माता संतोषी के जन्म की पौराणिक कथा
शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी और माता कालिका के साथ ही संतोषी माता की उपासना भी की जाती है। इस दिन खटाई नहीं खाते हैं और माता का व्रत रखते हैं। माता संतोषी का व्रत रखने और उनकी कथा सुनने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। अविवाहितों के विवाह हो जाते हैं। आओ जानते हैं कि माता संतोषी का जन्म कैसे हुआ।
गणेशजी की ऋद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियां हैं, जो प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। सिद्धि से 'क्षेम' और ऋद्धि से 'लाभ' नाम के 2 पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही 'शुभ-लाभ' कहा जाता है। शास्त्रों में तुष्टि और पुष्टि को गणेशजी की बहुएं कहा गया है। गणेशजी के पोते आमोद और प्रमोद हैं। मान्यता के अनुसार गणेशजी की एक पुत्री भी है जिसका नाम संतोषी है। संतोषी माता की महिमा के बारे में सभी जानते हैं।
कैसे हुआ संतोषी माता का जन्म : एक कथा के अनुसार भगवान गणेशजी अपनी बुआ से रक्षासूत्र बंधवा रहे थे। इसके बाद गिफ्ट का लेन-देन देखने के बाद गणेशजी के पुत्रों ने इस रस्म के बारे में पूछा। इस पर गणेशजी ने कहा कि यह धागा नहीं, एक सुरक्षा कवच है। यह रक्षासूत्र आशीर्वाद और भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।
यह सुनकर शुभ और लाभ ने कहा कि ऐसा है तो हमें भी एक बहन चाहिए। यह सुनकर भगवान गणेश ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और उनकी दोनों पत्नियों की आत्मशक्ति के साथ उसे सम्मिलित कर लिया। इस ज्योति ने कन्या का रूप धारण कर लिया और गणेशजी की पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम संतोषी रखा गया। यह पुत्री माता संतोषी के नाम से विख्यात है। हमें यह कथा अलग अलग पुराणों में भिन्न प्रकार की मिलती है।