पाँच सगी बहनें धर्म की डगर पर
समाज को दिशा देने लिया निर्णय
धर्म और संयम का मार्ग बहुत कठिन होता है, लेकिन संतों की कृपा जिस पर हो उनके लिए यह सहज और दुनिया के सभी सुख से बढ़कर हो जाता है। धर्मपथ पर चलकर सामान्य व्यक्ति भी समाज का मार्गदर्शक बन जाता है। जैन संतों की कुछ ऐसी ही कृपा रायपुर के डौंडीलोहारा के भंसाली परिवार पर हुई है। इस परिवार की पाँच सगी बहनों ने जैन धर्म की दीक्षा ली है। छठवीं बहन भी दीक्षा लेने की तैयारी में हैं। यह सभी बहनें पूरे देश में विहार कर लोगों को सत्य व संयम का उपदेश दे रही हैं। विहार पर निकलीं पाँचों बहनें संयोग से इन दिनों राजधानी में हैं। डौंडीलोहारा दुर्ग जिले का एक छोटा-सा कस्बा है, जहाँ हजारीमल भंसाली कपड़े का व्यापार करते हैं। इनकी सात बेटियाँ और चार बेटे हैं। सबसे बड़ी बेटी पुष्पा का विवाह हो चुका है। सबसे पहले उनकी दूसरे नंबर की बेटी शारदा ने सन् 1984 में दीक्षा ली। उसके बाद एक-एक कर अन्य बेटियाँ भी उसी मार्ग पर जाने लगीं। संतों से मिली प्रेरणा : मुनिश्री शारदा म.सा. ने बताया कि वे जैन संत अमरमुनि जी, शांतिमुनि जी, सती कस्तूरकंवर जी व चंदनबाला जी से प्रभावित हुईं। उन्हीं की प्रेरणा से 22 वर्ष की उम्र में रतलाम (मध्यप्रदेश) में दीक्षा ली। दूसरी बहन मुनिश्री दिव्यप्रभा जी म.सा (सरिता) ने 1987 में इंदौर में दीक्षा ली। उस समय वे 21 साल की थीं। भाई-बहनों में वह चौथे नंबर की हैं। इसके बाद मुनिश्री लक्षिता जी म.सा.(अनिता) ने 1997 में बदेश्वर मेवाड़ राजस्थान में दीक्षा ली। तब उनकी उम्र 28 साल थी। वह भाई-बहनों में पाँचवें नंबर की हैं। दर्शन से आया अनुराग : शारदा म.सा. ने बताया कि उनकी ये दोनों बहनें उनकी दीक्षा की घोर विरोधी थीं, लेकिन संतों की प्रेरणा व दर्शन मात्र से उनमें धर्म के प्रति अटूट अनुराग पैदा हो गया। इसके बाद 2003 में मुनिश्री यशस्वी म.सा. (संगीता) और मुनिश्री मनस्वी जी म.सा.(वर्षा) ने डौंडीलोहारा में दीक्षा ली। तब संगीता 28 और वर्षा 24 साल की थीं। संगीता और वर्षा भाई-बहनों में क्रमशः आठवें और नौवे नंबर की हैं।सांसारिक आकर्षण बदला : शारदा मुनिश्री बताती हैं कि पहले सांसारिक आकर्षण था। अब जीवन में आध्यात्मिक आकर्षण है। बहनों के बीच पहले सांसारिक बातचीत होती थी। अब साधु-संतों की मर्यादा के अनुरूप बातचीत होती है। उन्होंने बताया कि सभी संत व सती पूरे देश में विहार करते हैं। यह संयोग है कि गुरु की आज्ञा के अनुसार उन्हें इस क्षेत्र के विहार के दौरान सभी बहनों को एक साथ रहने का अवसर मिला है। इस क्षेत्र से लौटने के बाद सभी का रास्ता बदल जाएगा। उनके रिश्तेदार आज भी उनसे मिलने आते हैं, लेकिन सबके लिए व्यवहार समान है। सहज आया खिंचाव : शारदा जी ने बताया कि जब वह पाँचवीं कक्षा में थीं, तब पहली बार अपने बड़े पिता की तीन लड़कियों को दीक्षा लेते देखा। उनकी रुचि केवल पढ़ाई और खेलकूद में थी। उन्होंने इस मार्ग के बारे में कभी सोचा नहीं था, लेकिन 15-16 वर्ष की उम्र में धर्म के प्रति खिंचाव आया।
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साल बाद मिली अनुमति : उन्होंने बताया कि उनकी माता कमलादेवी भंसाली हमेशा उनकी दीक्षा का विरोध करती थीं। उन्हें धार्मिक आयोजन में नहीं जाने देती थीं। पाँच साल इंतजार के बाद ही उन्हें माता से दीक्षा की अनुमति मिली। तैयारी में है एक और बहन : उनकी एक और बहन सुश्री सरला भंसाली (40) दीक्षा के लिए तैयार हैं, लेकिन शारीरिक परेशानी के कारण घर से अनुमति नहीं मिल पाई है। ज्ञात हो कि दीक्षा के लिए माता-पिता से अनुमति लेनी पड़ती है। हालाँकि सरला का पूरा समय जैन संतों एवं सतियों की सेवा में गुजर रहा है। सरला अपना अनुभव बताती हैं कि सांसारिक सुखों से कहीं अधिक आनंद संयम के मार्ग में है। उनके पिता और भाई प्रकाश भंसाली, आज अपने आप को बहुत ही गौरवान्वित महसूस करते हैं। समाज के लिए संदेश : सभी मुनिश्री ने समाज को दिए संदेश में कहा कि सद्गृहस्थ व्यसन मुक्त हों। नशे से परिवार दुखी रहता है, बिखर जाता है। सभी व्यक्ति सत्य, धर्म, न्याय और नैतिकता के पक्षधर हों।