सौभाग्य और ऐश्वर्य देने वाला शुक्र प्रदोष व्रत 27 नवंबर को, पढ़ें महत्व एवं कथा
इस बार शुक्रवार, 27 नवंबर 2020 को शुक्र प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। शुक्रवार को पड़ने वाले व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं। इस दिन यह व्रत करने से सुख-समृद्धि, सौभाग्य तथा ऐश्वर्य प्राप्ति का वरदान मिलता है।
प्रतिमाह आने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा पाने का सबसे बड़ा दिन होता है। प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोषकाल में की जाती है। यह प्रदोष सूर्यास्त से लगभग 1 घंटा पहले का समय होता है, जो प्रदोषकाल कहलाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त की जा सकती है। इससे जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रह जाता है। इतना ही नहीं, समस्त आर्थिक संकटों का समाधान करने के लिए प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए।
शुक्र प्रदोष व्रत कथा :
शुक्र प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक नगर में 3 मित्र रहते थे- राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकिन गौना शेष था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे।
ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- 'नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।' धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरंत ही उसने अपनी पत्नी को लाने का निश्चय कर लिया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया।
ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो जिद पर अड़ा रहा और कन्या के माता-पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद पति-पत्नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई। दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे। कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकुओं से पड़ा। जो उनका धन लूटकर ले गए। दोनों घर पहूंचे। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डंस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो 3 दिन में मर जाएगा।
जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और कहा कि इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया, जहां उसकी हालत ठीक होती गई यानी शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।
इस दिन कथा सुनें अथवा सुनाएं तथा कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार 'ॐ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा' मंत्र से आहुति दें। उसके बाद शिवजी की आरती तथा प्रसाद वितरित करें, उसके बाद भोजन करें। कहा जाता है कि शुक्रवार को प्रदोष व्रत सौभाग्य और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि भर देता है।
यही कारण है कि आज के प्रदोष व्रत का काफी खास माना जा रहा है। शुक्रवार के दिन पड़ने वाले इस प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि मिलती है। इस व्रत के प्रभाव से हर तरह के रोग दूर होकर बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आती है। भगवान शिव को ज्ञान और मोक्ष का दाता माना जाता है। अत: अध्यात्म की राह पर चलने वालों को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए।