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Written By ND

सृष्टि की कारक है स्त्री

कन्या जन्म को परिवार में शुभ मानें

नारी
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पूरे विश्व में नारी के कल्याण के लिए, उसे प्रोत्साहन देने के लिए तथा उसकी उपलब्धियों पर रोशनी डालने के लिए महिला दिवस एक ऐसा पर्व है जब समाज को पुनः याद दिलाया जा सकता है कि नारी समाज का महत्वपूर्ण अंग है। कन्या के जन्म को परिवार में शुभ मानना चाहिए।

स्त्री के विविध रूप हैं पुत्री, पत्नी, माता आदि। आज हमारे देश में स्त्री-पुरुष का अनुपात तेजी से घट रहा है। प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या में गिरावट आ रही है। इस सबके पीछे कारण है आज के युग में कन्याओं की अवहेलना और एक ऐसा जघन्य अपराध कन्या भ्रूण हत्या के रूप में शुरू हो गया है।

कन्या भ्रूण हत्या, कन्या को पालने-पोसने, उसकी अस्मिता की रक्षा करने और जवान होने पर भारी दहेज देकर उसका विवाह करने से बचने करने के लिए आजकल लोग कन्या जन्म को अभिशाप मानने लगे हैं। साथ ही इस अभिशाप से बचने के लिए वे कन्या भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध को करते हैं।

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इस अपराध से आज का यह मानव बचे इसके लिए दाती मदन महाराज राजस्थानी ने बताया कि नारी संस्कृति का प्रतीक है। नारी सृष्टि का कारक है। पूरे विश्व में नारी के कल्याण के लिए उसे प्रोत्साहन देने के लिए उसकी उपलब्धियों पर रोशनी डालने के लिए महिला दिवस एक ऐसा पर्व है जब समाज को पुनः याद दिलाया जा सकता है।

नारी समाज का महत्वपूर्ण अंग है। कन्या के जन्म को अपने परिवार में शुभ मानें। इसी बात को ध्यान में रखकर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर्व को श्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज के सान्निध्य में श्री शनिधाम ट्रस्ट द्वारा संचालित गुरुकुल आश्वासन बाल ग्राम प्रांगण में धूमधाम से मनाया। स्त्री-पुरुष से कम नहीं है, नारी की उपलब्धियों पर डाली जाएगी रोशनी, नारी की अवहेलना नहीं, करें सम्मान! इस नारे के साथ इस पर्व की तैयारियाँ पूर्ण जोश के साथ चल रहीं हैं।

भारतीय महिलाओं की परिस्थति कालांतर में निम्न-उच्च सीमाओं में बदलती रही है। यद्यपि महिलाओं की परिस्थिति जैसी उन्नत दिखाई पड़ती है वैसी पिछली दस सदियों में नहीं रही है। महिलाओं की स्थिति में सुधार लाए बिना विश्व का कल्याण संभव नहीं है। एक पंख से समाज रूपी चिड़िया उड़ान नहीं भर सकती।

अतः समाज रूपी चिड़िया सही दिशा में सही वेग से, दोनों पंखों यानी स्त्री व पुरुषों में संतुलन स्थापित कर अपनी उड़ान पूरी करें। स्त्री के बिना पुरुष अपूर्ण है तथा पुरुष के बिना स्त्री अपूर्ण है। इन जीवन रथ के दो चक्रोंस्त्री एवं पुरुष के समान चलने पर ही जीवन आनंदमय बनता है। स्त्री बिना पुरुष की कोई सत्ता ही नहीं है।