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Written By WD

भक्त और भगवान का तालमेल

भगवान करते हैं भक्तों का गुणगान

भक्त
WD

जो भक्त बड़े प्यार से मुझे भजता है, मैं बिना मांगे ही उसके चित्त में ज्ञान का दीप जलाता हूं। भगवान कहते हैं कि भक्त के मन में मुझसे मिलने की इच्छा तीव्र हो तो मैं उसे अपने आप ही मिल जाऊंगा। भगवान अपने भक्तों का गुणगान करते हैं। भक्त का चित्त और प्राण ईश्वर में समाहित होता है।

भगवान कहते हैं- बुद्घि, ज्ञान, क्षमा, सत्य, शम-दम, सुख-दुख, अहिंसा, समता, दान, यश, शक्ति, प्रकाश, तेज आदि मुझसे ही हैं। जैसे जल का ऐश्वर्य बर्फ है, उसी तरह ईश्वर का ऐश्वर्य विभूति कहलाता है।

साधक के जीवन में गुरु का होना ईशकृपा का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है।

ND
श्रीमद्भागवत कथा आध्यात्मिक रस वितरण की वह सार्वजनिक प्याऊ है जिसमें व्यक्ति को शांति और समाज को कांति का शीतल पेय मिलता है।

जो देता है उसे देवता कहते है। अतः सूर्य, जल, वायु, आकाश तथा पृथ्वी पांचों जड़ देवता है तथा चेतन देवता ईश्वर, गुरु तथा माता-पिता है। पूजा का अर्थ होता है यथा योग्य व्यवहार करना। यज्ञ के द्वारा जड़ तथा चेतना देवताओं के साथ यथा योग्य व्यवहार अर्थात्‌ पूजा का अवसर प्राप्त होता है।