भारत माता मंदिर : राष्ट्र का अनूठा आराधना स्थल
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अमितांशु पाठक (वाराणसी)
भारत माता मंदिर के उद्घाटन अवसर पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शब्द थे- 'इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। यहां संगमरमर पर उभरा हुआ भारत का मानचित्र भर है। मुझे आशा है कि यह मंदिर सभी धर्मों, हरिजनों समेत सभी जातियों और विश्वासों के लोगों के लिए एक सार्वदेशिक मंच का रूप ग्रहण कर लेगा और इस देश में पारस्परिक धार्मिक एकता, शांति तथा प्रेम की भावनाओं को बढ़ाने में बड़ा योग देगा। इस तीर्थ का उद्घाटन करते हुए मेरे मन में जो भावनाएं उमड़ रही हैं, उनको मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा हूं।' प्राचीन नगरी काशी मंदिरों का नगर है। यहां की गलियों में असंख्य मंदिर स्थापित हैं। मंदिर ही क्यों, यहां तो मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे भी अनेक हैं, पर इन पूजा स्थलों की भीड़ से बिलकुल अलग एक निराला मंदिर- भारत माता का मंदिर शहर के इंगलिशिया लाइन और सिगरा चौराहे के बीच स्थित है।
वर्ष 1936 में स्थापित यह मंदिर अपनी विशिष्टताओं के कारण आज विभिन्न धर्मावलंबी असंख्य भारतीयों की 'श्रद्धा का मंदिर' बन चुका है। अंग्रेजों की अधीनता में दबे भारतीयों ने इस भव्य और अनूठे मंदिर की परिकल्पना की और उन दिनों करीब 10 लाख रुपए की लागत से काशी के रईस राष्ट्ररत्न शिवप्रसाद गुप्त ने इसका निर्माण कराया।