1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. नायिका
  4. »
  5. डोर रिश्तों की
Written By ND

रखें स्नेह भरी औपचारिकता

स्नेह औपचारिकता
- नीता राव
ND

बच्चों को सामान्य शिष्टाचार की शिक्षा देना बेहद आवश्यक है। अशिष्टता के लिए उनके प्रति थोड़ा कठोर होना भी बुरा नहीं, लेकिन इस मामले में स्वयं के बच्चों के प्रति अनावश्यक रूप से कठोर हो जाना और उनके सामने ही उसी बात पर दूसरे बच्चों के प्रति सहृदय हो जाना, एकदम गलत है। ऐसे में आप अपने बच्चे के साथ अन्याय तो करेंगे ही, उसके मन में अपने प्रति दुराभाव भी पनपा देंगे।

उस दिन मैं अपनी दीदी के 6 वर्षीय बेटे के साथ अपनी सहेली पूनम के घर गई। हम दोनों बातों में मशगूल हो गए और दीदी का बेटा पूनम के भाई की 5 वर्षीया बेटी के साथ दूसरे कमरे में खेलने चला गया। अचानक किसी चीज के टूटने की आवाज से हम चौंक पड़े। दीदी के बेटे ने पूनम का कीमती चाइनीज फूलदान तोड़ डाला था। इसके पहले कि मैं कुछ कहती पूनम बहुत मृदु स्वर में पुचकारते हुए बोली 'कोई बात नहीं बेटे, बच्चों से तो टूटफूट होती ही रहती है। देखो कहीं तुम्हें काँच न चुभ जाए।'

यह वही पूनम है जिसने पिछली बार अपने भाई की बेटी के हाथ से मामूली सा काँच का ग्लास टूट जाने पर हम सबके सामने पहले से ही सहमी बेटी के गाल पर भरपूर तमाचा मारा था। बड़ी विडंबना है कि जो हमारे बेहद अपने हैं और जिन्हें हमारी संवेदना और प्यार की सबसे अधिक आवश्यकता है उनसे तो प्रायः हम बहुत सख्ती से पेश आते हैं और उनकी छोटी सी गलती को भी क्षमा नहीं करते किंतु जिन्हें हमारी भावना और प्रेम से कुछ भी लेना-देना नहीं है उनसे हम महज अशिष्ट कहलाने के डर से बड़ी तमीज और सौम्यता से पेश आते हैं।
  अशिष्टता के लिए उनके प्रति थोड़ा कठोर होना भी बुरा नहीं, लेकिन इस मामले में स्वयं के बच्चों के प्रति अनावश्यक रूप से कठोर हो जाना और उनके सामने ही उसी बात पर दूसरे बच्चों के प्रति सहृदय हो जाना, एकदम गलत है।      


समाज में हमारी शालीनता और मैनर्स की प्रशंसा हो इस लालच में हम अपने संपर्क में आने वाले लोगों के सामने तो कायदे-कानून और शराफत का जामा पहन लेते हैं किंतु अपनों से हम बेहद अनौपचारिक और अशिष्ट हो जाते हैं। बहुत चाहते हुए भी मैं इसका सटीक उत्तर नहीं तलाश पाई। शायद बहुत नजदीक रहने और अपनेपन की वजह से औपचारिकता और कोमलता का वह बाँध स्वतः ही टूट जाता है। जिसे हम बाहर वालों के सामने बड़ी मजबूती से बाँधकर रखते हैं किंतु यह कहाँ तक उचित है?

अक्सर बाजार के भीड़ भरे रास्तों पर इधर-उधर फुदकते, भागते बच्चों को रोकने के लिए जिस तरह हम अपनी सारी शराफत ताक पर रखकर अभद्र तरीके से चीखते हैं। वह कितनी अशिष्ट स्थिति होती है कभी सोचा है? वास्तव में शालीनता, सद्व्यवहार अथवा मैनर्स ही हमारी आदर्श जिंदगी का आधार है। जीवन को आसान और सफल बनाने वाले इन आवश्यक तत्वों की नींव परिवार में ही पड़ती है। चूँकि समूचे परिवार का केंद्र बिंदु गृहिणी ही होती है।

अतः निश्चय ही यहाँ स्त्री की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह करो, यह न करो, अथवा ऐसा करो, ऐसा न करो की टोकाटाकी से बेहतर यही होगा कि हम स्वयं अपने अच्छे आचरण और व्यवहार द्वारा उनके सामने एक आदर्श स्थापित करें। आपको देखकर बच्चा स्वयं समझ जाएगा कि क्या उचित है और क्या अनुचित।

किंतु इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि औपचारिकता और शिष्टाचार की जकड़न इतनी कसी न हो कि हम जीवन की सारी कोमलता और मधुरता भूलकर एक मशीनी जिंदगी जीने पर मजबूर हो जाएँ। इसलिए अनुशासन बनाए रखें लेकिन उसे सजा या डर न बनने दें।