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3 सितंबर: बछ बारस का क्यों है महत्व, कैसे करते हैं पूजा

3 सितंबर: बछ बारस का क्यों है महत्व, कैसे करते हैं पूजा - Importance of  Bach Baras
आज बछ बारस या गोवत्स द्वादशी पर्व है। यह दिन यूं तो भाद्रपद कृष्ण पक्ष और कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को विशेष तौर भी गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे बच्छ दुआ और वसु द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। भारत के अधिकांश हिस्सों में भाद्रपद कृष्ण द्वादशी को गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है। कई पुराणों में गौ के अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। 
 
पद्म पुराण के अनुसार गाय के मुख में चारों वेदों का निवास हैं। उसके सींगों में भगवान शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं। गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगों के अग्र भाग में इन्द्र, दोनों कानों में अश्विनीकुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती, अपान (गुदा) में सारे तीर्थ, मूत्र-स्थान में गंगा जी, रोमकूपों में ऋषि गण, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं। 
 
पुराणों में वर्णन हैं कि लिखा है बछ बारस, गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक, माघ, वैशाख और श्रावण महीनों की कृष्ण द्वादशी को होता है। भाद्रपद मास की गोवत्स द्वादशी के दिन गौ माता और बछड़े की पूजा की जाती है। यह त्योहार संतान की कामना व उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसमें गाय-बछड़ा और बाघ-बाघिन की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा की जाती है। व्रत के दिन शाम को बछड़े वाली गाय की पूजा कर कथा सुनी जाती है फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
 
कैसे करें पूजन- 
 
बछ बारस के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर दूध देने वाली गाय को बछड़े सहित स्नान कराएं, फिर उनको नया वस्त्र चढ़ाते हुए पुष्प अर्पित करें और तिलक करें। कुछ स्थानों पर लोग गाय के सींगों को सजाते हैं और तांबे के पात्र में इत्र, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर गौ का प्रक्षालन करते हैं। इस दिन पूजा के बाद गाय को उड़द से बना भोजन कराएं।

पूजन करने के बाद कथा सुनें। सारा दिन व्रत करके गोधूलि में गौ माता की आरती करें। उसके बाद भोजन ग्रहण करें। इस दिन असली गाय और बछड़े की पूजा भी करती हैं। इस व्रत में द्विदलीय अन्न का प्रयोग किया जाता है। इस दिन गाय का दूध, दही, गेहूं और चावल नहीं खाने का विधान है। इनकी जगह इस दिन अंकुरित मोठ, मूंग, तथा चने आदि को भोजन में उपयोग किया जाता है और इन्हीं से बना प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस दिन चाकू द्वारा काटा गया कोई भी पदार्थ भी खाना वर्जित होता है। 


 
 
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