एक बार जब प्रभु श्रीराम लक्ष्मण व सीता सहित चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, तो वहां की राह बहुत पथरीली और कंटीली थी। सहसा श्रीराम के चरणों में एक कांटा चुभ गया। फलस्वरूप वे न ही रुष्ट हुए और ना ही क्रोधित हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती मां से एक अनुरोध करने लगे।
श्रीराम बोले- मां, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है तुमसे। क्या स्वीकार करोगी?'
धरती माता बोली- 'प्रभु प्रार्थना नहीं, दासी को आज्ञा दीजिए।'
'मां, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज में इस पथ से गुजरे, तो तुम नरम हो जाना। कुछ पल के लिए अपने आंचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना। मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पांव में आघात मत करना', विनम्र भाव से श्रीराम बोले।
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श्रीराम को यूं व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई।