पंजाब में दलितों की संख्या बढ़ी, बसपा का आधार घटा
- संजीव शर्मा
चंडीगढ़। बसपा के संस्थापक स्वर्गीय कांशीराम के गृह राज्य में आज उन्हीं की पार्टी अस्तित्व की ल़ड़ाई ल़ड़ रही है। दिलचस्प बात यह है कि 90 के दशक में पंजाब विधानसभा में नौ विधायक भेजने वाली बसपा में आलम यह है कि दलित समुदाय के लोग जहां पार्टी से लगातार टूटते जा रहे हैं वहीं स्वर्ण जातियों के लोग इस पार्टी के साथ जु़ड़ रहे हैं। जनगणना विभाग द्वारा हाल ही में करवाए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि पंजाब में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 28 फीसदी से ब़ढ़कर करीब 33 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। जिसके चलते इस बार आरक्षित सीटों की संख्या 29 से ब़ढ़कर 34 हो गई है। इसके बावजूद बसपा का जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है। राज्य में वर्ष 1990 से अब तक हुए चुनावों पर अगर नजर दौ़ड़ाई जाए तो बसपा का सबसे ज्यादा आधार राज्य की दोआबा पट्टी में ही रहा है। इसके अलावा गाहे-बगाहे बसपा ने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाया है। इस बार के चुनाव में भी अंतिम समय तक बसपा का शिरोमणि अकाली दल-भाजपा के साथ गठबंधन होने की अटकलें लगती रही हैं।राज्य चुनाव आयोग से मिली जानकारी के अनुसार बसपा ने वर्ष 1992 में 105 सीटों पर अपने प्रत्याशी ख़ड़े किए थे। जिनमें से नौ प्रत्याशी चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। 1992 में बसपा को पंजाब में कुल 16.37 फीसदी वोट मिले थे। 1997 के चुनाव में बसपा ने 67 उम्मीदवार ख़ड़े थे। इन प्रत्याशियों ने 7.49 फीसदी वोट हासिल किए थे। इस साल बसपा ने केवल एक सीट पर ही चुनाव जीता था। 2002
के चुनाव में बसपा ने सौ प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे। पार्टी को इस चुनाव में महज 5.69 प्रतिशत वोट मिले। इसके बावजूद कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया। 2007 के आम चुनाव में बसपा ने 116 सीटों पर अपने उम्मीदवार ख़ड़े किए थे। जिनमें से केवल दो प्रत्याशी ही अपनी जमानत बचा पाए थे। पार्टी को महज 4.10 फीसदी ही वोट मिले थे। इस बार भी बसपा ने अपने बल पर 111 सीटों पर प्रत्याशी खड़े हैं। बसपा पंजाब के अध्यक्ष एवं सांसद अवतार सिंह करीमपुरी कहते हैं कि इस समय पार्टी सुप्रीमों का पूरा ध्यान पंजाब की तरफ है।