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हरियाली अमावस्या का शुभ मुहूर्त, पढ़ें पूजा विधि और व्रत कथा

हरियाली अमावस्या का शुभ मुहूर्त, पढ़ें पूजा विधि और व्रत कथा - Hariyali amavasya 2020 muhurat vrat katha
हरियाली अमावस्या,नाम से ही स्पष्ट है कि वह दिन जो हरियाली को समर्पित है,हरियाली के आगमन के रूप में जिसे मनाया जाता है। इस दिन किसान आने वाले वर्ष में कृषि के विकास का अनुमान लगाते हैं, शगुन करते हैं,उपाय आजमाते हैं। सावन की फुहार और बहार के साथ हरे भरे पर्यावरण का स्वागत किया जाता है।
 
सावन महीने की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहा जाता हैं। इस अमावस्या का संबंध प्रकृति, पितृ और भगवान शंकर से है। तीनों लोक से संबंध होने के कारण इस अमावस्या का अपना विशेष महत्व है।
 
अतः पर्यावरण को संतुलित और शुद्ध बनाए रखने के उद्देश्य से ही अनेक वर्षों से हरियाली अमावस्या का पर्व खूब धूम-धाम से मनाया जाता है। इसका मुख्य लक्ष्य प्रदूषण को समाप्त कर पेड़ की संख्या में अधिक से अधिक वृद्धि करना है। यदि इस दिन कोई भी व्यक्ति एक भी पौधा रोपित करता है, तो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है और वह जीवन भर समृद्ध बना रहता है।
 
पेड़ो में देवताओं का वास माना जाता है, इसी कारण से इन्हें लगाने वाले व्यक्ति पर भगवान की असीम कृपा बनी रहती है। हमारे सनातन धर्म में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है।
 
पीपल के वृक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि पीपल के वृक्ष में अनेक देवताओं का वास माना गया है। इस दिन पीपल के मूल भाग में जल, दूध चढ़ाने से पितृ तृप्त होते है तथा शनि शांति के लिए भी शाम के समय सरसों के तेल का दिया लगाने का विधान है ।
 
पेड़-पौधों से केवल मनुष्य नहीं बल्कि प्रकृति में रहने वाले समस्त जीव जंतु का जीवन सुरक्षित होता है।
 
श्रावण अमावस्या मुहूर्त
20 जुलाई 2020 को हरियाली अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा।  इस वर्ष सोमवती अमावस्या पर पुनर्वसु नक्षत्र के बाद रात्रि में 9.22 बजे से पुष्य नक्षत्र रहेगा। सोमवार को यदि पुष्य नक्षत्र रहे तो उसे सोम पुष्य कहते हैं। रात्रि में सर्वार्थ सिद्धि योग भी है।
 
सोमवार के दिन पुष्य नक्षत्र का आना सोम पुष्य कहलाता है। अमावस्या की रात सोमपुष्य के साथ सर्वार्थसिद्धि योग मध्य रात्रि साधना के लिए विशेष है।
 
मुहूर्त
 
जुलाई 20, 2020 को 00:11:42 से अमावस्या आरंभ 
जुलाई 20, 2020 को 23:04:10 पर अमावस्या समाप्त
 
पूजा विधि
सुबह उठकर पूरे विधि विधान से माता पार्वती एवं भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए तथा  सुहागन महिलाओ को सिंदूर सहित माता पार्वती की पूजा करना चाहिए और सुहाग सामग्री बांटना चाहिए। 
 
हरी चूड़िया, सिंदूर, बिंदी बांटने से सुहाग की आयु लंबी होती है और साथ ही घर में खुशहाली आती है। 
अच्छे भाग्य के उद्देश्य से लड़के भी चूड़ियां, मिठाई आदि सुहागन स्त्रियों को भेंट कर सकते हैं। लेकिन यह कार्य दोपहर से पहले कर लेना चाहिए।
 
हरियाली अमावस्या के दिन पीपल और तुलसी के पेड़ की पूजा करना चाहिए। इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किए जाते हैं तथा मालपूए का भोग बनाकर चढाए जाने की परंपरा है। धार्मिक ग्रंथों में पर्वत और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास बताया गया है। पीपल में त्रिदेवों का वास माना गया है। आंवले के पेड़ में स्वयं भगवान श्री लक्ष्मीनारायण का वास माना जाता है।
 
इस दिन कई लोग उपवास भी रखते हैं। इसके बाद शाम को भोजन ग्रहण कर व्रत खोला जाता है। जो लोग श्रावण मास की अमावस्या को व्रत करते हैं, उन्हें धन और वैभव की प्राप्ति होती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नासन के बाद ब्राह्मणों, ग़रीबों और वंचतों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा करनी चाहिए। 
 
हरियाली अमावस्या की कथा
 
एक राजा था। उसके एक बेटा बहू थे। बहू ने एक दिन मिठाई चोरी करके खा ली और नाम चूहा का ले लिया, यह  सुनकर चूहे को गुस्सा आया, और उसने मन मे विचार किया कि चोर को राजा के सामने लेकर आऊंगा। 
 
एक दिन राजा के घर में मेहमान आये थे, और वह राजा के कमरे में सोये थे, चूहे ने रानी के कपड़े ले जाकर मेहमान के पास रख दिये। सुबह उठकर सब लोग आपस में बात करने लगे की छोटी रानी के कपड़े मेहमान के कमरे में मिले। यह बात जब राजा ने सुनी तो उस रानी को घर से निकाल दिया। वह रोज शाम को दिया जलाती और ज्वार बोती थी। पूजा करती गुडधानी का प्रसाद बाँटती थी। एक दिन राजा शिकार करके उधर से निकले तो राजा की नजर उस रानी पर पडी। राजा ने अपने सैनिकों को कहा कि जाकर देखो उस पेड़ पर...
 
अगले दिन राजा के सैनिकों ने पेड़ के ऊपर जाकर देखा तो दिये आपस में बात कर रहे थे। 
 
उस में से एक दिया बोला मैं राजा के घर का हूँ उस राजा की एक बहू थी उसने एक बार मिठाई चोरी करके खा ली और चूहे का नाम ले लिया। जब चूहे को गुस्सा आया तो रानी के कपड़े मेहमान के कमरे में रख दिए राजा ने रानी को घर से निकाल दिया, वो रोज मेरी पूजा करती थी, भोग लगाती थी। 
 
उसने रानी को आशीर्वाद दिया  वह सुखी रहे। फिर पेड़ पर से उतर कर सैनिक घर आए और बताया कि रानी का कोई दोष नहीं था। राजा ने रानी को घर बुलाया और सभी सुख से रहने लगे। 

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