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Last Updated: शनिवार, 5 नवंबर 2022 (12:13 IST)

राजा भर्तृहरि कौन थे, जानिए उनकी नीति

guru shukracharya
भारत में एक से एक महान राजर्षि हुआ हैं जिन्होंने देश को एक नई दशा और दिशा दी है। उन्हीं में से एक थे राजा भर्तुहरि। राजा भर्तृहरि के बारे में सभी जानना चाहते हैं। उन्होंने भी चाणक्य, विदुर आदि की तरह अपने नीति वाक्य लिखें हैं। आओ जानते हैं कि राजा भर्तृहरि कहां के राजा थे, कौन थे और क्या है उनकी नीति।
 
कौन थे राजा भर्तहरि : राजा भर्तहरि या भर्तृहरि संस्कृत के विद्वान कवि और नीतिकार थे। वे सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। कुछ लोग इन्हें चन्द्रगुप्त द्वितीय का बड़ा भाई मानते हैं। कहते हैं कि वे एक घटना के बाद गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर योग साधना करके योगी बन गए थे। संन्यास धारण करके के बाद जनमानस में वे बाबा भरथरी के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे। उन्होंने उज्जैन में एक गुफा में तप किया था जिसके चलते उस गुफा का नाम भर्तहरि गुफा पड़ा। भर्तहरि की शतकत्रय की उपदेशात्मक कहानियां भारतीय जनमानस में रचीबसी हुई है। इस नाम से तीन शतक है- नीतिशतक, श्रृंगारशतक, वैराग्यशतक। कहते हैं कि प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। ऐसा भी कहते हैं कि नाथपंथ के वैराग्य नामक उपपंथ के भी यही प्रवर्तक थे।  
 
भर्तुहरि की नीति :
 
1.
'दानं भोगो नाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । 
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥
 
धन की यह तीन गति होती हैं - दान, भोग और नाश.. लेकिन जो न तो धन को दान में देता है और न ही उस धन का भोग करता है, उसके धन की तीसरी गति तो निश्चित है.....! वर्तमान परिस्थिति में यह पंक्तियां प्रासंगिक हैं।
 
2.
खोटी संपत्ति से राजा, अधिक मोह से संतान, अधिक मेल जोल से साधु संत, अध्ययन न करने से ज्ञानी, कुपुत्र से कुल, नशे से शर्म, देखभाल न करने से खेती, आय से अधिक व्यय करने से धनी नष्ट हो जाते हैं।
 
3.
ज्ञानी और अज्ञानी दोनों को समझाया जा सकता है, लेकिन जो लोग थोड़ा बहुत जानकर खुद को ज्ञानी मानते हैं, उन्हें तो ब्रह्मा भी नहीं समझा सकते।
 
4.
जल से अग्‍नि को शांत कर सकते हैं। छाते से धूप, अंकूश से हाथी का, मंत्र से विष का, औषधियों से रोगों का निवारण हो जाता है परंतु मूर्ख व्यक्ति के लिए कोई औषधी नहीं बनी है।
 
5.
जो मनुष्य साहित्य, संगीत कला, और कलाओं (शिल्प आदि) से अनभिज्ञ है वह बिना पूंछ और सींग का पशु ही है। यह मनुष्य रूपी पशु बिना घास खाये ही जीवित रहता है और यह प्राकृत पशुओं के लिए बड़े सौभाग्य की बात है, अन्यथा यह पशुओं का चारा और घास ही समाप्त कर देता।
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