उन दिनों : तीन प्रेम कविताएँ
एकदो साइकिलें साथ-साथघरों से निकलती थींदो रास्ते आगेएक हो जाते थेदो कुर्सियाँ हमेशासटकर बैठती थींदो प्यालियाँ अक्सरबदल जाती थींउन दिनोंपास-पास लिखे जाते थे दो नामसाथ-साथ लिए जाते थे दो नामदोकुछ चुनी हुई किताबें थींअ जिन्हें पढ़ना चाहता थाकुछ ऐसे गीत थे अ जिन्हेंफुर्सत में सुनना चाहता थाचित्रों के बारे में तब भीअ को विशेष जानकारी न थीएक खास रंग था अ जिस पर अपनी जान छिड़कता थामगर उन दिनोंइ जो भी पसंद करती थीवह अ को भी पसंद आता थातीनसही समय पर वाचनालयबंद होना खलता थाकैंटीन का खचाखचभर जाना अखरता थामनपसंद जगह किसी काबैठे मिलना चिढ़ाता थासिनेमाघर में परिचित कादेख लेना डराता थाउन दिनों भाता नहीं थाछुट्टी का दिन, रविवारकॉलेज खुलने का इंतजार-
पवन करण