कजरी पूर्णिमा : पुत्र के कल्याण के लिए मां रखती है पवित्र व्रत
कजरी पूर्णिमा का पर्व श्रावण पूर्णिमा के दिन ही आता है। यह पर्व विशेषत: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है। श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव तैयारी आरंभ हो जाती हैं। कजरी नवमी के दिन महिलाएं पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भरकर लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है।
कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएं इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं। इस नवमी की पूजा करके महिलाएं कजरी बोती है। गीत गाती है तथा कथा कहती है। महिलाएं इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं।
श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में रक्षा बंधन के पर्व रुप में, दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम तथा गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है।