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Last Updated : शुक्रवार, 13 मई 2022 (19:07 IST)

कब है नृसिंह जयंती, इस धरती पर आज भी है वह खम्भा जिसमें से प्रकट हुए थे भगवान नृसिंह

Narsingh Bhagwaan
Narsingh Bhagwaan
Lord Narasimha Narsingh Jayanti 2022: हिरण्यकश्यप को ब्रह्माजी से वरदान मिला था कि उसे कोई भी न धरती पर और न आसमान में, न भीतर और न बाहर, न सुबह और न रात में, न देवता और न असुर, न वानर और न मानव, न अस्त्र से और न शस्त्र से मार सकता है। इसी वरदान के चलते वह निरंकुश हो चला था। उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था।
 
 
उसका पुत्र प्रहलाद श्रीहरि विष्णु का परमभक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु को पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड देने का आदेश दे दिया।
 
 
हर बार भगवान विष्णु की कृपा और चमत्कार से प्रहलाद बच गया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
 
 
सभी तरह के उपक्रम के बाद भी भक्त प्रहलाद को हिरण्यकशिपु नहीं मार सकता तो खुद ही उसने प्रहलाद को मारने की सोची। प्रहलाद को पकड़ कर राजभवन में लाया और उसने कहा तू कहता है कि तेरे विष्णु सभी जगह है तो क्या इस खंबे में भी है? प्रहलाद कहता है कि हां। तब हिरण्यकशिपु खम्भे में एक लात मारता है और फिर अपनी गदा से खम्बे पर वार करता है। तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खम्भे से प्रकट होकर चारों ओर भय छा गया।
 
 
तब श्रीहरि विष्णु ने नृसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु को उठाया और वे उसे महल की देहली पर ले गए। उस वक्त न दिन था न रात। श्रीहरि उन्हें न धरती पर मारा न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से बल्की देहली पर बैठकर अपनी जंघा पर रखकर उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु की छाती चीर दी।
 
 
माणिक्य स्तम्भ (Manikya stambh): 
1. लोकमान्यता है कि वह टूटा हुआ खंभा आज भी मौजूद है। कहते हैं कि बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में वह स्थान मौजूद है जहां असुर हिरण्यकश्यप का वध हुआ था। 
 
2. हिरण्यकश्यप के सिकलीगढ़ स्थित किले में भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए एक खम्भे से भगवान विष्णु का नृसिंह अवतार हुआ था। वह खम्भा आज भी वहां मौजूद है, जिसे माणिक्य स्तम्भ कहा जाता है। माणिक्य स्तम्भ की देखरेख के लिए यहां पर प्रहलाद स्तम्भ विकास ट्रस्ट भी है।
 
3. कहा जाता है कि इस स्तम्भ को कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया, हालांकि वह इस उपक्रम में झुक तो गया लेकिन टूटा नहीं। यहां के लोगों का कहना है कि इस स्तंभ का जिक्र भागवत पुराण के सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय में मिलता है।
 
4. इस खंभे से कुछ दूरी पर ही हिरन नामक नदी बहती है। कहते हैं कि नृसिंह स्तम्भ के छेद में पत्थर डालने से वह पत्‍थर हिरन नदी में पहुंच जाता है। हालांकि अब ऐसा होता है या नहीं यह कोई नहीं जानता है। 
 
5. इस स्थल की विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। कहते हैं कि जब होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद चिता से सकुशल वापस निकल आए तब लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगा-लगाकर खुशियां मनाई थीं। इस क्षेत्र में मुसहर जाति की बहुलता है जिनका उपनाम ‘ऋषिदेव’ है।
 
6. यहीं पर एक विशाल मंदिर है जिसे भीमेश्‍वर महादेव का मंदिर कहते हैं। यहीं पर हिरण्यकश्यप ने घोर तप किया था। जनश्रुति के अनुसार हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष बराह क्षेत्र का राजा था। यह क्षेत्र अब नेपाल में पड़ता है।
 
 
उग्र स्तंभ (Ugra stambha): इसी प्रकार से कुरनूल के पास अहोबलम या अहोबिलम में भी इस तरह के एक स्तंभ के होने की बात कही जाती है। अहोबला नरसिम्हा मंदिर आंध्र प्रदेश के कुरनूल में स्थित है। आंध्रप्रदेश के ऊपरी अहोबिलम शहर में नल्लमला जंगल के बीच स्थित उग्र स्तंभ एक प्राकृतिक चट्टान है। यहां आने वाली ट्रेल एक तीर्थयात्रा मार्ग भी है क्योंकि मान्यता है की भगवान नरसिंह यहां प्रकट हुए थे।