• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. धर्म-दर्शन
  4. »
  5. आलेख
  6. जीवन जीने की प्रेरणा देता अक्षयवट!
Written By ND

जीवन जीने की प्रेरणा देता अक्षयवट!

अपनी राख से पल्लवित होता वृक्ष

रामचरितमानस
- स्नेह मधु
SUNDAY MAGAZINE

किंवदंती है कि गौतम बुद्ध भी इस पेड़ के नीचे ध्यानमग्न हुए थे और भक्त प्रह्‌लाद भी इसके दर्शन को यहाँ आए थे। रामचरितमानस में अक्षयवट का उल्लेख है। यह प्रसंग तब आया है जब भारद्वाज ऋषि चित्रकूट जा रहीं सीता को सलाह देते हैं कि वह संगम की दाईं ओर यमुना नदी के तट पर श्यामग्रोध अक्षयवट के नीचे हाथ जोड़ प्रणाम करते हुए चित्रकूट के लिए प्रस्थान करें। कहते हैं कि इस वृक्ष के दर्शन के लिए यहाँ पांडव भी आए थे।

इलाहाबाद स्थित अकबर के किले में एक ऐसा वट है जो कभी यमुना नदी के किनारे हुआ करता था और जिस पर चढ़कर लोग मोक्ष की कामना से नदी में छलांग लगा देते थे। इस अंधविश्वास ने अनगिनत लोगों की जान ली है। शायद यही कारण है कि अतीत में इसे नष्ट किए जाने के अनेक प्रयास हुए हालाँकि यह आज भी हरा-भरा है। यह ऐतिहासिक वृक्ष किले के जिस हिस्से में आज भी स्थित है वहाँ आमजन नहीं जा सकते पर इसे अक्षयवट कहते हैं और लोगों की इस वृक्ष में असीम आस्था है। यूँ तो अक्षयवट का जिक्र पुराणों में भी हुआ है पर वह वृक्ष अकबर के किले में स्थित यही वृक्ष है कि नहीं, यह कहना आसान नहीं।

इस वृक्ष को सातवीं शताब्दी में व्हेनत्सांग की यात्रा के संस्मरण को आधार बनाकर इतिहासकार वाटर्स ने 'आदमखोर वृक्ष' की संज्ञा दी है। संभवतः इस वृक्ष से कूदकर आत्महत्या करने की प्रवृत्ति के मद्देनजर उसे यह नाम दिया गया होगा। सन 1030 में अलबरूनी ने इसे प्रयाग का पेड़ बताते हुए लिखा कि इस अजीबोगरीब पेड़ की कुछ शाखाएँ ऊपर की तरफ और कुछ नीचे की तरफ जा रही हैं।
इनमें पत्तियाँ नहीं हैं। इस पर चढ़कर लोग नदी में छलांग लगाकर जान दे देते हैं।

SUNDAY MAGAZINE
11वीं शताब्दी में समकालीन इतिहासकार महमूद गरदीजी ने लिखा है कि एक बड़ा-सा वट वृक्ष गंगा-यमुना तट पर स्थित है, जिस पर चढ़कर लोग आत्महत्या करते हैं। 13वीं शताब्दी में जामी-उत-तवारीख के लेखक फजलैउल्लाह रशीदुद्दीन अब्दुल खैर भी इस पेड़ पर चढ़कर आत्महत्याएँ किए जाने का जिक्र करते हैं। अकबर के समकालीन इतिहासकार बदायूनी ने भी लिखा है कि मोक्ष की आस में तमाम काफिर इस पर चढ़कर नदी में कूदकर अपनी जान देते हैं। जिस समय अकबर यहाँ पर किला बनवा रहा था तब उसकी परिधि में कई मंदिर आ गए थे।

अकबर ने उन मंदिरों की मूर्तियों को एक जगह इकट्ठा करवा दिया। बाद में जब इस स्थान को लोगों के लिए खोला गया तो उसे पातालपुरी नाम दिया गया। जिस जगह पर अक्षयवट था वहाँ पर रानी महल बन गया।

हिंदुओं की आस्था का खयाल रखते हुए प्राचीन वृक्ष का तना पातालपुरी में स्थापित कर दिया गया। आज सामान्य जन उसी अक्षयवट के दर्शन करते हैं जबकि असली अक्षयवट आज भी किले के भीतर मौजूद है। अक्षयवट को जला कर पूरी तरह से नष्ट करने के प्रयास जहाँगीर के समय में भी हुए लेकिन हर बार राख से अक्षयवट की शाखाएँ फूट पड़ीं, जिसने वृक्ष का रूप धारण कर लिया। वर्ष 1611 में विलियम फ्रिंच ने लिखा कि महल के भीतर एक पेड़ है जिसे भारतीय जीवन वृक्ष कहते हैं। मान्यता है कि यह वृक्ष कभी नष्ट नहीं होता। पठान राजाओं और उनके पूर्वजों ने भी इसे नष्ट करने की असफल कोशिशें की हैं। जहाँगीर ने भी ऐसा किया है लेकिन पेड़ पुनर्जीवित हो गया और नई शाखाएँ निकल आईं।

व्हेनत्सांग जब प्रयाग आया था तो उसने लिखा- नगर में एक देव मंदिर है जो अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए विख्यात है। इसके विषय में प्रसिद्ध है कि जो कोई यहाँ एक पैसा चढ़ाता है वह मानो और (तीर्थ) स्थानों में सहस्र सुवर्ण मुद्राएँ चढ़ाने जैसा है और यदि यहाँ आत्मघात द्वारा कोई अपने प्राण विसर्जन कर दे तो वह सदैव के लिए स्वर्ग में चला जाता है। मंदिर के आँगन में एक विशाल वृक्ष है जिसकी शाखाएँ और पत्तियाँ बड़े क्षेत्र तक फैली हुई हैं। इसकी सघन छाया में दाईं और बाईं ओर स्वर्ग की लालसा में इस वृक्ष से गिरकर अपने प्राण दे चुके लोगों की अस्थियों के ढेर लगे हैं। यहाँ एक ब्राह्मण वृक्ष पर चढ़कर स्वयं आत्मघात करने को तत्पर हो रहा है।

वह बड़े ओजस्वी शब्दों में लोगों को प्राण देने के लिए उत्तेजित कर रहा है परंतु जब वह गिरता है तो उसके (साधक) मित्र नीचे उसको बचा लेते हैं। वह कहता है, 'देखो, देवता मुझे स्वर्ग से बुला रहे हैं परंतु ये लोग बाधक बन गए।' वर्ष 1693 में खुलासत उत्वारीख ग्रंथ में भी इसका उल्लेख है कि जहाँगीर के आदेश पर इस अक्षयवट को काट दिया गया था लेकिन वह फिर उग आया।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी अक्षयवट को नष्ट करने संबंधी ऐतिहासिक तथ्यों में सत्यता पाते हैं और उसे सही भी ठहराते हैं। वह मानते हैं कि इस तरह के अंधविश्वास लोगों में नकारात्मक विचार भरते हैं, उन्हें जीवन से विमुख करते हैं। यह वृक्ष अपनी गहरी जड़ों के कारण बार-बार पल्लवित होकर हमें भी जीवन के प्रति ऐसा ही जीवट रवैया अपनाने की प्रेरणा देता है न कि अनजानी उम्मीदों में आत्महत्या करने की।