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Written By WD

पावस ऋतु का आगमन

आषाढ़ में नहीं होंगे मांगलिक कार्य

Ashadh Mass | पावस ऋतु का आगमन
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21 जून से पावस यानी वर्षा ऋतु का आगमन हो गया है। आषाढ़ से भादौ मास तक वर्षाकाल माना गया है। धरती की गोद से जब नव अंकुर फूटते हैं तो धरती की हरियाली चूनर लहरा उठती है। काव्य जगत भी इसकी सुंदरता से अछूता नहीं रह पाया। हरियाली का उत्सव, नाग की पूजा, पृथ्वी को हरा-भरा रखने और सरिसृप सहित संपूर्ण प्राणी जगत की सुरक्षा का संदेश दे हमें बताते हैं कि वनस्पति और प्राणी जगत एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।

वसंत ऋतुराज है तो पावस ऋतुओं की रानी। पावस की बूंदें धरती पर पड़ते ही लोगों के तन-मन फुहारों से सिंचित हो खिल उठते हैं, ताप भाग खड़ा होता है। झुलसे उपवन में बहार आ जाती है। घनघोर घटाओं से अंबर घिर जाता है। चहुंओर हरियाली तो नदी, तालाब आदि लबालब हो जाते हैं, कृषक प्रफुल्लित हो उठते हैं, ठंडी बयारें, वर्षा का जल नया संदेशा, नई चेतना लेकर आते हैं।

आषाढ़ माह शुरू होते ही काले बदरवा की गर्जन और दामिनी की आतिशबाजी से आकाश में धमा-चौकड़ी मच जाती है तथा मेघ समारोह के नजारे होते हैं। सावन-भादौ आते-आते वर्षा ऋतु पूर्ण यौवन को प्राप्त करती है। भादौ की झड़ी तो सावन सेरे स्मृति में अंकित होने लगते हैं।

आदिकाल से ही ऋतु वर्णन कवियों का प्रिय विषय रहा है। रामचरित मानस में तुलसीदासजी ने वर्षा ऋतु वर्णन किया है- घन घमंड नभ गरजत घोरा... दामिनि दमक रह न घन माहीं... बरसहिं जलद भूमि निअराएं... नव पल्लव भए बिटप अनेका... कृषी निरावहिं चतुर किसाना... आदि।

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महाकवि कालिदास के ऋतु प्रेम ने उनसे ऋतु संहारम्‌ की रचना करवाई। मलिक मोहम्मद जायसी षट-ऋतु वर्णन में कुछ यूं लिखा है - रितु पावस बरसे पिउ पावा, सावन-भादौ अधिक सोहावा। पद्मावती चाहत ऋतु आई, गगन सोहावन भूमि सोहाई।

आषाढ़ मास में देवशयनी एकादशी से चातुर्मास तक मांगलिक कार्य नहीं होंगे, जया-पार्वती व्रत, गुरु पूर्णिमा के बाद सावन में महाकाल की नगरी शिवमय होगी और हरियाली अमावस्या, नागपंचमी, रक्षाबंधन व श्रावणी उपाकर्म सहित महाकाल की सवारियों की धूम रहेगी। 22 अगस्त भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी तक वर्षा ऋतु रहेगी। कहा जाता है कि अगस्त्य की अनुपस्थिति में वर्षा होती है। 5 सितंबर को अगस्त्य ऋषि का उदय हो जाएगा। इसके बाद से वर्षा कम हो जाती है।

वर्षाकाल में विशेषकर जोड़ों का दर्द, मलेरिया, पेचिश, कंजक्टिवाइटिस, चर्मरोग होते हैं। वात दोष बढ़ जाता है। अग्नि मंद हो जाती है। वर्षाकाल की तेज धूप नुकसानदायक होती है। गरिष्ठ भोजन के अलावा सावन में दूध और भादौ में छाछ का सेवन नहीं करने का आयुर्वेद में कहा गया है। सुपाच्य आहार का सेवन करने तथा नमी, मच्छर से बचाव करने की सलाह दी गई है।

इन दिनों मधुर, खट्टे, लवण तथा स्निग्ध गुणों वाले आहार का सेवन करें। गरिष्ठ भोजन बैंगन, आलू हरी सब्जियां, मैदे से बने पदार्थों का सेवन नहीं करें। नमी, सीलन में नहीं रहें, शरीर को सूखा रखें। सूती और हल्के कपड़े पहनें। अधिक परिश्रम नहीं करें। ऐसा आहार करें जिससे वात दोष का शमन हो।