इंदौर। भाई दूज के साथ कल 5 दिनी दीप पर्व सम्पन्न हो गया। वहीं उसके साथ अब कल से चार दिवसीय छठ महोत्सव की शुरुआत हो रही है। शहर में रहने वाले हजारों पूर्वोत्तर समाज के रहवासी बड़ी श्रद्धा के साथ यह महोत्सव मनाते हैं।
इस बार कोरोना संक्रमण के चलते सामूहिक आयोजन, सार्वजनिक पूजा नहीं करते हुए अपने-अपने घरों में ही कृत्रिम जलकुंडों को बनाकर छठ मनाते हुए सूर्य देव को आर्घ्य देंगे। कल पहले दिन नहाय-खहाय से महोत्सव की शुरुआत होगी। फिर 19 नवम्बर को खरना और 20 को अस्ताचल गामी सूर्यदेव को आर्घ्य और फिर समापन पर 21 नवम्बर को उदीमान सूर्य को आर्घ्य देने के साथ समापन होगा।
इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण शहर में रह रहे पूर्वांचल के लोग अपने घरों के परिसर में ही कृत्रिम जलकुंड का निर्माण कर सूर्यदेव को आर्घ्य देंगे शहर में रह रहे पूर्वांचल वासियों की शीर्ष संस्था पूर्वोत्तर सांस्कृतिक संस्थान मध्यप्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर जगदीश सिंह, महासचिव केके झा तथा सचिव अजय कुमार झा ने कहा कि इस वर्ष कोरोना महामारी को देखते हुए शहर में रह रहे पूर्वोत्तर के लोग समाज एवं शहर हित तथा लोगों के स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए शहर के सार्वजनिक जलकुण्डों, तालाबों, कृत्रिम घाटों में सार्वजनिक रूप से छठ पूजा नहीं मनाते हुए अपने अपने घरों में ही कृत्रिम जलकुण्डों का निर्माण कर छठ मनाएंगे एवं सूर्यदेव को आर्घ्य देंगें।
पूर्वोत्तर सांस्कृतिक संस्थान मध्य प्रदेश के प्रदेश महासचिव केके झा ने कहा कि वर्तमान में कोरोना महामारी के संक्रमण से मानवीय क्षति, इंदौर शहर के विभिन्न क्षेत्रों में बने कृत्रिम जलकुण्डों का सिमित दायरा, हर एक छठ घाट पर आने वाले संभावित हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ तथा सरकार द्वारा जारी धार्मिक आयोजनों हेतु जारी गाइडलाइन छठ महापर्व को सार्वजनिक रूप से वृहद पैमाने पर मनाए जाने के अनुकूल नहीं है। अत: इस वर्ष पूर्वोत्तर समाज के लोगों द्वारा आपसी सहमति से छठ पूजा सार्वजनिक कृत्रिम घाटों पर नहीं मनाते हुए घर पर मनाने का निर्णय लिया गया है।
यह निर्णय पूर्वोत्तर सांस्कृतिक संस्थान के पदाधिकारियों द्वारा इंदौर शहर के विभिन्न छठ पूजा आयोजन समितियों के पदाधिकारियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बात करने के पश्चात शहर एवं शहरवासियों के हितों को ध्यान में रख कर लिया गया है। संस्थान ने शहर के विभिन्न क्षेत्रों में रह रहे पूर्वोत्तर समाज के लोगों से अपील की है कि इस वर्ष परिवार हित, समाज एवं देशहित में सभी छठ वृती एवं श्रद्धालुगण अपने अपने घरों में ही छठ पूजा का आयोजन करें तथा स्वस्थ्य एवं सुरक्षित रहें।
छठ पूजा को लेकर दो गुटों में बंटा समाज : हर साल शहर में छठ पूजा पर बड़ी संख्या में लोग सामूहिक पूजा करते हैं, लेकिन इस बार कोरोना को लेकर कुछ आयोजकों ने सार्वजनिक आयोजन निरस्त कर दिए हैं। वहीं कुछ स्थानों पर आयोजन किए जा रहे हैं।
बताया जा रहा है कि छठ पूजा को लेकर बिहार का समाज दो गुटों में बंट गया है। एक गुट पूर्वोत्तर सांस्कृतिक संस्थान से जुड़ा है तो दूसरा गुट अलग है जो आयोजन कर रहा है। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग और कोरोना गाइडलाइन के नियमों का पालन कैसे किया जाएगा, यह समझ से परे हैं।
यूपी, बिहार के सैकड़ों लोग चले गए अपने गांव : कोरोना महामारी के कारण सैकड़ों की संख्या में यूपी और बिहार के रहने वाले लोग अपने-अपने गांव चले गए हैं। शहर के बाणगंगा, लसूडिय़ा मोरी, स्कीम नंबर 78, एरोड्रम रोड, पीपल्यापाला, पीपल्याहाना, विजयनगर, श्याम नगर, कालानी नगर, निपानिया व तिलक नगर, नवलखा, महू नाका व शीतल नगर सहित अन्य इलाकों में हजारों की संख्या में यूपी और बिहार के लोग निवासरत हैं।
कोरोना महामारी के बीच इस बार सामूहिक पूजा का आयोजन नहीं किया जा रहा है, इसलिए वे पहले से ही ट्रेन और बस के जरिए अपने-अपने गांव चले गए हैं।
दिव्य शक्तिपीठ पर घाट की रंगरोगन : सोशल डिस्टेंसिंग का पालन और मास्क अनिवार्य किया। कोरोना महामारी के बीच होने वाले छठ महोत्सव की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। छठ माता के मंदिरों के साथ ही घाट की साफ-सफाई कर रंगरोगन किया जा रहा है।
एमआर-9 स्थित दिव्य शक्तिपीठ में हर साल की तरह इस बार भी महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। कोरोना महामारी को लेकर श्रद्धालुओं को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के साथ ही मास्क लगाना अनिवार्य किया गया है।
आयोजक अनीता पाठक ने बताया कि मुख्य गेट पर श्रद्धालुओं की स्क्रीनिंग करने के बाद ही इंट्री दी जाएगी। चार दिवसीय महोत्सव कल से शुरू हो जाएगा। नहाय-खाय के साथ कल से पूजा शुरू हो जाएगी। 19 नवंबर को खरना है, जिस दिन केले के पत्ते पर खीर-रोटी का भोजन कर श्रद्धालु व्रत शुरू करेंगे। 20 नवंबर को डूबते सूर्य भगवान को अघ्र्य देंगे, वहीं 21 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देकर पर्व का समापन किया जाएगा।
36 घंटे का निर्जला उपवास : उत्तरप्रदेश और बिहार के सबसे बड़े महापर्व छठ में बहुत ही कठिन तपस्या श्रद्धालुओं को करना पड़ती है। 36 घंटे का निर्जला उपवास कर व्रत खोलते हैं। श्रद्धालु रात 3 बजे से ही जलकुंडों में खड़े होकर सूर्योदय होने तक आराधना करते हैं।
कांच ही बांस के बहंगिया : छठ माता का सबसे प्रसिद्ध गीत कांच ही बांस के बहंगिया…बहंगी लचकत जाए…केरवा जे फरेला घवद पर…ओह पर सुगा मेराडाय...उगा है सूरज देव करि हथरिया…आदि है, जो छठ घाट पर बजता रहेगा। पूजा में प्रमुख प्रसादी ठेकुआ है, जो महिलाएं घर पर ही बनाती हैं। इसके अलावा गन्ना, अनार, अमरूद, सेब, मौसंबी, संतरा, नींबू, अदरक, सुथनी, नारियल, पपीता और आंवला आदि हैं, जिन्हें छठ उत्सव के दौरान महिलाएं गाती हैं। (एजेंसी)