दूसरों की मदद का स्वभाव बनाएँ
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कमलचंद वर्मा यह सच है कि मनुष्य अकेला सब कुछ नहीं कर सकता। उसे आगे बढ़ने और उन्नति करने के लिए दूसरों की मदद की जरूरत होती है। बच्चा जब बड़ा होने लगता है तो उसके माँ-बाप और परिवार के लोग सहायक बनते हैं। उसे चलना, उठना-बैठना, बोलना और ठीक व्यवहार करना सिखाते हैं। इसके बाद वह पड़ोस, स्कूल और समाज के बीच जाता है और लोगों से जीवन जीने का हुनर सीखता है। आगे बढ़ता है। यह बात याद रखना चाहिए कि परिवार, समाज और सारी दुनिया आपसी सहयोग और भाईचारे की भावना से ही चल रही है। कष्ट या संकट किसी पर भी आ सकते हैं। ऐसे समय सहायता की जरूरत होती है। सहायता मिल जाने से संकट दूर हो जाते हैं और कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। इसलिए जीवन में सहायता या मदद का महत्वपूर्ण स्थान है, परंतु वर्तमान में उपभोक्तावादी संस्कृति ने लोगों के विचारों और उनके कार्य-व्यवहार में बदलाव लाने का काम किया है। देखा गया है कि कई बार लोग संकट में पड़े व्यक्ति को देखकर मुँह फेर लेते हैं और अपने रास्ते चले जाते हैं। वे यह नहीं सोचते कि वे भी कभी इस प्रकार के संकट में पड़ सकते हैं और लोग मदद नहीं करेंगे तो क्या होगा...। परिणाम के बारे में सोचकर दूसरों की मदद करने का स्वभाव बनाना चाहिए। |
यह बात याद रखना चाहिए कि परिवार, समाज और सारी दुनिया आपसी सहयोग और भाईचारे की भावना से ही चल रही है। कष्ट या संकट किसी पर भी आ सकते हैं। ऐसे समय सहायता की जरूरत होती है। सहायता मिल जाने से संकट दूर हो जाते हैं और कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। |
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विद्वानों का कथन है कि लोगों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा तुम अपने लिए पसंद करते हो। संसार में कौन अपना और कौन पराया है? ...यह हमारी दृष्टि पर निर्भर है। यह बात याद रखना चाहिए कि लोग अपने सद्व्यवहार से परायों को भी अपना बना लेते हैं और अपने दुर्व्यवहार से अपनों को भी पराया बना देते हैं। अपनों की पहचान भी कार्य और व्यवहार देखकर ही होती है।
एक सुबह महात्मा भृगु अपने शिष्य रोहित के साथ नदी में स्नान करने पहुँचे। स्नान कर नदी से बाहर निकलने लगे तो उन्होंने देखा कि एक बिच्छू पानी से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है, परंतु तेज बहाव के कारण वह निकल नहीं पा रहा है। महात्मा भृगु को यह देखकर दया आई। उन्होंने एक पत्ते के सहारे उस बिच्छू को पानी से निकालकर किनारे कर दिया। रोहित ने पूछा, 'गुरुजी, कृपा कर यह बताइए- बिच्छू जहरीला है, यह जानते हुए भी आपने उसकी मदद क्यों की, उसे पानी से बाहर क्यों निकाला?' महात्मा भृगु ने जवाब दिया- 'बेटे, वह अपने स्वभाव से विवश है और मैं अपने। उसका स्वभाव डंक मारना और दूसरों को कष्ट देना हो सकता है, परंतु मेरा स्वभाव कष्ट में पड़े जीव की रक्षा करना और उसे बचाना है। बेटे, यह संसार भी कुछ ऐसा ही है। दुर्जन जब अपनी बुराइयाँ नहीं छोड़ते तो सज्जनों को भी अपनी अच्छाइयाँ नहीं छोड़ना चाहिए।' रोहित को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया।