अशोक सिंघल : प्रोफाइल
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के नायक रहे विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के संरक्षक अशोक सिंघल अपने जीवनकाल में ही भव्य राम मंदिर निर्माण करवाना चाहते थे लेकिन वे यह इच्छा अपने दिल में ही लेकर संसार से चले गए। मंदिर आंदोलन के मुख्य रणनीतिकार रहे सिंघल का 17 नवंबर, 2015 को हरियाणा में गुड़गांव के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में निधन हो गया था। सिंघल के पास गजब की सांगठनिक क्षमता थी। वे चंद समय में ही किसी को भी अपना सहयोगी बना लेते थे।
जन्म और शिक्षा : अशोक सिंघल का जन्म 26 सितंबर, 1926 को अलीगढ़ जिले के अतरौली कस्बे में हुआ था। सिंघल 20 वर्षों तक विहिप के कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। अस्वस्थ रहने की वजह से उन्होंने दिसंबर 2011 में यह पद छोड़ दिया था। उनके स्थान पर प्रवीणभाई तोगड़िया को विहिप का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया था।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से 1950 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने से पहले ही वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे। उन्हें संगीत से भी लगाव था। सन् 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित विहिप के धर्म संसद में विवादित राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के प्रस्ताव पारित होते ही सिंघल राम मंदिर आंदोलन के नायक बन गए थे।
आंदोलन का नेतृत्व : 17 अक्टूबर 2003 को भी अयोध्या की ओर आने वाली रेलगाड़ियों और बसों आदि को आने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी गई थी, लेकिन पाबंदियों को धता बताते हुए सिंघल न सिर्फ अयोध्या पहुंच गए, बल्कि उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए 'अयोध्या कूच' आंदोलन का नेतृत्व किया। वे विहिप मुख्यालय, कारसेवकपुरम पहुंच गए और उन्होंने विहिप कार्यकर्ताओं पर हो रहे पुलिस लाठीचार्ज का विरोध किया था। पुलिस ने उन्हें भी पीटा और बाद में गिरफ्तार कर लिया।
जीवन भर अविवाहित रहे सिंघल में अदम्य साहस था। दो नवम्बर 1990 को अयोध्या में गहरी चोट खाने के बावजूद वे कारसेवकों के बीच डटे रहे, हालांकि उस दिन कई कारसेवक मारे गए थे। सिंघल का यूं तो ज्यादातर समय प्रयाग (इलाहाबाद) के संघ के प्रचारक के रूप में बीता, लेकिन उन्होंने अयोध्या में भी काफी समय बिताया। सिंघल दलितों और पिछड़ों के उत्थान पर जोर देते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि हिन्दुत्व का मतलब है कि सभी का उत्थान। जब तक दलितों और अनुसूचित जनजातियों का विकास नहीं होगा। वे शिक्षा और सामाजिक दृष्टि से ऊपर नहीं आएंगे तब तक हिन्दुत्व संपूर्ण नहीं होगा।
अयोध्या में वे अंतिम बार 13 जून, 2015 को आए थे और 'रामलला' के दर्शन किए थे। यह उनका रामलला का अंतिम दर्शन था। उस दिन भी उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं कि मंदिर निर्माण हो, लेकिन खूनखराबे के बगैर। वे सच्चे अर्थों में एक हिन्दू और रामभक्त थे।