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Written By WD

अधिक मास को कैसे समझें?

चिंता मुक्त जीवन प्रदान करता है अधिक मास

अधिक मास
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ज्योतिष गणित में सूक्ष्म विवेचन के बाद अब स्वीकारा जा चुका है कि- जिस चंद्रमास में सूर्य का स्पष्ट गति प्रमाणानुसार संक्रमण न हो वह 'अधिक मास' और जिसमें दोबारा राशि संक्रमण हो उसे 'क्षय मास' मानें।' शास्त्रविदों ने अलग-अलग अधिकमासों की अलग-अलग फलश्रुति दी है।

* अधिक मास को मलमास कहा, क्योंकि शकुनि, चतुष्पद, नाग व किंस्तुघ्न ये चार करण, रवि का मल माने जाते हैं, इसलिए उनकी संक्रांति से जुड़े होने के कारण वह मास 'मलमास' कहलाता है।

* सादी भाषा में मलमास में शादी, जनेऊ व यज्ञ प्रधान उत्सव न करके, ईश्वर आराधना, स्नान-दान, पुण्यक्रियाएं करना एवं शास्त्रों का श्रवण करना व दैनिक जीवन धर्ममय रखने को कहा गया है।

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* जैसे चैत्र अधिक मास हो तो धरती पर वस्तुओं की सुलभता, प्रजा के आरोग्य की रक्षा व अनुकूल वृष्टि योग बताया है।

* वैसे ही वैशाख मास का अधिक मास हो, जैसा इस वर्ष है, तो प्रजा सुखी रहेगी, वर्षा बढ़िया होकर धन-धान्य में उत्तम वृद्धि होगी आदि का उल्लेख है। इसी तरह भिन्न-भिन्न अधिक मास के प्रभाव भिन्न हैं।

पुरुषोत्तम मास कथा श्रवण के माहात्म्य को शुभ फलदायी बनाने हेतु व्यक्ति को पुरुषोत्तम मास में अपना आचरण अति पवित्र व मनोनिग्रह के साथ प्राणी मात्र से चरित्र को उजागर करने वाला सद्व्यवहार करना चाहिए।

* दान का इस मास पर्यंत बड़ा महत्व है।

* इस मास की शुक्ल व कृष्ण पक्ष की एकादशी पद्मिनी व परमा एकादशी कहलाती है, जो इष्ट फलदायिनी, वैभव व कीर्ति में वृद्धि करती है और मनोइच्छा पूर्ण कर उपवासी नर-नारी को चिंता मुक्त जीवन प्रदान करती है।