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Pradosh Vrat : प्रदोष व्रत की 10 पौराणिक बातें आपको पता होना चाहिए...

Pradosh Vrat : प्रदोष व्रत की 10 पौराणिक बातें आपको पता होना चाहिए... - significance of Pradosh Vrat
1.प्रदोष माह में दो बार यानी शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की बारस अथवा तेरस को आता है। 
 
2.प्रदोष का व्रत एवं उपवास भगवान सदाशिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
 
3.प्रदोष काल में स्नान करके मौन रहना चाहिए, क्योंकि शिवकर्म सदैव मौन रहकर ही पूर्णता को प्राप्त करता है। 
 
4. इसमें भगवान सदाशिव का पंचामृतों से संध्या के समय अभिषेक किया जाता है।
 
5. प्रदोष का सबसे बड़ा महत्व है कि सोम (चंद्र) को, कृष्णपक्ष में प्रदोषकाल पर्व पर भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण किया था। यह सोम प्रदोष के नाम से जाना जाता है। उपासना करने वाले को एवं प्रदोष करने वाले को सोम प्रदोष से व्रत एवं उपवास प्रारंभ करना चाहिए। 
 
6. प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्‍वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।
 
7. पौराणिक कथानुसार चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ। चंद्र एवं रोहिणी बहुत खूबसूरत थीं एवं चंद्र का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख शेष कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से अपना दु:ख प्रकट किया। दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति के थे और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे। शनै:-शनै: चंद्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होना प्रारंभ हो गईं। नारदजी ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने को कहा, तत्पश्चात दोनों ने भगवान आशुतोष की आराधना की।
 
8.चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे (चंद्र की अंतिम एकधारी) तब भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए। पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए।
 
9.'प्रदोष में दोष' यही था कि चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे थे। 'प्रदोष व्रत' इसलिए भी किया जाता है कि भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया अत: हमें उस शिव की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण किया था।
 
10. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के बाद शिव महारात्रि का आगमन होता है। भगवान शिव पंचमुखी होकर 10 भुजाओं से युक्त हैं एवं पृथ्वी, आकाश और पाताल तीनों लोकों के एकमात्र स्वामी हैं। शिव का रूप ज्योतिर्मय भी है। एक रूप ज्योतिर्मय भी है। एक रूप भौतिकी शिव के नाम से जाना जाता है जिसकी हम सभी आराधना करते हैं।