ज़िंदगी से एक शाम समेटकर मैं सोचने बैठी कि आज... यह ज़िंदगी है क्या? परिभाषाओं से परे एक नाम है? या मंजिल के बिना एक अंतहीन सफर या फिर यह एक समुंदर है, जिसमें कहीं मोती हैं, तो कहीं खाली सीपों-सी बजती एक आशा है. आखिरकार यह ज़िंदगी है क्या? नंदनवन है? या फिर सेमल के फूलों से लदा एक उपवन? जिसमें, सिर्फ रंग ही रंग हैं और खुशबू का अहसास तक नहीं!