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हल छठ की जनमानस में प्रचलित लोककथा

हल छठ की जनमानस में प्रचलित लोककथा - Hal Chhat Katha
एक नगर में दो स्त्रियां रहती थीं। दोनों एक ही परिवार की थीं और रिश्ते में देवरानी-जेठानी लगती थीं। देवरानी का नाम सलोनी था जो बड़ी ही नेक, सदाचारिणी तथा दयालु थी। जेठानी का नाम तारा था, वह स्वभाव से बड़ी ही दुष्ट थी।
 
एक बार दोनों ने हल छठ का व्रत किया। विधिवत पूजन इत्यादि के बाद शाम को दोनों भोजन के लिए थालियां परोसकर ठंडी होने के लिए रखकर बाहर जा बैठीं। उस दिन सलोनी ने खीर तथा तारा ने महेरी बनाई थी। अचानक दो कुत्ते उनके घर में घुसे और भोजन खाने लगे।
 
अंदर से 'चप-चप' की आवाज आई तो दोनों अपने-अपने कक्ष के भीतर जाकर देखने लगीं। सलोनी ने कुत्ते को खीर खाते देखा तो कुछ नहीं बोली तथा बर्तन में बची हुई बाकी खीर भी उसके आगे डाल दी। लेकिन तारा थाली में मुंह मारते कुत्ते को देखते ही आग-बबूला हो गई। उसने कमरे का द्वार बंद किया और फिर डंडा लेकर कुत्ते को इतना मारा कि उसकी कमर ही तोड़ डाली। कुत्ता अधमरा होकर जैसे-तैसे जान बचाकर वहां से भागा।
 
दोनों कुत्ते जब बाहर मिले तो एक-दूसरे का हाल-चाल पूछने लगे। जो कुत्ता सलोनी के यहां गया था, बोला- 'मैं जिसके कक्ष में गया था, वह स्त्री तो बड़ी भली है। मुझे खीर खाते देखकर भी उसने कुछ नहीं कहा, बल्कि बर्तन में खीर खत्म हो जाने के बाद उसने उसमें और खीर डाल दी ताकि मैं भरपेट खा सकूं। उसने तो मेरी आत्मा ऐसी तृप्त की कि मैं उसे बार-बार आशीर्वाद दे रहा हूं। मेरी तो ईश्वर से यही कामना है कि मरने के बाद मैं उसी का पुत्र बनूं और जीवनभर उसकी सेवा करके इस ऋण को चुकाता रहूं। जिस प्रकार उसने मेरी आत्मा को तृप्त किया है, उसी प्रकार मैं उसकी आत्मा को तृप्त और प्रसन्न करता रहूं। अब तुम बताओ, तुम्हारे साथ क्या बीती? लगता है, तुम्हारी तो वहां खूब पिटाई हुई है।'
 
दूसरा कुत्ता बड़े ही दुःखी स्वर में बोला- 'तुम्हारा अनुमान ठीक ही है भाई। आज से पहले मेरी ऐसी दुर्गति कभी नहीं हुई थी। पहले तो थाली में मुंह मारते ही सारा जबड़ा हिल गया। फिर भी भूख से परेशान होकर मैंने दो-चार कौर सटके ही थे कि वह दुष्ट आ गई और कमरा बंद करके डंडे से उसने मुझे इतना मारा कि मेरी कमर ही तोड़ डाली। मैं तो ईश्वर से यही निवेदन करता हूं कि अगले जन्म में मैं उसका पुत्र बनकर उससे बदला चुकाऊं। जैसे उसने मार-मारकर मेरी कमर तोड़ी है, वैसे ही भीतरी मार से मैं भी उसका हृदय और कमर तोड़ डालूं।'
 
कहते हैं कि बेजुबान की बद्दुआ बहुत बुरी होती है। इसे दैवयोग ही कहा जाएगा कि दूसरा कुत्ता शीघ्र ही मर गया और मरकर उसने तारा के घर में ही पुत्र रूप में जन्म लिया। पुत्र रत्न पाकर तारा बहुत खुश हुई। पुत्र को लेकर उसने अपने मन में बड़े-बड़े मंसूबे बांध लिए। 
 
मगर दूसरे दिन ही जब घर-घर में हल षष्ठी का पूजन हो रहा था, वह लड़का मर गया। तारा की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई। वह दहाड़े मार-मारकर रोने लगी। मगर किया क्या जा सकता था? जैसे-तैसे उसने अपने सीने पर सब्र का पत्थर रख लिया। फिर तो हर वर्ष उसके लड़का होता और हल षष्ठी के दिन मर जाता। जब तीन-चार बार ऐसा हुआ तो तारा को इस पर कुछ संदेह हुआ कि आखिर मेरा लड़का हल षष्ठी को ही क्यों मरता है?
 
फिर एक रात सपने में उसे वही कुत्ता दिखाई दिया। उसने कहा- 'मैं ही बार-बार तेरा पुत्र होकर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूं। तूने मेरे साथ जो व्यवहार किया था, मैं उसी का बदला चुका रहा हूं।'
 
तारा बहुत दुःखी हुई और उसने अपने किए का प्रायश्चित करने का उपाय पूछा। तब उस कुत्ते ने बताया- 'अब से हल छठ के व्रत में हल से जुता हुआ अन्न तथा गाय का दूध-दही न खाना। होली की भुनी हुई बाल तथा होली की धूल आदि हलछठ-पूजा में चढ़ाना। तब कहीं मैं तेरे घर में आकर जीवित रहूंगा। पूजा के समय यदि तारक गण छिटकें तो तू समझना कि अब मैं यहां जीवित रहूंगा।
 
तारा ने वैसा ही किया और इस हल षष्ठी के व्रत के प्रभाव से उसकी संतान जीने लगी। तभी से संतान कामना और सुख-सौभाग्य के लिए यह व्रत किया जाता है।  

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