर हौले से चलकर तेरे घर आ जाता हूँतुम्हारे साथ में बैठकर तुम्हें देख भी लेता हूँ ;और जब तुम घर के काम कर रही होती हो तो,मैं तुमसे बातें करते रहता हूँ ...यूँ ही, कुछ इधर-उधर की बातें ;जिनका मतलब होता है कि ;मैं तुमसे प्यार करता हूँ ...और हाँ ;तेरे हाथों के कौरों में मेरा भी तो हिस्सा होता है ... तुम जब चलती हो घर में ; एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते हुए,तुम जान नहीं पाती हो कि,मैं भी तो होता हूँ उन्हीं कदमों के साथ ..और जब तुम नींद में जाती हो ;तो मैं भी वहाँ लेटा हुआ तुम्हारी पीठ देखते रहता हूँ ...और अपनी ऊँगली से उस पर तेरा और मेरा ;नाम लिखते रहता हूँ ...और जब तुम यूँ ही अचानक ;ठहरी हुई हवा में मुझे ढूँढती हो;तो मैं मुस्कराता हूँ ...फिर देखता हूँ कि ;तुम्हारी आँखों की छोर परएक बूँद आँसू की ठहरी हुई होती हैं;मेरा नाम लिए हुए..तुम उसे पोंछ देती हो ;ये देखते हुए कि किसी ने देखा तो नहीं...मैं तब भी वहीं होता हूँ जानां!!!