भाई-बहनों के रिश्तों में दरार न पड़े
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भारती जोशी बचपन में भाई-बहनों में छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई-झगड़े बहुत ही मामूली समझे जाते हैं किंतु बड़ी उम्र में सहोदरों में लड़ाई-झगड़े अजीब मन:स्थिति को जन्म देते हैं। असंतोष, क्रोध, घृणा, मारा-पिटी, मुकदमेबाजी देखकर यह विश्वास करना कठिन लगता है कि ये सगे भाई-बहन हैं। किंतु क्या आप जानते हैं कि बड़ी उम्र में सहोदरों में झगड़ों के बीज बचपन में ही पल्लवित हो जाते हैं जो आगे चलकर स्थायित्व ग्रहण कर लेते हैं।माया और उसके पति पुत्ररत्न पाकर बेहद प्रसन्न थे। माया अपनी खुशी में अपनी बड़ी बहन को भी शरीक करना चाहती थी किंतु छाया ने माया की भावनाओं को उपेक्षित नजरों से देखा। छाया परिवार में सबसे सुंदर तथा हर कार्यक्षेत्र में दक्ष थी इसीलिए उसे 'स्टार' का दर्जा प्राप्त था। माया अपनी दीदी को खूब चाहती है इसलिए समझी कि नि:संतान बहन उसकी इस उपलब्धि पर झूम उठेगी लेकिन पुत्ररत्न के पश्चात दोनों में तनाव बढ़ता ही गया। छाया के दिमाग में यह विचार संघर्ष कर रहा था कि उसकी छोटी बहन ने उसे यहाँ पीछे छोड़ दिया। बचपन से ही पनपी प्रतिद्वंद्विता की भावना अब प्रत्यक्ष रूप से उजागर हो गई। बहुत से वयस्क भाई-बहनों के संबंध परस्पर घनिष्ठ, सहायक और स्नेहपूर्ण होते हैं, फिर भी उनमें प्रतिद्वंद्विता की भावना निश्चित रूप से विद्यमान रहती है। |
बचपन में भाई-बहनों में छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई-झगड़े बहुत ही मामूली समझे जाते हैं किंतु बड़ी उम्र में सहोदरों में लड़ाई-झगड़े अजीब मन:स्थिति को जन्म देते हैं। असंतोष, क्रोध, घृणा, मारा-पिटी, मुकदमेबाजी देखकर यह विश्वास करना कठिन लगता है। |
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कुछ सहोदर ऐसे भी होते हैं जो कुछ ही फासले पर रहते हुए अपने संबंधों को पूरी तरह तोड़ भी नहीं पाते और न ही स्नेहपूर्ण निभा पाते हैं। ऐसे रिश्ते अक्सर कष्टकारी और अनुपयोगी होते हैं इसका कारण यह हो सकता है कि बचपन में जो संबंध बनते हैं वे इतने शक्तिशाली होते हैं कि सहोदरों के बड़े होकर भिन्न मार्ग पर चलने के बावजूद धूमिल नहीं होते। ये रिश्ते अन्य की अपेक्षा इतने अंतरंग भी होते हैं कि निकटता महसूस करने के साथ-साथ क्रोध, ईर्ष्या और असंतोष का वातावरण निर्मित करते हैं। अधिकतर वयस्क सहोदरों के मन में यह बात व्याप्त रहती है कि उनकी अपेक्षा उनके अन्य भाई-बहनों को अधिक प्यार, महत्व मिला। शशांक को हमेशा यह शिकायत रही कि उसे छोटी उम्र में ही काम-धंधे में लगा दिया, जिससे वह अपने अन्य भाई-बहनों की तरह उच्च शिक्षा पाने से वंचित रहा अन्यथा वह भी किसी उच्च पद पर रहता। इस तरह की घटना संभव है और इसी के कारण पारस्परिक विषमता क्रमश: संबंधों को बिगाड़ती है। माता-पिता का प्यार बच्चों के लिए ऑक्सीजन की तरह होता है जो न केवल उनमें आत्मविश्वास जगाता है बल्कि नए कार्यों के लिए प्रेरणा भी प्रदान करता है। जब किसी बच्चे को बचपन में माता-पिता का अतिरिक्त स्नेह मिलता है तो उसमें यह लाड़-प्यार अपने तक ही सीमित रखने की प्रवृत्ति पनपने लगती है।
इसीलिए कई बार दूसरे नवजात शिशु के आगमन के साथ ही उसमें संघर्ष की भावना सिर उठाने लगती है। वयस्क सहोदरों में प्रतिद्वंद्विता की यह भावना यदि उन्माद की स्थिति तक पहुँच जाती है तो उसका मूल कारण माता-पिता द्वारा एक बच्चे का प्रत्यक्ष रूप से पक्ष लेना या परस्पर तुलना कर अन्य को हीन दर्शाना जैसे व्यवहार से व्यक्ति में यह विश्वास पैठ जाता है कि उसके अन्य भाई या बहन उससे श्रेष्ठ हैं जिससे उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है।खुल्लम-खुल्ला पक्षपात के साथ ही माता-पिता अपने बच्चों के लिए जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं। उससे उनके अबोध मन में गहरी छाप बन जाती है और वे स्वयं अपने बारे में विकृत सोच निर्मित कर लेते हैं जो बड़े होने तक कायम रहती है। वयस्क सहोदरों में झगड़े अक्सर वृद्ध माता-पिता की देखभाल तथा पैतृक संपत्ति को लेकर होते हैं। आज की दौड़भाग वाली जिंदगी में वृद्ध माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी परस्पर एक-दूसरे पर डालना चाहते हैं अथवा कभी-कभी किसी एक भाई या बहन द्वारा देखभाल करने पर उसे कई तरह के कटाक्ष या व्यंग्य कसने से बाज नहीं आते। वे यह समझते हैं कि यह देखभाल लालचवश की जा रही है।सभी संबंध सुधर सकते हैं यदि सहोदर पूरी इच्छाशक्ति के साथ ईमानदारीपूर्वक एक-दूसरे को स्वीकार करना सीखें। वयस्क भाई-बहनों को विचार करना चाहिए कि उनकी बचपन की प्रतिद्वंद्विता उस संघर्ष का अवशेष है जिसकी शुरुआत में उनकी कोई भूमिका नहीं है।इस सचाई का अनुभव कर लें तो इससे उन्हें अपनी अपराध भावना या दोषारोपण की आदत से छुटकारा मिल जाएगा। अपने मन में पैठी प्रतिद्वंद्विता की भावना को खुलकर व्यक्त करना सबसे अच्छा कदम होगा। यदि कोई मनमुटाव भी हो तो अपने जीवनसाथी अथवा बच्चों के सामने अपने भाई या बहन को कुछ न कहते हुए अकेले में व्यक्त करें। एक-दूसरे की उपलब्धियों की प्रशंसा करें, सहयोग दें। अतीत की कड़वी यादों को दोहराने के स्थान पर कठिनाई में उलझे भाई-बहन की मदद करें। उनके दु:खों में शामिल हों तथा सांत्वना दें। घर में मिलने पर यदि पुराने जख्म हरे होते हों तो किसी अन्य स्थान पर मिलें। दूर रहने पर पत्र लिखें। जन्मदिन या त्योहारों पर शुभकामनाएँ प्रेषित करें। एक-दूसरे को समझने की चेष्टा करें न कि हावी होना चाहें। सभी के विचार भिन्न होते हैं, अत: जरूरी नहीं कि आपके विचारों से सारे लोग सहमत हों। ऐसे में बहस को कतई स्थान न दें। त्योहारों को मिलजुलकर मनाएँ।