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Last Updated : मंगलवार, 3 जनवरी 2023 (09:40 IST)

मंगलदेव के बारे में 10 रहस्यमयी जानकारी

मंगलदेव के बारे में 10 रहस्यमयी जानकारी - 10 mysterious information about Mangal Dev
Mangal dev ke 10 rahasya: मंगल एक ग्रह है और मंगल एक देवता। मंगल देवता या मंगल देव को मंगल ग्रह का देवता माना जाता है। कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में मंगल होता है, तब मांगलिक दोष लगता है। मंगल दोष की शांति हेतु उनकी भी पूजा की जाती है। आओ जानते हैं मंगलदेव के बारे में 10 रहस्यमयी जानकारी।
 
1. मंगल देव को भूमि का पुत्र माना जाता है। माता सीता को भी भूमि की पुत्री माना जाता है। यानी मंगलदेव और माता सीता दोनों आपस में भाई बहन हैं।
 
2. मंगल देव मंगल ग्रह के देवता हैं और उन्हें युद्ध का देवता की माना जाता है।
 
3. मंगल देव का रंग लाल है। मंगल ग्रह का भी रंग लाल होने के कारण उसे अंगारक भी कहा जाता है। 
 
4. कई जगह पर मंगलदेव को ब्रह्मचारी माना गया है लेकिन कुछ जगह पर उनकी संगिनी ज्वालिनी देवी को माना गया है।
 
5. मंगल देव का वाहन भेड़ है और वे हाथों में त्रिशूल, गदा, पद्म और भाला या शूल धारण किए हुए हैं। 
 
8. मंगल देव की प्रकृति तमस गुण वाली है। मंगल साहस, आत्मविश्वास और अहंकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
 
7. मंगल ग्रह या मंगलदेव का वार मंगलवार है। इसी दिन उनकी विशेष पूाज होती है। हनुमानजी की पूजा करने से राहु, केतु, शनि और मंगल शांत रहते हैं।
 
8. कुंडली में यदि राहु के साथ मंगल की युति बनती है तो उसे अंगारक योग कहते हैं जो युद्ध और आग को जन्म देते हैं।
 
9. मंगल ग्रह मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी है। 
 
10. मंगल दोष की शांति हेतु उनकी भी पूजा की जाती है। यह पूजा उज्जैन स्थित मंगलनाथ पर और अमलनेर महाराष्ट्र स्थित मंगलदेव मंदिर पर होती है।
मंगल उत्पत्ति कथा | Mangal Origin Story:
 
1. पहली कथा : मंगल ग्रह की उत्पत्ति का एक पौराणिक वृत्तांत स्कंदपुराण के अवंतिका खण्ड में मिलता है। एक समय उज्जयिनी पुरी में अंधक नाम से प्रसिद्ध दैत्य राज्य करता था। उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक दानव था। एक बार उस महाशक्तिशाली वीर ने युद्ध के लिए इन्द्र को ललकारा तब इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके साथ युद्ध कर उसे मार गिराया। उस दानव को मारकर वे अंधकासुर के भय से भगवान शंकर को ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गए। इन्द्र ने भगवान चंद्रशेखर के दर्शन कर अपनी अवस्था उन्हें बताई और रक्षा की प्रार्थना की, भगवन! मुझे अंधकासुर से अभय दीजिए। इन्द्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने इंद्र को अभय प्रदान किया और अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते-लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के समान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल का जन्म हुआ। अंगारक, रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र, इन नामों से स्तुति कर ब्राह्मणों ने उन्हें ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित किया, तत्पश्चात उसी स्थान पर ब्रह्मा जी ने मंगलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंग की स्थापना की। वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है। 
 
2. दूसरी कथा : ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार वाराह कल्प में दैत्य राज हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर सागर में ले गया। भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार ले कर हिरण्याक्ष का वध कर दिया तथा रसातल से पृथ्वी को निकाल कर सागर पर स्थापित कर दिया जिस पर परम पिता ब्रह्मा ने विश्व की रचना की। पृथ्वी सकाम रूप में आ कर श्री हरि की वंदना करने लगी जो वाराह रूप में थे। पृथ्वी के मनोहर आकर्षक रूप को देख कर श्री हरि ने काम के वशीभूत हो कर दिव्य वर्ष पर्यंत पृथ्वी के संग रति क्रीडा की। इसी संयोग के कारण कालान्तर में पृथ्वी के गर्भ से एक महातेजस्वी बालक का जन्म हुआ जिसे मंगल ग्रह के नाम से जाना जाता है। देवी भागवत में भी इसी कथा का वर्णन है।