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Last Modified: बुधवार, 18 मई 2022 (11:49 IST)

जानिए कौन हैं नंदी, क्या है इनकी कथा, शिव से क्या है रिश्ता

nandi
उत्तरप्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में विशाल शिवलिंग के मिलने का दावा किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार पुरातत्व विभाग सबसे पहले शिवलिंग और मस्जिद के बाहर ज्ञानवापी मंडप के पास प्रतिष्ठित विशाल नंदी की दूरी नापने की तैयारी कर रहा है। आओ जानते हैं कि यह नंदी कौन है और क्या है इनका शिवजी से रिश्ता।
 
 
कौन है नंदी : भगवान शिव के प्रमुख गणों में से एक है नंदी। माना जाता है कि प्राचीनकालीन किताब कामशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और मोक्षशास्त्र में से कामशास्त्र के रचनाकार नंदी ही थे। बैल को महिष भी कहते हैं जिसके चलते भगवान शंकर का नाम महेश भी है।
 
नंदी कैसे बने शिव के गण : शिव की घोर तपस्या के बाद शिलाद ऋषि ने नंदी को पुत्र रूप में पाया था। शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नाम के दो दिव्य ऋषि पधारे। नंदी ने अपने पिता की आज्ञा से उन ऋषियों की उन्होंने अच्छे से सेवा की। जब ऋषि जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिन नंदी को नहीं।
 
 
तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहीं दिया? इस पर ऋषियों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंता को नंदी ने जानकर पूछा क्या बात है पिताजी। तब पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारे में ऋषि कह गए हैं इसीलिए मैं चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्यों नाहक चिंता करते हैं।
 
 
इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने के लिए चले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी के कहा कि मैं उम्रभर आपके सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरा देकर उन्हें अपने वाहन, अपना दोस्त, अपने गणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।
 
बैल की पूजा या कथा विश्व के सभी धर्मों में मिल जाएगी। सिंधु घाटी, मेसोपोटामिया, मिस्र, बेबीलोनिया, माया आदि सभी प्राचीन सभ्यताओं में बैल की पूजा का उल्लेख मिलता है। सभ्यताओं के प्राचीन खंडहरों में भी बैल की मूर्ति मिल जाएगी। सुमेरियन, असीरिया और सिंधु घाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई है। भारत में बैल खेती के लिए हल में जोते जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है।
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