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डोल ग्यारस : श्री कृष्ण का जलझूलनी व्रत कैसे मनाएं..पढ़ें कथा

डोल ग्यारस : श्री कृष्ण का जलझूलनी व्रत कैसे मनाएं..पढ़ें कथा - Significance of Padma Ekadashi dol gyaras
पद्मा एकादशी के दिन मनाया जाता है जलझूलनी व्रत
 
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी पदमा एकादशी कही जाती है। इस वर्ष 20 सितंबर 2018 को पदमा एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्री विष्णु के वामन रुप की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढोतरी होती है। इस एकादशी के विषय में एक मान्यता है, कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के वस्त्र धोये थे। इस दिन कान्हा की पालना रस्म भी संपन्न हुई थी। अत: इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। 
 
मंदिरों में इस दिन भगवान श्री विष्णु, श्री कृष्ण को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है। उनको स्नान कराया जाता है। इस एकादशी के दिन व्रत कर भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है। 
 
इस व्रत में धूप, दीप, नैवेद्य और पुष्प आदि से पूजा करने की विधि-विधान है। सात कुंभ स्थापित किए जाते हैं। सातों कुंभों में सात प्रकार के अलग-अलग धान्य भरे जाते हैं। इन सात अनाजों में गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है। एकादशी तिथि से पूर्व की तिथि अर्थात दशमी तिथि के दिन इनमें से किसी धान्य का सेवन नहीं करना चाहिए। 
 
कुंभ के ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रख पूजा की जाती है। इस व्रत को करने के बाद रात्रि में श्री विष्णु जी के पाठ का जागरण करना चाहिए यह व्रत दशमी तिथि से शुरु होकर, द्वादशी तिथि तक जाता है। इसलिए इस व्रत की अवधि सामान्य व्रतों की तुलना में कुछ लंबी होती है। एकादशी तिथि के दिन पूरे दिन व्रत कर अगले दिन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान में दिया जाता है। 
 
राजस्थान में जलझूलनी एकादशी को डोल ग्यारस एकादशी भी कहा जाता है। इस अवसर पर यहां भगवान गणेश ओर माता गौरी की पूजा एवं स्थापना की जाती है। देवी-देवताओं को नदी-तालाब के किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है। संध्या समय में इन मूर्तियों को वापस ले आया जाता है। 
 
कथा इस प्रकार है सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए उनके राज्य में सुख संपदा की कोई कमी नहीं थी, प्रजा सुख से जीवन व्यतीत कर रही थी परंतु एक समय उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई प्रजा दुख से व्याकुल थी तब महाराज भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और उनसे अपनी प्रजा के दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
 
 राजा भादों के शुक्लपक्ष की ‘एकादशी’ का व्रत करते हैं। 
 
इस प्रकार व्रत के प्रभाव स्वरुप राज्य में वर्षा होने लगती है और सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं।  राज्य में पुन: खुशियों का वातावरण छा जाता है। इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए ‘पदमा एकादशी’ के दिन सामर्थ्य अनुसार दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गोदान करने के पश्चात मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिए यह ‘परिवर्तनी एकादशी’ भी कही जाती है। यह व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
 
जो मनुष्य इस  एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि- “जो इस दिन कमल नयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत और पूजन किया,उसने ब्रह्मा, विष्णु, सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

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