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‘शून्य’ की भारतीय गणितीय परंपरा से दुनिया को रूबरू कराने की पहल

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नई दिल्ली। योग की भारतीय परंपरा को दुनिया में मान्यता दिलाने के बाद अब सरकार प्राचीन भारत में हुई गणित से जुड़ी शून्य की महत्वपूर्ण खोज के आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, कला, संगीत और दार्शनिक पहलुओं से दुनिया को रूबरू कराने की पहल कर रही है।
 
मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी यूनेस्को मुख्यालय में शून्य पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भागीदारी कर रही हैं जिसका आयोजन यूनेस्को में भारत के स्थायी प्रतिनिधिमंडल और पेरिस स्थित पियरे एंड मेरी क्यूरी विश्वविद्यालय साथ मिलकर कर रहे हैं। इसमें यूनेस्को की महानिदेशक इरीना बोकोवा भी हिस्सा ले रही हैं। सम्मेलन के कई सत्रों में शून्य के विविध आयामों पर व्याख्यान भी होंगे।
 
जाने-माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल ने कहा कि भारत के गणितज्ञों को संख्याओं की शुरुआत करने का श्रेय जाता है। सदियों पहले शून्य का आविष्कार भारत में ही हुआ जिसके आधार पर गणित की सारी बड़ी गणनाएं होती हैं। प्राचीन भारतीय शास्त्रों और श्लोकों में गणित के तथ्य छिपे हुए हैं, जो कुछ न होकर भी सब कुछ कहते हैं।
 
उन्होंने कहा कि गणित के क्षेत्र में इस महान खोज को आज दुनिया के समक्ष भारत के संदर्भ में रखना अच्छी पहल है तथा प्राचीन ग्रंथों में ऐसी चर्चा रही कि आखिर शून्य किसे कहेंगे अर्थात जो इतना छोटा हो जिसे हम माप नहीं सकेंगे, वही शून्य है। विज्ञान की भाषा में जो प्लैंक सीमा से छोटा हो उसे शून्य कहेंगे।
 
कई वैज्ञानिक शोधों में कहा गया है कि यदि आप शून्य के भाव को देखें तो आप देखेंगे कि शून्य का अपना एक महत्व है। बिग बैंग का सिद्धांत कहता है कि महाविस्फोट से पहले जब दिक, काल नहीं था तब ब्रह्मांड सूक्षमातिसूक्ष्म रूप में था। उसी सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप को प्राचीन ग्रंथों में गुहा कहा गया है और शून्य की उत्पत्ति भी इसी से जुड़ी बताई गई है।
 
आईआईटी मुंबई के प्रो. के. सुब्रमण्यम ने कहा कि हम बातचीत के दौरान संख्याओं का प्रयोग करते हैं। अंकों का अध्यात्म से जुड़ाव है। 10 से 17 तक की संख्याओं को भारतीय दर्शन में मुक्ति मार्ग से जोड़ा गया है जिसमें शून्य काफी महत्वपूर्ण है।
 
प्रो. सुब्रमण्यम के अनुसार, बौद्ध धर्म में शून्य का बड़ा महत्व है और इसे चिंतन तथा ध्यान से जोड़ा गया है और जैन धर्म में अनंत संख्याओं को अध्यात्म से जोड़ा गया है। 
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में गणितज्ञ जॉर्ज जी. जोसेफ ने अपने शोधपत्र में कहा है कि भारत द्वारा दी गई गणित की पद्धति अद्भुत है। मसलन यदि हम 222 लिखते हैं तो इसमें पहला ‘दो’ इकाई को दर्शाता है, जबकि दूसरे ‘दो’ का मतलब दहाई से और तीसरे ‘दो’ का मतलब सैकड़े से है। अर्थात भारतीय गणित पद्धति में किसी एक संख्या के स्थान से ही उसके स्थानिक मान का निर्धारण होता है।
 
शोधपत्र में कहा गया है कि भारतीय गणित पद्धति से हम बड़ी से बड़ी संख्या को बहुत आसानी से और कम से कम संख्या के प्रयोग से व्यक्त कर सकते हैं जबकि ग्रीक या रोमन पद्धति इतनी विकसित नहीं है। बाकी दुनिया को जब शून्य का पता भी नहीं था, तब भारत में 75वीं ईसवीं में शून्य का चलन बहुत ही आम था।
 
लगभग डेढ़ हजार साल पहले गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने शून्य के प्रयोग से जुड़ी एक किताब लिखी जिसमें उन्होंने शून्य के प्रयोग के बारे में विस्तार से बताते हुए इसके आधारभूत सिद्धांतों की जानकारी भी दी।
 
वेद प्रतिष्ठान के पंडित दुर्गेश पांडे ने कहा कि वेदांतों में जिसे ब्रह्म कहा गया है, वह शून्य ही ब्रह्म का प्रतीक है। अनंत का नाम ही शून्य है। गणित का अभ्यास अध्यात्म से जुड़ा विषय है।
 
यूनेस्को मुख्यालय में शून्य पर यह सम्मेलन 4 और 5 अप्रैल को हो रहा है। इस सम्मेलन का शुरुआती व्याख्यान प्रिंस्टन विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर और फील्ड मेडल विजेता प्रोफेसर मंजुल भार्गव द्वारा जेम्स फॉर रामानुजन एंड देयर लास्टिंग इंपैक्ट ऑन मैथेमेटिक्स है। इस दौरान प्रोफेसर मंजुल भार्गव द्वारा भारतीय संगीत में गणित पर विशेष सत्र सम्मेलन का मुख्य आकर्षण होगा।
 
समारोह के दौरान यूनेस्को में कई सत्रों का आयोजन किया जा रहा है जिसमें गणित और विज्ञान पर फिल्में और युवा श्रोताओं को ध्यान में रखकर विशेष सत्रों का आयोजन भी किया जाएगा। (भाषा)