वक्त जख़्मों को भर देता है सुना था, किंतु तुम्हें सामने पाकर लगा कि वक्त भी वहीं है और तुमसे मिले जख़्म भी वहीं, न वक़्त गुज़रा है, न जख़्म भरे हैं, बस लगता है गुजर गई हूँ मैं...! ---------
एक क्षीण रेखा यादों की जब भी उभरी है मन पर मैंने अपने आप से पलायन कर लिया, तुम्हें बहुत दूर किनारे से याद कर लिया।